Tuesday, July 07, 2009

आई टी प्रोफेशन के साईड इफेक्ट

साईड इफेक्ट 1 -
पिछले शुक्रवार की बात है.. मैं दिन भर ऑफिस में काम करने के बाद रात वाले शो में सिनेमा देखने कि भी तैयारी थी.. रात आठ बजे मैं अपने ऑफिस से निकला.. बहुत जोड़ों से भूख लगी थी, सो मैंने सोचा कि पहले कहीं कुछ खा लिया जाये..

मेरे ऑफिस के ठीक बगल में "पेलिटा नासी कांदार" नाम का एक रेस्टोरेंट है जो मलेशियन खाने के लिये बहुत प्रसिद्ध जगह है, मैं वहां गया और मलेशियन चिकेन चाउमिन और्डर किया. खाना खत्म करके मैं अपना प्लेट लेकर वॉस बेसिन की ओर बढ़ने लगा, सभी लोग अजीब तरह से मुझे घूरने लगे.. तब जाकर मुझे समझ में आया कि मैं अपने ऑफिस के कैंटिन में नहीं बल्की रेस्टोरेंट में हूं और यहां मुझे अपना प्लेट को बेसिन में रखने की चिंता नहीं करनी है..

साईड इफेक्ट 2 -
खाना खाकर मैं सिनेमा हॉल कि ओर बढ़ चला.. वहां मेरे कुछ मित्र पहले से ही मेरा इंतजार कर रहे थे.. वहां जब हॉल के अंदर जाने लगा तो मैं अपना आई.डी. कार्ड दिखाया और सीधा अंदर चला गया.. गार्ड चिल्लाने लगा.. मैं समझ नहीं पाया कि आखिर जब मैंने अपना आई.डी.कार्ड दिखा दिया है तब यह क्यों चिल्ला रहा है.. वह गार्ड मेरे पास आया और मुझसे बोला कि आपने टिकट दिखाया ही नहीं.. ये आपका ऑफिस नहीं है जो आई.डी.कार्ड दिखा कर सीधा अंदर चले आ रहे हैं..

साईड इफेक्ट 3 -
सिनेमा शुरू हो चुकी थी.. थोड़ी देर बाद मुझे समय जानने की इच्छा हुई और मैं स्क्रीन के निचले-दाहिने भाग कि तरफ घड़ी ढ़ूंढ़ने लगा.. मैं अचंभित था कि घड़ी कहां चली गई? 2-3 सेकेन्ड के बाद मुझे समझ में आया कि यह कंप्यूटर स्क्रीन नहीं है, सिनेमा स्क्रीन है..

साईड इफेक्ट 4 -
देर रात सिनेमा खत्म हुआ और मैं घर कि ओर निकल लिया.. मेरे सारे मित्र सो चुके थे.. मैं अपने घर के दरवाजे के नजदीक पहूंच कर कार्ड स्वैपिंग मशीन खोजने लगा, जिस पर स्वैप करके मैं दरवाजे को खोल सकूं.. फिर मुझे याद आया कि यहां एक कौल बेल भी हुआ करता है.. ;)

एक मित्र द्वारा भेजे हुये मेल पर आधारित यह पोस्ट है.. :)

23 comments:

  1. आज कल की भाग दौड भरी ज़िन्दगी मे सब का यही हाल है ये सिर्फ आई टी प्रोफेशन मे ही नहीं है शुभकामनायें

    ReplyDelete
  2. बहुत मजेदार पोस्ट रही। पर हंसी के साथ-साथ दुख भी हुआ, सोफ्टवेयर इंजीनियरों की दयनीय स्थिति पर

    सोफ्टवेयर इंजिनियरों का खूब शोषण होता है। इनका कोई पूछनेवाला भी नहीं है। सोने की जंजीरों से बंधे गुलाम भर हैं ये। इनका न परिवार होता है, न मां-बांप, न बेटे-बेटियां, (होते हैं, पर होना न होना बराबर है, क्योंकि ये हर दिन 28 घंटे काम करते हैं, और इन सबके लिए इनके पास समय नहीं रहता)।

    देश में सोफ्टवेयर इंजीनियर इतने सारे हैं कि इन कंपनियों को शिफ्टों में काम करना चाहिए और अपने कर्मचारियों का इस तरह शोषण करना बंद कर देना चाहिए। आठ घंटे से ज्यादा किसी भी कर्मचारी से काम नहीं कराना चाहिए एक दिन में। ये कंपनियां तीन शिफ्ट करें, हर रोज, कोई हर्ज नहीं। इससे ये तिगुने लोगों को रोजगार भी दे पाएंगे।

    ReplyDelete
  3. बड़े भयंकर कमेण्ट दिमाग में आए !

    आज अपना समझकर पहली बार छोड़ रहा हूँ किसी को !

    यह किस प्रोफ़ेशन का साइड इफ़ेक्ट है जी :)

    ReplyDelete
  4. ईमानदारी से इनमे से एक हादसा हमारे साथ हो चुका है, तब कालेज में पढ़ते थे...
    घर आये, सब मिलकर खाना खा रहे थे, अचानक हमारा खान समाप्त हुआ और हम अपनी थाली उठायी, रसोई के सिंक में रखी और अपने कमरे में जाकर लेट गए...
    जब दूसरे कमरे से हंसने की आवाज़ आई तो माजरा क्लियर हुआ कि ऐसे सबके बीच से उठकर जाने के कारण सब हंस रहे हैं|

    ReplyDelete
  5. मेर रिश्ते के एक भाई साहब की नियुक्ति लड़कियों के स्कूल में हो गई। वे अकेले पुरुष अध्यापक थे। उन के बीच रहते रहते उन से ऐसा हो जाता था कि कभी कभी लड्कियाँ उन्हें कापी दिखा रही होती और कहती पहले मेरी देख लीजिए। तो उन के मुख से निकल जाता था हाँ अभी देखती हूँ।
    साइड इफेक्ट तो होते हैं। लेकिन इस में कुछ कल्पना का मिश्रण भी है। और आईटी प्रोफेशनल्स की व्यथा भी।

    ReplyDelete
  6. अभी-अभी फिर से पेलिटा नासी कांदार में खाना खा कर आ रहा हूं.. राते 12 बजे से एक मिटिंग है, उसी का इंतजार कर रहा हूं.. :(

    ReplyDelete
  7. साईड इफ़ेक्ट इतने खतरनाक है तो स्ट्रेट इफ़ेक्ट कितने होंगे?बच के रहना पीडी।

    ReplyDelete
  8. एक मित्र द्वारा भेजे हुये मेल पर आधारित यह पोस्ट है.. :)

    ये भी साईड इफेक्ट है.. मेल मिला उसे वास्तविक बनाकर पेश कर दिया..

    :))

    ReplyDelete
  9. ऐसा ही होता है............ जब काम में डूब जाता है इंसान............... लगता है आप भी कर्म योगी हैं......... सुन्दर लिखा है

    ReplyDelete
  10. होते हैं साईड इफेक्ट।
    बढ़िया पोस्ट

    ReplyDelete
  11. होता है होता है ऐसा...मजेदार!

    ReplyDelete
  12. सही है भाई. मज़ेदार.

    ReplyDelete
  13. होता है ..होता है..ऐसा भी होता है..इसके मजे लो ना..अकेले थोडे ही हो? ब्लागिंग मे भी कुछ ऐसा ही होता है थोडे समय बाद..कुछ ज्यादा फ़र्क नही है;:)...पर मुझे फ़िक्र PD तुम्हारी...एक आई.टी. प्रोफ़ेशनल और उपर से ब्लागर?:)

    रामराम.

    ReplyDelete
  14. Fantastic Title as well as description :) Bahut maja aaya :D kabhi kabhi aise hotha hai..... ha...haa.haaaa......

    ReplyDelete
  15. mast likha hai...maza a gaya :D

    ReplyDelete
  16. चलो कम से कम मेल पर आधारित था... वर्ना हम तो सोचे की भरी जवानी में पीडी भाई को क्या हो गया :)

    ReplyDelete
  17. मलेशियन चिकेन चाउमिन
    - भैया, इस डिश के समतुल्य नॉन-लहसुनप्याजेरियन स्वाद किसमें मिलता है! :)

    ReplyDelete
  18. साइड इफेक्ट तो हर प्रोफेशन के हैं साहब

    सर मैंने आपके कहने पर अपने ब्लॉग से वो खुद बजने वाला विजेट भी हटा दिया और आपने तो आना ही छोड़ दिया है...
    किसी दिन आएं और प्याले को चखें

    ReplyDelete
  19. और भी कई लफडे है भाई

    ReplyDelete
  20. बहुत ही बढ़िया ,वैसे इस तरह की baten उन सभी logo के साथ होती हैं जो किसी n किसी vayvasay या kala से दिल से jude होते हैं .बहुत mja आया padhkar ,बहुत ही achchi post

    ReplyDelete