मन स्थिर नहीं हो पा रहा है.. कई तरह के अंतर्द्वंदो से घिरा हुआ मन आपस में ही टकरा कर जैसे अंदर ही घुटकर दम तोड़ दे रहा है..
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आजकल खुद से लड़ाई चल रही है..
मन स्थिर नहीं हो पा रहा है.. कई तरह के अंतर्द्वंदो से घिरा हुआ मन आपस में ही टकरा कर जैसे अंदर ही घुटकर दम तोड़ दे रहा है..
मन स्थिर नहीं हो पा रहा है.. कई तरह के अंतर्द्वंदो से घिरा हुआ मन आपस में ही टकरा कर जैसे अंदर ही घुटकर दम तोड़ दे रहा है..
hi dear ! whats the matter ? whats going on? just call me if you are disturbed and want to talk with someone.
ReplyDeleteकभी कभी हम भी इसी तरह के हालात में रहते हैं :) लेकिन अभी थोड़ा ठीक है हालात :P पता नहीं फिर कब गड़बड़ा जाए ;)
ReplyDeleteउत्साह बढ़ायें या स्वयं आ जायें ।
ReplyDeleteइसमे कौन सी नयी बात है, हमारे साथ तो यह रोज होता है.
ReplyDeleteहोता है ऐसा भी !
ReplyDeleteबोलें बतियायें
राह पायें!
होता है ऐसा भी !
ReplyDeleteबोलें बतियायें
राह पायें!
अच्छा लगा पढ़कर। ज़्यादा कह पाने की स्थिति में नहीं हूँ अभी।
ReplyDeleteअभी प्रशान्त उस मनोदशा में हैं, जैसी में एक महीने - कुछ दिन पहले पंकज उपाध्याय थे, जैसी में मैं अक्सर हो जाया करता हूँ। आदमी के ख़ुद के लिए यह वक़्त चाहे जैसा हो, उसकी सोच के लिए बड़ी ग़ज़ब की भावुकता, कभी-कभी अवसाद और अक्सर एक अच्छी सी मनहूसियत, जिसपर बाद में हँसा जा सके -इनकी उपलब्धि होती है बिना प्रयास के।
ReplyDeleteबस दो दिन से पाँच-छह दिन तक…
फिर वापस ज़िन्दगी की रेस शुरू।