दिल्ली नया-नया पहूंचा था और अपने संघर्ष की भूमी तैयार करने की जुगत में लगा हुआ था.. उन दिनों जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अपना पूरा समय कटता था.. दिन का खाना सतलज छात्रावास में गेस्ट के तौर पर खाता था और अगर कोई पूछ बैठे कि किसके गेस्ट हैं तो 2-4 लड़कों से मैंने दोस्ती कर रखी थी जो मेरी जिम्मेदारी ले सके.. दोपहर का खाना लाईब्रेरी के कैंटीन में खाता और रात का खाना या तो गंगा ढाबा में या फिर टेफ्ला में..
एक दिन, ना जाने किस बात के लिये, मैंने देखा कि टेफ्ला के बाहर कोई स्टॉल लगा हुआ है.. स्टॉल लगाने वाले शायद AISA के समर्थक थे.. उस स्टॉल में जितने भी टी-शर्ट रखे हुये थे उन सभी पर 'चे' कि तस्वीर लगी हुई थी.. उस समय तक मुझे 'चे' के बारे में कुछ भी पता नहीं था.. मैंने सोचा कि शायद ये बहुत फंकी सा लग रहा है जो युवाओं में बहुत पसंद किया जाता है सो ज्यादा सामान बेचने के लिये इसे बेच रहे हैं.. मैं बस खाना खाया और उसे नजर अंदाज करके वहां से निकल गया.. मगर 'चे' से मेरी पहली मुलाकात हो चुकी थी.. भले ही मैं उनका नाम भी नहीं जानता था उस समय..
धीरे-धीरे मैंने पाया की ये चेहरा जे.एन.यू. में बहुत ही जाना पहचाना है सो मुझे ये अनुमान हो चुका था कि ये जरूर कोई बहुत बड़ी हस्ती होगी.. मगर मेरा दुर्भाग्य ऐसा की मैंने जहां कहीं भी उनकी तस्वीर देखी थी वहां उनका नाम नहीं लिखा हुआ था.. कुछ संकोच होने के कारण मैंने किसी से पूछा भी नहीं कि ये किन महाशय की तस्वीर है..
एक दिन सरोजिनी नगर मार्केट घूम रहा था.. वहां भी उसी तस्वीर वाली एक टी-शर्ट दिख गई.. मगर उस टी-शर्ट पर उनका नाम लिखा हुआ था.. 'चे'.. और कुछ नहीं.. शाम में जब अपने कमरे में पहूंचा तो मैंने साइबर कैफे जाकर 'चे' को सर्च किया.. वो जमाना गूगल का नहीं आया था.. अधिकतर सर्च याहू पर ही होते थे.. 'चे' नाम के पन्ने खुलते गये और जितना मैं उनके बारे में जानता गया उतना ही प्रभावित होता गया..
उनके बारे में कुछ और अच्छी बाते तब पढ़ने को मिली जब ओम थानवी जी अपने कुछ संस्मरण मोहल्ला पर हम लोगों से बांटे.. अगर कभी आपको मौका मिले तो वे लेख पढ़ना ना भूलें.. वो आपको यहां, यहां, यहां और यहां मिलेंगे..
उनकी तारीफ करना मेरे वश में नहीं है, अगर मैं उनकी तारीफ करूंगा तो ये कुछ वैसा ही होगा जैसे सूरज को रोशनी दिखाना.. आज जब विकी का जमाना आ गया है तो कोई भी बस विकी पर जाकर एक ही जगह उनके बारे में सारी जानकारी मिल सकती है.. ज्यादा जानने के लिये यहां चटका दबाऐं..
किस्मत वाले है आप............
ReplyDeleteBhaiyya , bahut achcha laga ye jaan kar. kuch naya mila.waise aap chennai mein kab se hain? mera to chennai mein aana jaana laga rehta hai aksar. abhi 16th june ko aa rahi hoon. aur aapne mujhe apne choti behan maana.. main bahut khush hoon ye sun kar.haan aur aap VIT mein kaun si batch mein the?aap kya, 2007 pass out hain?
ReplyDeleteहम भी चे से जमाने से प्रभावित हुए बैठे हैं. :)
ReplyDeleteचे से प्रभावित होने का अर्थ है दुनियाँ को बदलने के अभियान में शामिल होना। आप का स्वागत है।
ReplyDeleteप्रभावित हम भी हैं चे से। पर वे टीशर्ट की चीज ही रह गये हैं।
ReplyDeleteप्रभावित होना और समझ लेना फर्क है। शायद कभी समझ पाऊं।
motorcycle diary नाम की एक फ़िल्म है जो चे के शुरूआती दिनों पर आधारित है. इसके अलावा आपने विकी का लिंक दे ही रखा है.
ReplyDelete"If you tremble with indignation at every injustice, then you are a comrade of mine."
ReplyDelete- Che
Bhai I would suggest that you read the book - The Motorcycle Diaries, you can also watch a movie by the same name. Its very difficult to not to be impressed by Che :)
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ReplyDeletebhai, I already read that book but the movie is still pending with me..
ReplyDeleteActually i can spend 10 hrs with the book but to sit with a movie for 3 hrs is very tough for me.. :)