बहुत रही बाबुल घर दुल्हन, चल तेरे पी ने बुलाई..
बहुत खेल खेली सखियन सों, अंत करी लरकाई..
न्हाय धोय के बस्तर पहिरे, सब ही सिंगार बनाई..
बिदा करन को कुटुम्ब सब आए, सिगरे लोग लुगाई..
चार कहारन डोली उठाई संग पुरोहित नाई
चले ही बनैगी होत कहां है, नैनन नीर बहाई..
अंत बिदा है चलिहै दुल्हिन, काहू कि कछु ना बसाई..
मौज खुशी सब देखत रह गये, मात-पिता औ भाई..
मोरि कौन संग लगिन धराई, धन धन तेरी है खुदाई..
बिन मांगे मेरी मंगनी जो,दीन्ही पर घर कि जो ठहराई..
अंगुरि पकरि मोरा पहूंचा भी पकरे, कंगना अंगूठी पहराई..
नौशा के संग मोहि कर दीन्ही, लाज संकोच मिटाई..
सोना भी दीन्हा रूपा भी दीन्हा बाबुल दिल दरियाई..
गहेल गहेली डोलिय्ज आंगन मा पकर अचानक बैठाई..
बैठत महीन कपरे पहनाये, केसर तिलक लगाई..
खुसरो चले ससुरारी सजनी संग, नहीं कोई आयी..
चित्र में - अमीर खुसरो अपने गुरू निजामुद्दीन औलिया के साथ
bahut hi sundar git padhawane ke liye shukriya
ReplyDeleteइस पवित्र aur sundar soofi geet ko padhwane के लिए आपका बहुत बहुत आभार.....
ReplyDeleteमुझे नहीं पता था ये शौक भी रखते हो,.. बहुत ही उम्दा
ReplyDeleteAre Kush bhai, kal raat hi to ek SMS bheja tha.. :)
ReplyDeleteसुन्दर! पेश करने के लिये शुक्रिया।
ReplyDeleteवाह भैया मजा आ गया ...वाह वाह
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.. वैसे कब बजेगा..:)
ReplyDeletelajawab geet
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. इस नायाब रचना के लिए ... शुक्रिया क्या कहूँ !!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार इस गीत के लिए,
ReplyDeleteबहुत आभार इस रचना के लिये.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत ही सुंदर और महत्वपूर्ण गीत। इस गीत की भाव भूमि विवाह अवश्य है। लेकिन यहाँ दुल्हिन मनुष्य का, पति ईश्वर का और विवाह मृत्यु का प्रतीक है। मृत्यु के साथ ईश्वर के साथ एकाकार होने का भाव है। अन्तिम दो पंक्तियाँ पूरे गीत का सार हैं....
ReplyDeleteबैठत महीन कपरे पहनाये, केसर तिलक लगाई..
खुसरो चले ससुरारी सजनी संग, नहीं कोई आयी..
बधाईयां.
ReplyDeleteBahut Badiya Geet!!!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर लाजवाबल रचना........ अमीर खुसरो का लिखा तो आन को भाता ह है
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गीत.. हमारे साथ इसे बाटने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया !
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