कुछ-कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी था.. मेरे साथ तो एक बात और भी थी, मैं घर में सबसे छोटा था सो ऐसे ही मेरे नखरे सबसे ज्यादा हुआ करते ही थे.. मगर इन सबके साथ एक बात और भी खास हुआ करती थी.. लूडो!! जब कभी हम भाई-बहन में से कोई बीमार पड़ता था तब घर में एक नया लूडो जरूर आता था, जिसे हम सभी बच्चे खेल कर बहुत खुश होते थे..
पिछले रविवार से लगातार तीन दिन मैं बीमार था.. घर पर बात हुई.. मैंने पापा-मम्मी से शिकायत कि की उन्होंने मेरे लिये लूडो नहीं खरीद दिया..
- आपने मेरे लिये लूडो नहीं खरीद दिया..
- विकास, शिवेन्द्र में से किसी को कहो वो ला देगा..
- नहीं! आप खरीद दिजिये..
- ठीक है.. जब यहां आओगे तब खरीद देंगे..
- नहीं! अभी बुखार है तो अभी चाहिये..
तभी उन्हें याद आया कि जब वह यहां आये थे तब वे घर पर एक लूडो देखे थे.. गार्गी का था जो गार्गी के चेन्नई से जाने के बाद से हमारे पास ही रखा हुआ है.. उस लूडो को याद करके फिर से वे बोले
- तुम्हारे पास तो लूडो है.. उसी से खेलो..
- नहीं वो पुराना वाला लूडो है.. मुझे नया वाला चाहिये..
- अभी उसी से खेल लो..
- नहीं वो गार्गी का है.. मुझे मेरा वाला चाहिये..
अब तक उन्हें समझ में आ गया था कि ये नहीं मानने वाला है और वो लूडो भी नहीं खरीद सकते हैं.. सो बात यहीं खत्म हो गई..
फिलहाल ठीक-ठाक हूं और ऑफिस में हूं.. :)
मजा आ गया। इस उमर में बालहट। लगता है बुखार में उम्र कम हो जाती है।
ReplyDeleteसच कहें तो हमने कभी लूडो खेला ही नहीं लिहाजा हमें इसका मज़ा भी नहीं पता !
ReplyDeleteभूल भाल गये थे लूडो -आज याद आ गया.
ReplyDeleteबारिश में भीगे थे क्या?
ReplyDeleteचलो पापा डाक से लुडो़ भेज देगें..:)
bachpan ki kuch suhani yaadein taza ho gayi.insaan kitna bhi bada ho,andar ka bachpan nahi marta.sunder post.
ReplyDeleteचलो अच्छा है अब सब ठीक है... कहो तो सात अगस्त को लूडो भिजवा दे..
ReplyDeletebangalore aa rahe ho, ludo kharid kar rakhte hain...raampyari se dikha lo dobara bukhar aane ki himmat nahin karega
ReplyDeleteकुश दो लुडो लेना एक सात को पीडी को भेजना और दूसरा आठ को मुझे।लूडो खेलते समय गोटियां अंदर से बाहर करना और बाहर से अंदर करना,लड़ना-झगड़ना सब याद आ गया पीडी।बहुत बढिया।
ReplyDeleteआजकल चार पांच गेम एक साथ मिलते है...हम अपने छोटू के साथ खेलते है .....किसी दिन ऑफिस में ले जाओ...देखे क्या धमाल होता है
ReplyDeleteलूडो की याद सही दिलवाई, पर भाई बुखार को भदेस भाषा का शब्द कहना ठीक नहीं। कितना प्यारा शब्द है, कितने आराम से अवकाश मिल जाता है, लूडो भी
ReplyDelete...
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bachpan ka kuch yaadein zindagi bhar apne saath hi rahega..bahut mazaa aaya.....Tabiyak ka khayal zaroor rakhiye :D
ReplyDeleteis umr mein baalhath, pd babu badhia hai
ReplyDeleteबुखार और लूडो? हम तो बस टीवी देखते हैं, या सोते रहते हैं! सच में, कभी बहुत काम करना पड़ता है तो लगता है काश बुखार हो जाए, आराम करने को मिले :)
ReplyDeletehaa haa loodo की याद करा दी आपने
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