Thursday, July 01, 2010

"परती : परिकथा" से लिया गया - अंतिम भाग

गतांक से आगे :

गुनमन्ती और जोगमन्ती दोनों बहिनियाँ अपने ही गुन की आग में जल मरीं ।...सास महारानी झमाकर काली हो गयी !

उजाला हुआ । कोसी मैया दौड़कर दुलारीदाय से जा लिपटी । फिर तो...आँ-आँ-रे-ए...
दूनू रे बहिनियाँ रामा गला जोड़ी बिखलय,
नयना से ढरे झर-झर लोर !

हिचकियां लेती हुई बोली दुलारीदाय--"दीदी, जरा उलट कर के देख । धरती की कैसी दुर्दशा कर दी है तुम लोगों ने मिलकर । गाँव-के-गाँव उजड़ गये, हजारों-हजार लोग मर गये । अर्ध-मृतकों की आह-कराह से आसमान काँप रहा है ।"

"मरें, मरें ! सब मरें ! मेरे पिता के टुकड़े पर पलनेवाले ऐसे आत्मीय सम्बन्धियों का न जीना ही अच्छा । जो अपने वंश की एक अभागिन कन्या की पुकार पर अपने घर का खिड़की भी न खोल सकें । धरती का भार हल्का हुआ---वे मरें !"

"धरती कहाँ है दीदी ! अब तो धरती की लाश है । सफ़ेद बालूचरों के कफ़न से ढकी धरती की लाश !"...इस इलाके में सबसे छोटी बहन को बड़े प्यार से दाय कहकर संबोधित करते हैं । दुलारीदाय बहनों में सबसे छोटी--सो भी सौतेली । बड़ी प्यारी बहन ! शील-सुभाव इतना अच्छा कि...।

"दीदी अब भी समय है । उलटकर देखो । क्रोध त्यागो । दुनिया क्या कहेगी?"

कोसी मैया ने उलटकर देखा--सिकियो न डोले ! कहीं हरियाली की एक रेखा भी न बची थी । सिहर पड़ी मैया भी ! बोली--"नहीं, धरती नहीं मरेगी । जहाँ-जहाँ बैठकर मैं रोई हूँ, आंसू की उन धाराओं के आस-पास धरती का प्राण सिमटा रहेगा ।...हर वर्ष पौष-पूर्णिमा के दिन उन धाराओं में स्नान करने से पाप धुलेगा । युग-युग के बाद, एक-एक प्राणी पाप से मुक्त होगा । तब, फिर सारी धरती पर हरियाली छा जायेगी ।...धाराओं के आस-पास सिमटे हुए प्राण नए-नए रंगों में उभरेंगे ।"

दुलारीदाय ने चरण-धुली ली और मुस्कुराकर खड़ी हो गई । कोसी मैया खिलखिलाकर हँस पड़ी---"पगली ! दुलारी ! ...हँसती क्यों है ?" मैया हंसी---दुलारी के आँचल में नौ मन हीरे झरे । हाँ, कोसी मैया हँसे तो नौ मन हीरे झरे और रोये तो नौ मन मोती ! दुलारीदाय को वरदान मिला--"युग-युग तक तुम्हारा नाम रहे । तुम्हारे इलाके का एक प्राणी न भूख से मरेगा, न दुःख से रोयेगा । न खेती जरेगी और न असमय अन्न झरेंगे । गुनी-मानी लोग तुम्हारे आँगन में जन्मेंगे । कछुवा-पीठा जमीन पर तंत्र-साधना करके तुम्हारा मान बढाएगी तुम्हारी संतान ।"

प्रथम भाग
द्वितीय भाग
तृतीय भाग

2 comments:

  1. थोड़ी पटना में रहकर सीखी, थोड़ी अब पढ़कर सीख लेंगे ।

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  2. इस ऐतिहासिक रचना को यहाँ प्रस्तुत करने का शुक्रिया।
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    किसने कहा पढ़े-लिखे ज़्यादा समझदार होते हैं?

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