Saturday, May 31, 2008

मेरी शिनाख्त कौन करेगा? (चेन्नई डायरी)

दो-तीन हफ्ते पहले की बात है.. रात के दो बज रहे थे.. मुझे नींद नहीं आ रही थी और मन भी कुछ बेचैन सा हो रहा था.. काफी देर तक मैं बाहर बालकनी में टहलता रहा.. फिर सोचा की टहलना ही है तो सामने सड़क है.. क्यों न वहीं टहल आया जाए? और निकल आया सड़क पर.. मेरे घर के सामने वाली सड़क जो पूरी रात नहीं सोती है और किसी भी समय आपको चेन्नई में कहीं भी जाने के लिए वाहन मिल सकते हैं.. चेन्नई-बैंगलोर में हाइवे को जो जोड़ता है.. कुछ भी हो रात बहुत हो चुकी थी सो सड़क पर वाहनों की संख्या कम हो चुकी थी.. और जहाँ वाहनों की संख्या कम हो और सड़क अच्छी और चौडी हो तो सभी अपनी ही रफ़्तार में भागना पसंद करते हैं.. समां भी कुछ वैसा ही था.. लगभग सभी वाहन ६०-७० से अधिक की रफ़्तार को बनाए हुए थे..

उसी समय बेख्याली में ये ख्याल मुझे आया.. की अगर अभी कोई वाहन मुझे टक्कर मार दे तो? इतना तो मुझे भी पता है की उतनी रात में कोई भी किसी की मदद को नहीं आने वाला है.. वैसे भी भारत में पुलिश से बचने के लिए हिट एंड रन वाले समय में कोई भी मदद को सामने नहीं आता है.. मैं घर से निकलते समय सोचा था की इतनी रात को कौन मुझे फोन करेगा.. सो फोन भी साथ में नहीं रखा था.. आई डी कार्ड की तो बात ही पैदा नहीं होती है..

मैं सोच रहा था की ऐसे समय में मेरे मित्रों को भी सुबह से पहले पता नहीं चलेगा की प्रशान्त घर में नहीं है.. और वो मेरी खोज १० बजे से पहले नहीं करने वाले हैं.. अगर मुझे कुछ हो जाए तो ३-४ दिनों तक तो मेरी शिनाख्त करने वाला भी कोई नहीं मिलेगा..

ये मेरे लिए बस एक ख्याल भर ही था.. मगर कभी आपने सोचा है की कितने ही लोग जो बड़े शहरों की तरफ निकल परते हैं रोजी-रोटी की तलाश में वो अगर कहीं गुम हो जाए तो शायद ही कभी किसी को मिलें.. और चेन्नई जैसे शहर में जहाँ अगर आपको तमिल नहीं आती है तो ८०% लोग आपकी मदद को भी सामने नहीं आते हैं..


आज चेन्नई में फिर से खूब बारिश हुई.. बस आधे घंटे की बारिश, मगर झूम कर.. ये तस्वीर देखिये.. दो बारिश के समय की है और एक बारिश के बाद हुए जल-जमाव की.. यहाँ चेन्नई में मैंने पाया है की अगर बारिश होती है तो जल-जमाव होता है.. मगर किसी अन्य बड़े शहरों की तरह जमा नहीं रहता है.. वो ज्यादा से ज्यादा २-३ घंटो में गायब भी हो जाता है..



फोटो को बड़ा करके देखिये.. अच्छे से आप बारिश की एक एक बूँद देख सकते हैं.. :)

Thursday, May 29, 2008

हमारे पंगे भी तो देखो यारों

जब से पंगेबाज जी का चेलत्व ग्रहण किया हूं तब से कुछ बड़े-बड़े पंगे लेने लगा हूं.. एक उदाहरण यहां है.. अब पंगेबाज जी मुझे कितना नंबर देते हैं देखिये.. :)

कुछ दिनों पहले की बात है, मेरी पीठ में बहुत तेज दर्द हो रहा था सो मैंने अपने बॉस को कहा कि आज मैं जल्दी घर जाना चाहता हूं.. अब हमारे बीच जो बातें हुई वो मैं यहां लिख रहा हूं..

"Boss, Today I want to go early.."

"Why?"

"I am having back pain, thats why.."


अब क्या था, उन्हें मजाक करने का मौका मिल गया..

"Hey dude! Last night what you did with your girl friend?" उन्होंने मुस्कुराते हुये पूछा..

मैंने कहा, "I also have a question.. Can I ask?"

"Yes-yes.. Why not.."

"Some day before you also had back pain.. Right?"

"So what? I am a married person.."


"Yah! I know.. But your wife was not in Chennai at that time.. Now tell me what you did with whom on that night?" अब मुस्कुराने की बारी मेरी थी..

उन्हें मुझसे इस तरह के उत्तर की उम्मीद नहीं थी सो करते भी तो क्या करते.. चुपचाप मुझे घूरते हुये मुस्कुराने लगे.. वो हैदराबाद से आते हैं सो हिंदी अच्छे से समझते-बोलते हैं और हिंदी सिनेमा के भी शौकीन हैं.. सो चलते-चलते मैंने फिर से कमेंट मार दिय.. "I know what you are thinking right now.. चुन-चुन कर बदला लूंगा.."

मेरी बात सुन कर वो हंसे और फिर मैं अपने रास्ते चला गया..

Wednesday, May 28, 2008

हिंदुस्तानी हिंदी क्या है?(दिल्ली डायरी 2)

कल के ज्ञान जी के चिट्ठे पर आयी ढ़ेर सारे कमेंट्स में से कई इसी बात पर ऐतराज कर रहे थे की इसमें अंग्रेजी के शब्द इतना अधिक क्यों है.. संयोग कुछ ऐसा कि मैं ये पोस्ट ज्ञान जी के पोस्ट के आने से पहले ही लिख चुका था मगर उसे समय कि कमी के चलते पोस्ट नहीं कर पाया था.. अगर मैं सही हूं तो आप सभी को ज्ञान जी के उस पोस्ट में अंग्रेजी के इतने शब्दों का कारण पता चल सकता है..

सच्ची हिंदुस्तानी हिंदी का असल मतलब मुझे किसी हिंदी के विद्वान या किसी हिंदुस्तानी ने नहीं, वरण एक विदेशी महिला ने समझाया था.. वो किस्सा कुछ ऐसा है..

सन् 2003 में प्रगती मैदान में विश्व व्यापार मेला लगा हुआ था.. मैं अपने एक मित्र के साथ वहां से रात के 9:30 पर लौट रहा था.. बस में ज्यादा भीड़ नहीं थी सो ज्यादा शोर शराबा भी नहीं था.. तभी मैंने सुना की मेरे पीछे वाली सीट से कोई मोबाईल पर कोई महिला बात कर रही है जो कि बहुत ही सर्वसाधारण सी बात है.. सो मैंने भी नजरअंदाज कर दिया.. थोड़ी देर बाद फिर से उसके मोबाईल कि घंटी टनटना उठी.. इस बार वो अंग्रेजी में बात कर रही थी और उनके बोलने का लहजा पूरी तरह से विदेशी था.. सो इस बार उन्होंने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा.. मैं पीछे पलट कर देखा तो पाया कि वो एक विदेशी महिला थी जो थोड़ी देर पहले हिंदी में बात कर रही थी..

मुझे थोड़ी उत्सुकता हुई उनके बारे में जानने का सो मैंने ही बात करने की पहल की.. पता चला कि उनका नाम क्रिस्टीन है, वो कनाडा से हैं और जे.एन.यू. की छात्रा हैं(किस विषय से थी ये अब मुझे याद नहीं है) और लगभग 2 साल से भारत में हैं.. मैंने उनकी हिंदी के बारे में पूछा तो उन्होंने मुझे कहा कि इसे वो और उनके मित्र हिंदुस्तानी हिंदी कहते हैं.. उनसे मुझे पता चला की वो विशुद्ध हिंदी भी जानती हैं मगर उसे बोलने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि यहां के आम लोग जब उसे समझ ही नहीं सकते हैं तो उसे बोलने का फायदा क्या है.. उनकी नजर में हिंदुस्तानी हिंदी का मतलब ऐसी हिंदी जिसमें हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी घुला मिला हो.. उनका कहना मुझे बिलकुल सही लग रहा था और उनसे असहमत होने का मेरे पास कोई कारण नहीं था..

हम लोग मुनिरका में उतर गये.. वहां से उन्हें जे.एन.यू. तक जाना था जो अगर मुनिरका के चारों ओर से घूम कर जाने पर बहुत ही लम्बा रास्ता हो जाता और मुझे जे.एन.यू. के मेन गेट वाले हिस्से में जाना था.. सो मैंने उन्हें मुनिरका के सड़कों का चक्रव्यूह पार करा कर जे.एन.यू. के मेन गेट तक पहूंचा कर वापस आ गया और वो अपने रास्ते चली गई.. उसके बाद भी हम कई बार जे.एन.यू. में उसी मित्रवत व्यवहार के साथ मिले..

Monday, May 26, 2008

'चे गुवेरा' से पहली मुलाकात(दिल्ली डायरी 1)


दिल्ली नया-नया पहूंचा था और अपने संघर्ष की भूमी तैयार करने की जुगत में लगा हुआ था.. उन दिनों जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अपना पूरा समय कटता था.. दिन का खाना सतलज छात्रावास में गेस्ट के तौर पर खाता था और अगर कोई पूछ बैठे कि किसके गेस्ट हैं तो 2-4 लड़कों से मैंने दोस्ती कर रखी थी जो मेरी जिम्मेदारी ले सके.. दोपहर का खाना लाईब्रेरी के कैंटीन में खाता और रात का खाना या तो गंगा ढाबा में या फिर टेफ्ला में..

एक दिन, ना जाने किस बात के लिये, मैंने देखा कि टेफ्ला के बाहर कोई स्टॉल लगा हुआ है.. स्टॉल लगाने वाले शायद AISA के समर्थक थे.. उस स्टॉल में जितने भी टी-शर्ट रखे हुये थे उन सभी पर 'चे' कि तस्वीर लगी हुई थी.. उस समय तक मुझे 'चे' के बारे में कुछ भी पता नहीं था.. मैंने सोचा कि शायद ये बहुत फंकी सा लग रहा है जो युवाओं में बहुत पसंद किया जाता है सो ज्यादा सामान बेचने के लिये इसे बेच रहे हैं.. मैं बस खाना खाया और उसे नजर अंदाज करके वहां से निकल गया.. मगर 'चे' से मेरी पहली मुलाकात हो चुकी थी.. भले ही मैं उनका नाम भी नहीं जानता था उस समय..

धीरे-धीरे मैंने पाया की ये चेहरा जे.एन.यू. में बहुत ही जाना पहचाना है सो मुझे ये अनुमान हो चुका था कि ये जरूर कोई बहुत बड़ी हस्ती होगी.. मगर मेरा दुर्भाग्य ऐसा की मैंने जहां कहीं भी उनकी तस्वीर देखी थी वहां उनका नाम नहीं लिखा हुआ था.. कुछ संकोच होने के कारण मैंने किसी से पूछा भी नहीं कि ये किन महाशय की तस्वीर है..

एक दिन सरोजिनी नगर मार्केट घूम रहा था.. वहां भी उसी तस्वीर वाली एक टी-शर्ट दिख गई.. मगर उस टी-शर्ट पर उनका नाम लिखा हुआ था.. 'चे'.. और कुछ नहीं.. शाम में जब अपने कमरे में पहूंचा तो मैंने साइबर कैफे जाकर 'चे' को सर्च किया.. वो जमाना गूगल का नहीं आया था.. अधिकतर सर्च याहू पर ही होते थे.. 'चे' नाम के पन्ने खुलते गये और जितना मैं उनके बारे में जानता गया उतना ही प्रभावित होता गया..

उनके बारे में कुछ और अच्छी बाते तब पढ़ने को मिली जब ओम थानवी जी अपने कुछ संस्मरण मोहल्ला पर हम लोगों से बांटे.. अगर कभी आपको मौका मिले तो वे लेख पढ़ना ना भूलें.. वो आपको यहां, यहां, यहां और यहां मिलेंगे..

उनकी तारीफ करना मेरे वश में नहीं है, अगर मैं उनकी तारीफ करूंगा तो ये कुछ वैसा ही होगा जैसे सूरज को रोशनी दिखाना.. आज जब विकी का जमाना आ गया है तो कोई भी बस विकी पर जाकर एक ही जगह उनके बारे में सारी जानकारी मिल सकती है.. ज्यादा जानने के लिये यहां चटका दबाऐं..

अमवा के पेड़वा पर झुलुआ झुलैया के याद आवेला

अमवा के पेड़वा पर झुलुआ झुलैया के याद आवेला,
गरमी के दिनवा में नानी के गऊँआ के याद आवेला।।

धूल भरल ट्रेफिक में गऊँआ के टमटम के याद आवेला,
आफिस के खिचखिच में मस्ती भरल दिनवा के याद आवेला।
दोस्तन के झूठिया देख माई से झूठिया बोलल याद आवेला,
प्रदूषण भरल पनिया देख तलवा तलैया के याद आवेला।।
गरमी के दिनवा में.......।।

ब्रेड बटर के देखत ही मकुनी अऊर चोखा के याद आवेला,
कोल्ड ड्रिंक के केलोरी में छाछ और पन्ना के याद आवेला।
फास्ट फूडन के दुनिया में सतुआ-चबेना के याद आवेला,
अश्लील भईल सिनेमा से कठपुतली के नचवा के याद आवेला।।
गरमी के दिनवा में.......।।

बीबी के होटल बाजी से माई के खनवा के याद आवेला,
मतलबी पटीदारन में जानवर के वफादारी के ञाद आवेला।
दारुबाजन के हुड़दंगई में भंगिया के मस्ती के याद आवेला,
पुलिसियन के रौब देख रावण अहिरावण के याद आवेला।।
गरमी के दिनवा में.......।।

भ्रष्टाचारी के मनसा देख सुरसा के मुँहवा के याद आवेला,
नेताजी के करनी से गिरगिटया के रंग बदलल याद आवेला।
बेईमान भरल दुनिया में आपन बेईमानी के याद आवेला,
ना होए पुनर्जन्म अब तऽ बस अंतिम समइया के याद आवेला।।
गरमी के दिनवा में.


ना जाने कहां से मुझे ये मिला था.. ना जाने किसका लिखा हुआ है.. अगर आप में से किसी को पता हो तो बताना ना भूलें.. आज जब मैं अपने जी-मेल के ड्राफ्ट को देख रहा था तो वहीं मैंने इसे देखा.. मुझे लगा कि आप लोगों को भी ये पढ़ना चाहिये.. सो यहां पोस्ट कर रहा हूं..

Sunday, May 25, 2008

खामोश सा अफ़साना, पानी से लिखा होता...

पहली बार जब हमारी बात हुई तब उसने एक गीत सुनना चाहा.. मैं टालता रहा.. काफी आग्रह करने के बाद मैंने उसे ये गीत सुनाया था.. उसने पहले इसे कभी नहीं सुना था और यही समझ बैठी थी की ये किसी गायक के द्वारा गाया हुआ गीत है.. एक दिन उसके हाथ ये गीत लग गया और जब उसने सुना तो आश्चर्य चकित रह गई कि ये तो किसी गायिका ने गाया है.. उसे वो गीत कभी अच्छी नहीं लगी, उसने मेरी आवाज में जो पहले सुन रखा था..

समय बितता गया और ना जाने कब वो मुझसे प्यार करने लगी.. उसे ये पता होते हुये भी कि मैं कभी उसे नहीं मिल सकता हूं.. मैं अपनी सारी बुराईयों को गिन-गिन कर बताता, जिससे कम से कम मुझ जैसे बुरे आदमी से वो प्यार तो ना करे.. मगर मैं जितनी बुराईयों को गिनाता, जैसे लगता उसका प्यार उतना ही बढ़ता जा रहा है..

एक दिन उसने मुझसे कहा कि आपको मैं इस जन्म में कभी पा नहीं सकती सो अभी से ही मैं आपको अगले जन्म के लिये बुक कर रही हूं.. बाद में ना कहना.. किसी दिन यूं ही अवसादग्रस्त होकर किसी बात-बेबात पर मैंने कहा की अगर हिंदू धर्म के अनुसार दूसरा जन्म सच में होता है तो मैं धर्म बदल लूंगा मगर दूसरा जन्म नहीं लेना चाहता हूं.. जबाब में उसने याद दिलाया, आप तो पहले ही बुक हो चुके हो.. अब ऐसा मत कहना.. एक जिंदगी तो आपके साथ बिताना चाहती हूं ज्यादा कुछ कहां मांगा है?

लगा जैसे दूर कहीं से कानों में एक आवाज सी गूंज रही है.. खामोश सा अफ़साना, पानी से लिखा होता.. ना तुमने कहा होता, ना हमने सुना होता.. मन में आया एक सिगरेट जला लूं, कुछ तो रहेगा जो ये अहसास दिलायेगा की मैं अकेला नहीं हूं.. भले ही जल कर, भले ही जला कर.. जाने क्या सोच कर वो भी नहीं कर सका, उसे धुवां बहुत लगता जो था..


पहली बार एक कहानी जैसा कुछ लिखा है.. आप बताएं कैसी है?

Saturday, May 24, 2008

ई है चेन्नई नगरिया तू देख बबुवा

"आप है चेन्नई के मरीना बीच पर.. ये है दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बीच.." आई पी एल के आज के मैच शुरू होने के पहले एक ख़ूबसूरत टीवी एंकर कुछ ऐसा ही अंग्रेजी में बोल रही थी.. मैं बस अपना ब्लौग लिखने जा ही रहा था किसी और विषय पर की तभी इस विषय ने मेरा ध्यान अपनी तरफ खींच लिया.. सोचा की इतने दिनों से चेन्नई में हूँ मगर चेन्नई के ऊपर एक भी ढंग का पोस्ट नहीं? ये तो चेन्नई के साथ मैं अन्याय कर रहा हूँ.. :)कोई बात नहीं अब आप मेरी नजर से लगातार चेन्नई को देखते रहेंगे.. मैं ये दावा नहीं करता हूँ की मैं जो भी लिखूंगा वो शत-प्रतिशत सच्चाई होगी, क्योंकि वो मेरी नजर से होगी और हो सकता है की जो मैं देख रहा हूँ वो गलत हो और सच्चाई कुछ और ही हो..

खैर अभी तो मैं ये बताता हूँ की टीवी पर ये चल रहा था और मैं और मेरे मित्र क्या कमेन्ट कर रहे थे..

पहला कमेन्ट : पहली बार लग रहा है की चेन्नई इतना खूबसूरत भी है..(उत्तर भारत से आने वाले युवक युवतियों को उत्तर भारत जैसा खुलापन यहाँ ना दिखने के कारण ऐसी बाते निकल रही थी..) :)

दूसरा कमेन्ट : देखने से तो ये भी तम्बी ही लग रही है.. फिर ऐसी कैसी(मतलब खूबसूरत कैसे)? (तम्बी का मतलब तमिल में छोटा भाई होता है, मगर हम होस्टल के समय से ही तम्बी मतलब सारे तमिलियाँ बना बैठे हैं)..

तीसरा कमेन्ट : मरीना बीच का गन्दा वाला हिस्सा नहीं दिखायेगा साला.. जो साफ सुथरा है बस वाही दिखा रहा है.. :) (मरीना बीच को चेन्नई का सबसे गन्दा बीच माना जाता है..)

तभी वो लड़की तमिल में समुद्र तट पर खडे कुछ मछुवारों से बात करने लगी.. मेरे मन में सबसे पहले आया की ये किस भाषा में बात करेगी? हिंदी और अंग्रेजी में बात करने के लिए क्या कुछ स्पेसल टाईप के मछुवारों को पाकर लायी है? मगर मेरा भ्रम जल्द ही टूटा और वे सभी तमिल में बाते करने लगे.. जब उसने पूछा की आपका सबसे मनपसंद खिलाडी कौन है तो जवाब मिला दोनी(धोनी को ऐसे ही उच्चारण कर रहे थे..)

अच्छा लगा ऐसा सुन कर की लोग क्रिकेट के लिए ही सही मगर सारे भारत से तमिलनाडु को अलग तो नहीं मान रहे हैं.. नहीं तो यहाँ के अधिकतर लोगों के लिए इसे भारत से अलग मानने का चलन सा हो चूका है..

परसों मैं थोडी जल्दी घर आ गया था.. शायद पिचले ५-६ महीने में पहली बार सूरज के डूबने से पहले.. और जैसे ही घर आया वैसे ही इस मौसम की पहली तेज बरसात शुरू हो गई.. उसकी तस्वीर आपके सामने है.. कुछ चित्र मेरे घर की खिड़की से लिया हुआ है और कुछ बालकनी से..




मेरा मानना है की चेन्नई में तीन मौसम होते हैं.. पहली गर्मी, दूसरी तेज गर्मी और तीसरी उससे भी ज्यादा गर्मी.. अभी हम तीसरे मौसम से गुजर रहें हैं सो ये बारिस बहुत अच्छी लग रही थी..

Friday, May 23, 2008

देखो किसने क्या कहा?

मेरे जी-मेल चैट के लिस्ट में मेरे कुछ मित्रों ने मजेदार कैप्शन लगा रखे हैं.. आप भी इन्हें पढ़िये..

WISHING u ALL a SAFE n...
♫ "Dikhawe pe na jao, apni akal lagao. Programming hai waste, trust only copy-paste " ..........>>>>>Powered by ctrl C....>> Driven by ctrl V ....>>

Amit Sharma
♫ What do you want?

CSS Logeshwari
♫ Ojos que no ven, corazón que no siente. ..............it means "What the eyes do not see the heart does not feel"....in short Out of sight, out of mind

CSS Sundaresan.Ram ♥ ...
♫ கனவில் ஒருநாள் கடவுளிடம் "உலகை திருத்த! ஒரு வழிசொல்!"என்றேன் மூன்றே எழுத்தில்! விடை சொல்லி முடித்துக் கொண்டான்! ந~ட்~பு ! (अगर किसी के कुछ समझ में आये तो कृपया मुझे भी बतायें..:))

DEEPAK AWASTHI @ ne...
http://www.crush007.com/v2/predict/1210928278skk

IBM Gurgaon
♫ "There is only one pure desire and that is to be one with the divine.""A star is shining within me and that is my SPIRIT."

pravins
♫ A foolish man tells a woman to stop talking, but a wise man tells her that her mouth is extremely beautiful when her lips are closed

raj
♫ "Life laughs at u when u r unhappy .Life smiles at u when u r happy.But Life SALUTES u when u make others happy "

rajesh kumar
♫ 'it is very simple to be nice ,but quite difficul to be simple'

rishabh
♫ Was ist die Antwort für dieses "Warum"?

CSS VIT Manas
♫ "Man's love is of man's life a part; It is woman's whole existence!"

that wasn't me ... wont m...
♫ shab-e-intzaar aakhir kabhi hogi mukhtsar bhi....

niraj mani
♫ At the end of our lives, we will not be judged by how many diplomas we have received, how much money we have made or how many great things we have done. We will be judged by "I was hungry and you gave me to eat, I was naked and you clothed me. I was homeless and you took me in."

Srikrupa Sanjay
♫ Reality is nothing more than a persistent illusion.....

Vishnu Ratheesh (in Bang...
♫ PSP Slim n Lite :-) It Rocks!! and yeah... So does PAINTBALL !!

abhishek verma
♫ Empty pockets never held anyone back. Only empty heads and empty hearts can do that....!!!!!!!

और मेरा कैप्शन है - खामोश सा अफ़साना, पानी से लिखा होता.. ना तुमने कहा होता, ना हमने सुना होता.. :)

Tuesday, May 20, 2008

वो बुल्गेरियन प्रोग्रामर

(आई टी में अपना कैरीयर बनाने की चाह रखने वालों के लिये)

शिव कुमार, मेरी कंपनी में एक ऐसा नाम जो CEO तो नहीं है पर उनका रूतबा उससे कुछ कम नहीं हैं.. कुछ साल पहले वो CEO ही हुआ करते थे फिर स्वेच्छा से उन्होंने वो पद अपने भाई शिव रमाणी को दे दिया.. जिस दिन हमने इस कंपनी को जाईन किया था, उस दिन उन्होंने हमें एक किस्सा सुनाया था.. किस्सा बुल्गेरियन प्रोग्रामर का, जो उनका मित्र हुआ करता था.. किस्सा कुछ ऐसा है..

उन दिनों CSS कि शुरूवात भर ही हुई थी.. वे लोग कड़ी मेहनत किये जा रहे थे एक कंपनी की नींव खड़ी करने के लिये.. उस समय एक कोई छोटा सा प्रोजेक्ट उनके पास आया, जिसे उन्हें नियत समय में खत्म करके देना था.. क्लाईंट ने ही इनसे पूछा की आप किस प्लेटफार्म या लैंग्वेज में इसे बनाना चाहते हैं.. उस समय और आज भी उनकी नजर में वो बुल्गेरियन ही सबसे अच्छा प्रोग्रामर था सो उन्होंने उसी पर सब छोड़ दिया की आप जैसा चाहें वैसा बनाये..

उस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिये 1.5 महीने का समय मिला था और उस समय में से उस बुल्गेरियन ने लगभग 10-15 दिन तक कोई जवाब नहीं दिया और ना ही किसी से मिला.. 10-15 दिनों के बाद वो अपने पूरे अल्गोरीथम के साथ वापस आये और उसने शिव कुमार से ही पूछा कि आप किस लैंग्वेज में इसे चाहते हैं? जिसमें आप चाहेंगे मैं उसी में बनाऊंगा.. और फिर उसे डेल्फाई में बनाया गया.. जब टेस्टिंग टीम ने उसे टेस्ट किया तो एक भी बग उसके हिस्से में नहीं आया.. हर चीज बिलकुल सही..

शिव कुमार हर नये ज्वाईन किये हुये व्यक्ति को ये किस्सा सुनाते हैं बस ये बताने के लिये की भाषा और प्लेटफार्म किसी भी प्रोग्रामर के लिये कोई बंधन नहीं बनाता है.. अगले पोस्ट में मैं शिव कुमार के व्यक्तित्व के बारे में कुछ लिखूंगा जो अपने आप में अनूठा है और मुझे उसने बहुत प्रभावित भी किया है..

Friday, May 16, 2008

आंकड़ो का खेल कोई मुझे समझाये

ये क्या है? मुझे कुछ समझ में नहीं आया.. पिछले कई दिनों से मैं इसे देख रहा हूं, हर दूसरे-तीसरे सप्ताह इस तरह का कोई आंकड़ा मेरे पास आ रहा है.. एक आईपी एड्रेस जो कि मेरे ब्लौग को देख रहा है ना किसी और वेब पेज से आ रहा है, और विजिट कर भी रहा है तो bout:blank.. तो फिर ये आंकड़ा मुझे क्यों दिखाया जा रहा है?

कल मेरे ब्लौग पर 350 से ज्यादा हिट हुये, जिनमे से लगभग 150 इसी आई पी एड्रेस से थे.. अगर कोई इस सवाल का जवाब जानते होंगे तो मुझे बतायें..

Thursday, May 15, 2008

सपनों को जीने का एक अलग अंदाज

मुझे बचपन से ही टीवी जैसी चीजों से ज्यादा मतलब कभी नहीं रहा है.. क्रिकेट देखता था, कभी-कभार दिवानों की तरह भी.. मगर जब से घर छूटा तब से क्रिकेट देखना भी छूट गया.. ना वो दिवानापन, ना कोई दिलचस्पी.. बस निर्विकार भाव से कभी समाचार पत्रों पर नजर मार लिया की क्या चल रहा है आजकल क्रिकेट की दुनिया में और वो भी बस एक खबर की तरह.. बस खुद अपनी जानकारी बढ़ाने के लिये..

अब भले ही मेरी रूची क्रिकेट में लगभग ना के बराबर हो चुकी है मगर सचिन को खेलते देखने की इच्छा अब भी होती है.. जब मैं बहुत छोटा था तब सचिन के शुरूवाती दिनों के उस मैच को देखा था जिसमें उसने पाकिस्तान के तेज गेंदबाजों को बखूबी खेला था, अब भले ही भारत वो मैच हार गया हो मगर भारत को एक नया सितारा मिल चुका था.. कुछ-कुछ ऐसा आप कह सकते हैं कि अब मैं अगर क्रिकेट देखना चाहता हूं तो बस सचिन को देखता हूं.. चाहे वो मैदान में बौलिंग कर रहा हो या फिर फिल्डिंग ही क्यों ना कर रहा हो..

IPL के शुरू होने से पहले ही जयसूर्या ने कहा था की उसका सपना है कि वो तेंदुल्कर के साथ ओपेनिंग करे और जब उसका सपना पूरा हुआ तो पहली बार IPL में लोगों ने देखा कि जयसूर्या क्या चीज है.. उसने दिखा की सपनों को कैसे जीना चाहिये.. मैं कल पहली बार IPL देखने के लिये आफिस से जल्दी भागा.. फिर भी घर पहूंचते-पहूंचते 8:30 हो गये थे.. जब मैंने मैच देखना शुरू किया उस समय तक चेन्नई कि हालत बहुत ही खराब हो चुका था और हर मुंबई के खिलाड़ी एक अलग ही रंग में थे.. उनकी बॉडी लैंग्वेज उनके अंदाज को बयां कर रहा था.. लग रहा था की सचिन के मात्र मैदान पर मौजूद रहने से ही सब कुछ बदल गया हो..

चेन्नई के बाद जब मुंबई ने अपनी पारी की शुरूवात की तब दोनो ही खिलाड़ी अपने ही रंग में दिख रहे थे.. मगर जैसे लगा कि जयसूर्या अपने सपने को अपने ही ढंग से जीने के मूड में था.. सचिन ने भी उन्हें गेंदों को खेलने का भरपूर मौका देना चाहा और इसी चक्कर में अपना मौलिक खेल को भूल कर अपना विकेट गंवा बैठे.. जब वो आउट होकर जा रहे थे तब मैं भी टीवी के सामने से जाने लगा, मगर जयसूर्या का खेल देखने के मोह ने मुझे जाने नहीं दिया..

मैं भले ही कल से पहले IPL नहीं देख रहा था, मगर चाहता था की चेन्नई हर मैच जीते.. क्योंकि एक तो मैं अभी चेन्नई में हूं और दूसरा मेरे अपने प्रांत(मैं हर उस व्यक्ति को बिहारी मानता हूं जिसने बिहार में जन्म लिया है, भले ही आज झारखंड अलग हो गया हो) के हीरो धोनी भी इसी दल का एक हिस्सा हैं.. मगर कल से मैं मुंबई के साथ हूं.. क्यों ना रहूं भला? जिस तरफ से इस खेल का ख़ुदा खेल रहा हो, उसी के सज़दे में तो ये सर झुकेगा..

चित्र के लिये हिंदूस्तान टाईम्स का आभारी

Tuesday, May 13, 2008

किस्सा-ए-मोबाईल

अमूमन आफिस के समय में मुझे कहीं से फोन नहीं आता है और अगर आता भी है तो किसी बैंक से कि सर आप हमारा क्रेडिट कार्ड ले लो या फिर किसी इंस्योरेंस कंपनी से.. कल मेरा मोबाईल घर में ही छूट गया था.. वैसे भी अच्छा ही हुआ, कभी-कभी मोबाईल से खुद को फ्री करने की चाहत हो जाती है.. ऑफिस में मेरे टीम लीड(श्रीनि) ने मुझसे पूछा की मोबाईल घर में क्यों छोड़ दिये, तो मैंने उन्हें बस यूं ही चिढा दिया की ऑफिस टाईम में तो बस आप ही फोन करते हैं सो आज छोड़ दिया.. कल घर पहूंचते-पहूंचते रात के 8:30 हो गये जबकि मैं कल थोड़ा जल्दी आ गया था..

घर में जैसे ही घुसा वैसे ही विकास ने बोला कि तुरत भैया को फोन करो, तुम्हारे मोबाईल पर 15 से ज्यादा मिस्ड कॉल आये हुये थे.. मैंने जूता खोला और भैया को फोन किया.. उनसे पता चला की शिल्पी ने उन्हें कॉल किया था कि मैं प्रशान्त को 10 से ज्यादा बार कॉल कर चुकी हूं मगर वो फोन नहीं उठा रहा है.. तब भैया ने मुझे 3-4 बार कॉल किया और जब मैंने नहीं उठाया तब उन्होंने विकास को कॉल किया और पूछा की प्रशान्त फोन क्यों नहीं उठा रहा है? तब जाकर विकास ने बताया कि उसका मोबाईल घर पर ही है(उस समय तक विकास घर पहूंच चुका था).. भैया ने शिवेन्द्र का नंबर के लिये पूछा(नये लोगों के लिये जानकारी - शिवेन्द्र मेरे साथ ऑफिस में भी काम करता है और हम साथ भी रहते हैं).. विकास ने उन्हें बताया की दोनों आज-कल अलग टीम में हैं सो अलग आते-जाते हैं..

अच्छी बात ये है की, अभी पापा-मम्मी किसी काम से गया गये हुये हैं सो उन्हें कुछ पता नहीं और उन्हें चिंता भी नहीं हुई..

बुरी बात ये की, जब फोन मेरे पास होता है तो बस बैंक और इंस्योरेंस वाले ही फोन करते हैं.. मगर कल पूरे दिन भर में एक भी मिस्ड कॉल नहीं आया हुआ था..

मजेदार बात ये की, कल जब मैंने अपना मोबाईल घर में छोड़ दिया तो सिर्फ शिल्पी ने ही फोन नहीं किया बल्की गार्गी, प्रियदर्शीनी और वंदना ने भी फोन किया था.. फिर मैंने उन सभी को एक-एक करके फोन किया..

कल की खास बात, बहुत दिनों बाद अपने एक बहुत पुराने मित्र से मुलाकात हुई.. पार्थो नाम है उसका.. कल वो बैंगलोर से चेन्नई किसी काम से आया था..

आज की खास बात, मैंने बहुत दिनों बाद अपने ब्लौग में कुछ लिखा.. ;)

Keywords : Kissa-e-Mobile, Forgot mobile at home.

Monday, May 05, 2008

आयेंगे हिंदी ब्लौगिंग के भी हसीन दिन

अपने ब्लौग के कारण ही उसे नौकरी मिली, और सबसे मजे की बात तो यह है की जहां उसे ज्वाईन करना था उसका पता उसने नहीं पूछा बल्कि उसने पूछा की क्या आप मुझे अपने आफिस का लोकेशन विकीमैपिया पर दिखा सकते हैं? एक ब्लौग जो खुद को कॉरपोरेट ब्लौगिंग वाली कंपनी बताती है, उसने उसके ब्लौग पर लगभग 1-2 महीने अपनी नजर रखी और जब देखा की उसकी पकर ब्लौगिंग पर बहुत ही अच्छी है तो उसे अपने यहां बुलावा भेज दिया..

चलिये आज मैं आपको ले चलता हूं अपने एक ऐसे मित्र के पास जिसे मैं अपना ब्लौग गुरू मानता हूं.. मुझे अपना ब्लौग बनाने की प्रेरणा उसी से मिली थी.. रूपेश मंडल नाम है उसका, मेरे साथ MCA में था.. जब भी अपने कालेज के कंप्यूटर नेटवर्क पर कुछ नई चीज मिलती थी तो हम सबसे पहले यही सोचते थे की ये जरूर रूपेश ने ही खोजा होगा.. कुछ भी नई खुराफाती चीज मिलने पर सबसे पहली शंका रूपेश पर ही जाती थी.. खैर इसके बारे में फिर कभी मैं आपको बताऊंगा, आज मैं आपको दूसरी तरफ ले चलता हूं..

आज के दिन में उसे हिंदी ब्लौगिंग का बहुत ज्यादा ज्ञान नहीं है पर यदा-कदा वो मुझसे इसकी जानकारी लेता ही रहता है.. मैं ये तो नहीं कहूंगा की मुझे हिंदी ब्लौगिंग में भी वहीं लेकर आया मगर ये तो जरूर है की यूनी कोड के माध्यम से हिंदी में लिखना मैं कहीं ना कहीं उसी से सीखा हूं.. उसने अपना ब्लौग पिछली बार 7 फरवरी को लिखा था और उसके बाद अभी तक उसने कुछ भी नहीं लिखा है फिर भी उसे अपने ब्लौग पर औसतन 250 से ज्यादा पाठक मिल रहें हैं.. जानते हैं कहां से पाटकों का ये प्रवाह आ रहा है? 99% सर्च इंजन से..


इस चित्र पर आप भी गौर फरमाईये.. आप खुद ही देख लेंगे की जब सर्च इंजन के इंडेक्स में आपकी रैंकिंग उपर चढ जाती है तो उसका क्या फायदा होता है.. बस हमें इंतजार करना है कि हिंदी पढने वाले लोग कब सर्च करके अपनी पसंद की चीजें खोंजेंगे..



वैसे आज भी हिंदी में सर्च करने वालों की संख्या कम नहीं है और इसका सबसे बड़ा सबूत खुद मेरा ब्लौग है.. हां मगर हिंदी में सर्च करने वाले हिंदी फांट में सर्च नहीं करते हैं.. उनके सर्च करने का तरीका रोमण में हिंदी के शब्दों को खोजना है.. अगर आपने मेरे चिट्ठे को पिछले एक माह से गौर से पढा होगा तो आप भी पायेंगे की मैं ढेर सारे हिंदी के शब्दों को रोमण में लिख रहा हूं.. मगर वो नंगी आखों से आप नहीं देख पायेंगे क्योंकि मैं उन्हें सफेद रंग में लिखता हूं.. अब सर्च इंजन को रंगों से तो कोई मतलब नहीं है सो वो मेरे पन्नों को बरे ही चाव से दिखा रहा है.. और मैं पिछले लगभग 5-6 दिनों से लगातर नहीं लिख रहा हूं फिर भी लोग मेरे चिट्ठे पर गूगल के माध्यम से आ रहे हैं.. जैसा पहले ना के बराबर होता था..

मेरे चिट्ठे पर सर्च इंजन से आने वालों की संख्या में लगभग 30-40% की बढोत्तरी हुई है.. ये सारा चोंचला किसी भी ब्लौग अग्रीगेटर पर से निर्भरता हटाने की है.. ताकि कल मैं भी ये ना कहूं की मेरे बाद मेरे ब्लौग का क्या होगा.. मेरे बाद भी लोग मेरे ब्लौग को पढेंगें और मैं दावा करता हूं की बड़े चाव से पढेंगें..

hindi bloging, mere baad meraa blog log padhenge.

Sunday, May 04, 2008

एक दिन अचानक

एक दिन अचानक
सब रूक सा जाता है..
पंछियों का शोर
मद्धिम सा पर जाता है..
एक आदत
जिसके छूट जाने का भय
ख़त्म सा होता दिखता है
जीने की आदत..

एक ओस की बूँद
किसी आँखों से टपकती
सी दिखती है..
एक दिन अचानक...

राग-दरबारी का शोर
सुनाई देना बंद सा हो जाता है..
मानो बहरों की जमात में
हम भी शामिल हो गए हैं..
कुछ न कह पाने से
गूंगे होने का अहसास
बढ़ता जाता है..
एक दिन अचानक...

एक लकीर सी खींचती दिखती है..
किसी धुवें की तरह..
कुछ दीवारों पर
तो कुछ दिल पर..
एक दिन अचानक...