Thursday, May 15, 2008

सपनों को जीने का एक अलग अंदाज

मुझे बचपन से ही टीवी जैसी चीजों से ज्यादा मतलब कभी नहीं रहा है.. क्रिकेट देखता था, कभी-कभार दिवानों की तरह भी.. मगर जब से घर छूटा तब से क्रिकेट देखना भी छूट गया.. ना वो दिवानापन, ना कोई दिलचस्पी.. बस निर्विकार भाव से कभी समाचार पत्रों पर नजर मार लिया की क्या चल रहा है आजकल क्रिकेट की दुनिया में और वो भी बस एक खबर की तरह.. बस खुद अपनी जानकारी बढ़ाने के लिये..

अब भले ही मेरी रूची क्रिकेट में लगभग ना के बराबर हो चुकी है मगर सचिन को खेलते देखने की इच्छा अब भी होती है.. जब मैं बहुत छोटा था तब सचिन के शुरूवाती दिनों के उस मैच को देखा था जिसमें उसने पाकिस्तान के तेज गेंदबाजों को बखूबी खेला था, अब भले ही भारत वो मैच हार गया हो मगर भारत को एक नया सितारा मिल चुका था.. कुछ-कुछ ऐसा आप कह सकते हैं कि अब मैं अगर क्रिकेट देखना चाहता हूं तो बस सचिन को देखता हूं.. चाहे वो मैदान में बौलिंग कर रहा हो या फिर फिल्डिंग ही क्यों ना कर रहा हो..

IPL के शुरू होने से पहले ही जयसूर्या ने कहा था की उसका सपना है कि वो तेंदुल्कर के साथ ओपेनिंग करे और जब उसका सपना पूरा हुआ तो पहली बार IPL में लोगों ने देखा कि जयसूर्या क्या चीज है.. उसने दिखा की सपनों को कैसे जीना चाहिये.. मैं कल पहली बार IPL देखने के लिये आफिस से जल्दी भागा.. फिर भी घर पहूंचते-पहूंचते 8:30 हो गये थे.. जब मैंने मैच देखना शुरू किया उस समय तक चेन्नई कि हालत बहुत ही खराब हो चुका था और हर मुंबई के खिलाड़ी एक अलग ही रंग में थे.. उनकी बॉडी लैंग्वेज उनके अंदाज को बयां कर रहा था.. लग रहा था की सचिन के मात्र मैदान पर मौजूद रहने से ही सब कुछ बदल गया हो..

चेन्नई के बाद जब मुंबई ने अपनी पारी की शुरूवात की तब दोनो ही खिलाड़ी अपने ही रंग में दिख रहे थे.. मगर जैसे लगा कि जयसूर्या अपने सपने को अपने ही ढंग से जीने के मूड में था.. सचिन ने भी उन्हें गेंदों को खेलने का भरपूर मौका देना चाहा और इसी चक्कर में अपना मौलिक खेल को भूल कर अपना विकेट गंवा बैठे.. जब वो आउट होकर जा रहे थे तब मैं भी टीवी के सामने से जाने लगा, मगर जयसूर्या का खेल देखने के मोह ने मुझे जाने नहीं दिया..

मैं भले ही कल से पहले IPL नहीं देख रहा था, मगर चाहता था की चेन्नई हर मैच जीते.. क्योंकि एक तो मैं अभी चेन्नई में हूं और दूसरा मेरे अपने प्रांत(मैं हर उस व्यक्ति को बिहारी मानता हूं जिसने बिहार में जन्म लिया है, भले ही आज झारखंड अलग हो गया हो) के हीरो धोनी भी इसी दल का एक हिस्सा हैं.. मगर कल से मैं मुंबई के साथ हूं.. क्यों ना रहूं भला? जिस तरफ से इस खेल का ख़ुदा खेल रहा हो, उसी के सज़दे में तो ये सर झुकेगा..

चित्र के लिये हिंदूस्तान टाईम्स का आभारी

7 comments:

  1. प्रशांत एक दम सही बात है.

    मेरा भी यही हाल है....सचिन की बैटिंग देखना भी चाहते हैं और ये भी सोचते हैं कि सचिन नॉन स्ट्राईकर एंड पर रहे. क्योंकि वहाँ खड़े रहेंगे तो आउट नहीं होंगे.....:-)

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  2. हम भी सचिन को खेलते देखना चाहते हैं. उस दिन जबरन टीवी के सामने से हमें हटाया गया तो सचिन भी हट गए।

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  3. सचिन अपने आप मे एक बेजोड़ इन्सान है ........पर मेरा दिल इस बार पता नही क्यों युवराज की टीम ओर दिल्ली की टीम को जीताना चाहता है,गौतम गंभीर की परी देखने मे मजा आता है ओर एक खिलाड़ी जो हरता चला आ रहा है पर मई उसका मुरीद हो गया हूँ .रोहित शर्मा .....मुम्बई मे रोबिन से बड़ी परी की उम्मीद है ओर शेन वार्न की कप्तानी का मैं कायल हो गया हूँ....

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  4. सचिन जब भी अच्छा खेलते हैं, उनका खेल देखना एक अनुभव रहता है.

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  5. @ शिव जी - आपसे सहमत हूं.. वैसे जब मैंने ये पोस्ट लिखा था तब ये उम्मीद थी कि आपकी टिप्पणी जरूर आयेगी क्योंकि आप भी क्रिकेट के बहुत बड़े दिवाने हैं मगर आपने तो पहली ही टिप्पणी मार दी.. :)

    @ लवली जी - क्या कहूं, सब इसी दुनिया से सिखा है.. :D

    @ दिनेश जी - आज मत हटियेगा.. चाहे जो भी हो जाये..

    @ डा. साहब - आपकी हर बात से सहमत हूं पहली बात को छोड़कर.. वैसे जब भी राजस्थान का मैच होता है तो उसी के जीतने की कामना करता हूं.. हैट्स ऑफ टू शेन वार्न.. :)

    @ समीर जी - आपने सही कहा, सचिन को लय में खेलते देखना ही एक अलग अनुभव है..

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  6. ab mujhe sachin nahin lubhate...kabhi main unka divana huaa karta tha..

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