Tuesday, June 01, 2010

एक शहर, मसरूफियत और जिंदगी

अब उसका यहाँ चेन्नई से जाना लगभग तय हो चुका है.. एक तरह का काउंटडाउन चल रहा है.. कल तक जब उसका जाना तय नहीं था तब वह हर दूसरे-तीसरे दिन चेन्नई को कोसती हुई मिलती थी.. और किसी तरह यहाँ से भागने कि इच्छा जताती रहती थी.. दफ्तर में वर्क प्रेसर भी सामान्य से कुछ अधिक ही था उसे, ऊपर से अपने टीम के भीतर की राजनीति में भी बुरी तरह पिसी हुई थी.. कुल मिलाकर माहौल कुछ ऐसा बन भी चुका था कि कोई भी वह शहर ही छोड़ कर भागने को छटपटाने लगे..

जिसके बारे में बता रहा हूँ उसका नाम मुक्ता है..

कल मैंने उसे अपने घर खाने पर बुलाया था, और एक अरसे बाद कई घंटे बैठ कर बातें हुई.. जिंदगी मुसलसल कुछ इस तरह उलझा देती है कि एक ही शहर में रहते हुए भी मसरूफियत में मिलने का ख्याल भी नहीं आ पाता है.. उसका कहना था कि जमाने बाद पूरी खा रही है(मैंने जो बनाया था, वही तो खायेगी न :))..

इससे दोस्ती भी अजीब तरीके से हुई.. यह मेरी कालेज के मित्र कि मित्र है, और जब TCS वालों ने इसकी पोस्टिंग चेन्नई दे दी तब मेरी मित्र की मित्र ने इसे मेरा नंबर देते हुए कहा की "प्रशान्त चेन्नई में है, और उससे जो भी मदद करने को कहोगी, वह कर देगा".. अब मैंने कितनी मदद की, इसका हिसाब तो इसे ही बैठाने दिया जाए..

यह कई दिनों से चेन्नई से बाहर जाने कि जुगत में लगी हुई थी, मगर TCS के भीतर ही.. यह प्रयास कर रही थी Relocation का.. पहले इसके जाने का दिन भी तय हो गया था.. मगर फिर अचानक से इसे कहा गया कि चाहे कुछ भी हो, छः महीने से पहले टीम से Release नहीं किया जा सकता है.. ठीक उसी समय इसे Wipro में नई नौकरी मिल गई और आनन-फानन में Resign मार कर निकल गई वहां से..

अब जब इसके जाने के दिन पास आ गए हैं तब इसकी बातों में चेन्नई को लेकर कोई कसक नहीं दिख रही थी, उल्टा कहीं ना कहीं इस शहर से एक लगाव सा भी झलक रहा था.. इसका कहना था, "इस शहर ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है.. कम से कम एक इंसान के कई चेहरे के दर्शन मुझे चेन्नई में ही हुए".. मेरा मानना है कि अगर हालात बहुत कठिन हों तो आपको कई बातें अपने आप ही सिखने को भी मिल जाती है..

चेन्नई शहर में रहते हुए भी पहले साल में सिर्फ एक बार इससे मिला था.. अगर दूसरे साल कि बात याद करूँ तो इससे हुए मुलाक़ात को भी अँगुलियों पर गिन सकता हूँ.. मगर हाँ, पिछले छः महीने में इससे मिलने कि रफ़्तार में कुछ तेजी आई थी.. अकेलेपन कि कुछ साथियों में इसका नाम भी शुमार कर सकता हूँ.. जब यह चेन्नई में ही थी तब भी कम ही मिलता था.. हम दोनों कि ही अपनी व्यस्तताएं थी.. अब भी कम ही मिलूँगा.. मगर एक-एक करके साथियों का चेन्नई छोड़ कर जाना अखर रहा है..

यह जब परेशान थी तब मैं चाहता था कि इसे कोई नई नौकरी मिल ही जाए चेन्नई से बाहर, जिस दिन इसे नौकरी मिली उस दिन मैं भी खुश था कि चलो इसे टेंशन से छुटकारा तो मिला.. मगर जैसे-जैसे इसके जाने के दिन आ रहे हैं, वैसे-वैसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है.. कम से कम एक तसल्ली तो है कि अधिक दूर नहीं है, बैंगलोर में ही तो रहेगी.. फिलहाल तो चेन्नई में एक और साथी कि कमी महसूस होगी..

इस चित्र में - यह चित्र इसके फेसबुक के प्रोफाइल से लिया हूँ मैं..

मुझे पता है कि यहाँ "मसरूफियत" कि स्पेलिंग सही नहीं है, क्या कोई मुझे बताएँगे कि सही क्या है?

24 comments:

  1. सुंदर और मीठी पोस्ट!
    इस पोस्ट में दो इंसान नजर आते हैं।
    मसरूफियत की हिज्जे की चिंता ना करो। अधिक से अधिक कहीं नुक्ते की गलती होगी। वह देवनागरी में लिखो तो मुआफ है।

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  2. प्रशांत...ये कहानी तो हम सुन ही चुके हैं...उस रात इनके बारे में भी तो तुम बता रहे थे...
    वही सब बातें लिखी हुई हैं... इसमें बड़े ही प्यारे अंदाज़ में लिखा है भाई
    अच्छा लगा पढ़ के..
    उस दिन वाली बात याद आ गयी फिर से...

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  3. शहर भी इंसानों की तरह होते हैं, अक्सर बिछड़ते हुए दोस्ती हो जाती है इनसे. तुम्हारी दोस्त के दोस्त हैं न बंगलोर में? नहीं तो मेरे बारे में बता देना :)

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  4. होता है प्रशांत जी.. अच्छे दोस्तों के जाने पर ऐसा ही लगता है..

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  5. यार पीडी,सप्लाय का पानी आ गया। आधी पोस्ट पढ़कर ही उठना पड़ रहा है। बाकी आकर पढञता हूं

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  6. पूजा ने एक बड़ी बात कह दी है पी.डी.....शहर भी दोस्तों की तरह होते है......तीन दिन पहले एक ओर दोस्त ने कुछ मिलता जुलता सा कहा था ....के यार घर भी दोस्तों सरीखे होते है उन्हें छोड़कर जाना अजीब सा लगता है

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  7. अरे ये TSC वालों का ना यही पंगा रहता है आज यहाँ तो कल वहां पर जहाँ कहो वहां नहीं भेजेंगे कभी :)हम भी भुग्तभोगी हैं भाई :)
    बहुत प्यारी सी पोस्ट..

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  8. बढिया पोस्ट है।

    दरअसल जहां हम रहते हैं उस शहर से एक किस्म का लगाव तो हो ही जाता है। इस तरह से एक एक का र.वाना होना अखरता ही है।

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  9. क्या कहू दोस्त... जब मैने TCS से रिलोकेशन मागा था तब भी यही नखरे थे... आनन फ़ानन मे अन्य विकल्प देखने पडे.. लेकिन अभी भी मुम्बई मे ही हू...शुरु मे बहुत लडा हू इस शहर से.. इसे कभी अपना नही माना... पर अब जैसे हारता जा रहा हू.. इसका खालीपन अपना अपना सा लगता है.. पता नही अब कही और रह पाऊगा कि नही...

    ज़िन्दगी अब यही दिखने लगी है.. ये शहर अपना लगने लगा है... पता है प्रशान्त अब तो बोरीवली वाला घर भी छोडते नही बनता जैसे सब वैसा ही रहे.. सब साथ रहे.. लेकिन सब कहा साथ रहते है :(

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  10. सही बात अब हम गुडगाँव में बैठ कर सारा टाइम गुडगाँव को कोसते है पर जानते है जिस दिन कही और जाना पड़ा तो .. हर गली हर मोड़ पैर बाँध लेगा

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  11. मीठी लगी आपकी पोस्ट भी और आप सभी दोस्तों की मीठी मीठी बातें भी ... बहुत सुंदर पोस्ट !

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  12. @ पूजा - मुक्ता के कई मित्र बैंगलोर में हैं.. इस रविवार कि ही बात है, जब मैं इसे तुम्हारे बारे में बता रहा था.. ब्लॉग से बात चलते-चलते तुम तक पहुंची थी.. :)

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  13. @ पंकज और शिखा जी - कम से कम मैं इस रिलोकेशन के चक्कर से बाहर हूँ.. भारत में मेरी कंपनी के डेवेलपमेंट ब्रांच या तो चेन्नई में है या फिर कोयम्बटूर में.. अब मैं कोयम्बटूर रिलोकेशन लेने से तो रहा.. :) और रिलोकेशन के नाम पर मुझे विदेश भेजने से मेरी कंपनी वाले रहे.. :D

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  14. chalo kam se kam aap to bache rahoge PD bhai...

    dwivedi ki ek line bahut pasand aai jo ki haqikat hi hai ki is post me 2 insan nazar aate hain...

    mann ko chhuta hua likha hai bandhu tumne....
    har shahar me yahi hota hai agar aap kuchh saal vahaa rah jao....apna sa hi ban jata hai...

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  15. सुन्दर और ,,,मन को भा गयी,,,, पर जीवन ऐसे ही चलता है

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  16. na koi dost hai, na rakeeb hai,
    tera sheher kitna ajeeb hai.

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  17. बढ़िया पोस्ट है। उस्ताद हो रहे हैं पीडी लिखने में।

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  18. मैं इसे क्या कहूँ? मसरूफ़ियत के हिज्जे तलाशती पोस्ट - या फिर बस "उम्दा"!

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  19. छोड़ के जाना हर बार अखरता है चाहें वों शहर हो या कोई साथी.....जाते समय जिस चीजं को छोड़ते हैं उसके लिए आँखों में आंसू आही जाते हैं.....

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  20. Iss saleeke se zindagi ka taar buna hai
    Har shehar se masrufiyat ka alankaar juda hai
    Naye logo ko dost bananey me hoti hai jo kashamkash
    Har shehar k raas na aane me chipi wo wajah hai

    Shayad apni baat theek se keh nahi paai mai yaha...par batane ka prayas jaroori karungi..mai hindi blog nahi padhti aur prashant ye bahut achhey se jaante ho tum..par mere bare me tum kya likhe ho ye thought thoda motivating tha mere liye....

    Bahut kam shabdo me poora marm keh dia hai tumne....

    Apne parivaar, apne dost, apne shehar se bahar aane me takleef hoti hai aur kuch bhi naya apnanney me vidroh hota hai...woi jhalakta hai kisi naye shehar me usey kosne me....par vidroh me bhi ek judaav hai aur wohi judaav uss jagah se door jaane pe dikhta hai..

    Mujhe to ye fikar hai ki Chennai ko kos nahi paungi abb :-P par tasalli hai Kosne k liye ek naya shehar mil gaya hai Bangalore....

    Bahut achhi post hai tumhari....ya mujhe isliye pasand aai kyunki mere bare me thee??? :-P

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  21. my Hindi writing is very poor, so please pardon me for resorting to English


    Lucky are those ones who dived deeper into the ocean to get to the real pearl.... most people think the attraction of the sea is just in its waves....
    Next time when u invite her for a treat.... why? let it be a surprise


    In the walks of life we meet such wonderful personalities who make few moments of life so precious... like a rare pearl from a pink city.... a true treasure collected during the adventure called life

    Risto me pyar ki mithas rahe,
    Na Mitne wala ek Ehsas rahe
    Kahne ko to Choti si hai Jindi,
    Magar lambi ho jaye agar,
    Apki dosti ka sath rahe…

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