अपने घर का सबसे प्रोब्लेमेटिक बच्चा मैं खुद को ही मानता हूँ.. हर बात पर गुस्सा, हर चीज से खीज, पढाई लिखाई से भी हमेशा दूर.. मगर फिर भी पापाजी का दुलारा.. पता नहीं कब तक लाड़-छिड़ियाते रहा हूँ.. अब पापाजी पर तो नहीं लेकिन जब घर जाता हूँ तो मम्मी पर जम कर लाड़-छिड़ियाता हूँ.. घर में पापाजी से सबसे ज्यादा पिटाई भी मुझे ही लगी है, मगर उसे अब आंकलन करता हूँ तो उसे गुस्से में की गई पिटाई नहीं पता हूँ.. एक नियंत्रित मात्र डर पैदा करने के लिए एक सजा ही पाता हूँ.. और जब भी पिटाई लगी तो वो सिर्फ दीदी को मारने के एवज़ में.. वैसे पिटाई कि बात करें तो भैया को सबसे अधिक पिटाई लगी है.. मगर पापाजी से नहीं, मम्मी से.. अभी याद करने बैठा हूँ तो एक वाकया भी ऐसा याद नहीं आ रहा जब भैया को पापाजी से पिटाई लगी हो(कल सुबह ही पापाजी से लड़ने वाला हूँ कि आप भैया को कभी नहीं मारे, आज मारिये.. भैया को पिटाई खिलाना है).. :)
उनका एक तकिया कलाम जैसा ही कुछ हुआ करता था.. वो हमेशा हम बच्चों के बारे में कहते थे कि "मेरा बैल है, हम कुल्हारिये से नाथेंगे, कोई क्या कर लेगा?".. आज जब मैं अपने भतीजे के बारे में यही कहता हूँ तो बोलते हैं कि हम कभी नाथे थे क्या जो तुम अपने बैल को नाथोगे?
मैं पापाजी से एक बात सिखने कि बहुत कोशिश करता हूँ.. वो कभी भी ऑफिस का तनाव घर लेकर नहीं आते थे.. ऑफिस का टेंशन ऑफिस में रहता था.. एक प्रशासनिक अधिकारी को कई तरह के तनाव हर वक़्त घेरे रहता है, मगर वह कभी भी हम देख नहीं पाए.. दफ्तर में एक कड़क अधिकारी कि पहचान रखने वाले पापाजी के मातहत कर्मचारी अगर घर में उन्हें हमारे साथ देख लेते थे तो आश्चर्य में पड़ जाया करते थे.. 'साहब ऐसे भी हैं, ये तो पता ही नहीं था' वो एक बार मुझे एक बात बोले थे, जिसे मैंने गाँठ बाँध कर रख लिया है.. वो बोले थे कि "किसी भी इंसान कि पहचान इससे नहीं होता है कि वह अपने से बड़े के साथ कैसा बर्ताव करता है, बल्कि इससे होता है कि वह अपने से छोटे से कैसा व्यवहार रखता है".. मैं अच्छे से जानता हूँ कि पापाजी अगर ये पढेंगे तो उन्हें आश्चर्य ही होगा कि वो कब ये बात बोले थे.. बाद में भैया से भी ये मैंने सुना था..
अभी कुछ दिन पहले पापाजी से बात हो रही थी.. उन्हें मैं किसी बात पर अपने कुछ दोस्तों के बारे में बता रहा था.. बता क्या रहा था, एक तरह का कान्फेशन(Confession) ही था.. उन्हें अपने दोस्तों कि खूबियों के बारे में बता रहा था कि वो किन-किन मामलों में मुझसे अच्छे हैं.. पापाजी पूछ बैठे, "क्या वे सब तुम्हारे आदर्श हैं?" मेरा कहना था कि अभी तक अपने जीवन में किसी भी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिला हूँ जिसे मैं अपना आदर्श मान सकूं, अगर उन्हें अपने आदर्श कि कसौटी पर कसने बैठ गया तो वे मुझे बेचारे से नजर आयेंगे.. मेरा एक्सपेक्टेशन लेवल बहुत ऊंचा है इस मामले में.. मेरा कहना था कि किसी को खुद से अच्छा मानना एक अलग बात है और किसी को अपना आदर्श मानना अलग.. हाँ मगर यह बात जरूर है कि अगर कोई मुझसे पूछे कि तुम कैसा बनना चाहोगे, तो मेरा जवाब होगा "अपने पापा जैसा"..
एक बार आठवीं कक्षा कि परीक्षा में मैंने चोरी कि थी.. परीक्षा भवन में तो किसी को कुछ भी पता नहीं चला मगर इंस्ट्रूमेंट बाक्स में छुपाया गया चीट घर में गवाही दे गया.. जिस दिन घर में पता चला उस दिन ही उसका परिणाम भी आने वाला था और मुझे स्कूल में भैया से ये खबर मिली.. मगर उस पर भी पापाजी मुझ पर चीखें-चिल्लाये नहीं और ना ही मार पड़ी.. और मुझे वह आत्मग्लानी कई दिनों तक खाती रही, जिसके कारण से फिर मुझे फेल होना तो मंजूर था मगर कभी चोरी करने कि हिम्मत नहीं हुई.. एक दफ़े भैया भी एक गलती किये थे अपने कालेज में, घर आने पर जब दो-तीन दिनों तक कोई कुछ भी उसके बारे में नहीं पूछा तो तीसरे दिन भैया खुद ही पापा-मम्मी के सामने फूट-फूट कर रोने लगे..
अभी अगस्त २००८ कि बात है.. केशू होने वाला था सो घर के सभी सदस्य इकठ्ठा थे.. बातों का दौर चल रहा था.. दीदी यूँ ही पूछ बैठी थी, "आपके होठों का रंग इतना काला क्यों होता जा रहा है? सिगरेट पीने लगे हैं क्या?" एक पल को मैं ठिठका, और बोल दिया "हाँ".. यूँ तो भैया-भाभी को पता था और शायद भैया मम्मी को भी बता चुके थे.. मगर पापाजी को इसकी भनक भी नहीं थी.. एक सन्नाटा सा छा गया.. मम्मी कुछ बोली, जो मुझे याद नहीं है.. क्योंकि मैं पापाजी कि डांट सुनना चाह रहा था.. पापाजी एक बार फिर कुछ नहीं बोले.. ना ही आँखे तरेरे.. एक-दो मिनट बैठे और फिर धीमे से उठकर चुपचाप चले गए..
२२ अप्रैल को पापा-मम्मी कि शादी कि सालगिरह पर ली गई तस्वीर
दो बजिया बैराग्य वन
दो बजिया बैराग्य टू
दो बजिया बैराग्य थ्री
चलते-चलते : लिख चुकने के बाद जब पिछले पोस्टों का लिंक ढूंढ रहा था तो मैंने पाया कि एक-दो बातों को मैंने रिपीट किया है इस दफ़े.. अपनी सफाई में मैं कह सकता हूँ कि पहली बार वह छोटे में ही निपटा दिया था, जबकि इस बार यह विस्तार लिए हुए है.. मगर कहीं ना कहीं सागर कि बात भी सच होती दिख रही है.. उसने कहा था "एक सच बताऊँ ... जब मैंने तुम्हें पहली बार पढ़ा था तो मुझे लगा था इतनी ज़मीनी बात करने वाला ज्यादा पोस्ट नहीं लिख सकता... लेकिन में गलत था... अपनी साफगोई और इमानदारी के कारण तुम बहुत कुछ लिख सकते हो जो प्रभावित करती रहेंगी... (माफ़ करना PD मैंने तुम्हारे बारे में गलत सोचा था)" अब मुझे लग रहा है कि सागर कि बात कही सच ना हो जाए..
सिगरेट पीना बंद कर दें ! आपके आपके आदर्श आइकान को बहुत प्रसन्नता होगी |
ReplyDeleteऔर हाँ भगवान् करे ....सागर भाई की बात सच हो जाए !
जय राम जी की !!!
शुभ रात्रि !
प्राइमरी का मास्टर
जब पापा जी कुछ नहीं बोले तो आत्म ग्लानि में सिगरेट छोड़ क्यूँ नहीं देते भई?
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है...
किसी भी इंसान कि पहचान इससे नहीं होता है कि वह अपने से बड़े के साथ कैसा बर्ताव करता है, बल्कि इससे होता है कि वह अपने से छोटे से कैसा व्यवहार रखता है।
ReplyDeleteबहुत महत्वपूर्ण बात है।
इतनी अच्छी पोस्ट में सिगरेट कहाँ से आ गई.. मुझे तो नहीं दिखी.. वैसे प्रशांत तुम प्रवीण और समीर भाई की बात को इग्नोर मारना.. एन्जॉय..
ReplyDeleteबहुत खूब! बहुत सुन्दर!
ReplyDeletePD वैसे बुरी आदतें सभी को बुरी लगती हैं, पर छूटती तभी हैं जब अपने को बुरी लगने लग जायें। और हाँ एक ओर बात बुरी आदतें होने से व्यक्ति बुरा नहीं हो जाता, आदत आदत होती है बुरी और अच्छी नहीं केवल हमारे मानने की बात हैं कि ये बुरी है और ये अच्छी यह वर्गीकरण हमारे समाज ने ही किया है और सामाजिक प्राणी होने के नाते तुम उसी दायरे में आते हो।
ReplyDeleteबढ़िया लिखे हो...
सोचते हैं बहुत सारी बातें लिख नहीं सकते पर तुम बहुत हिम्मती हो जो इत्ता सब लिख दिये हो.. हमारी बधाई है तुम्हें और दिल से शुभकामनाएँ
सच्चे हृदय से लिखी गई ये बातें आपके लिए गंगा नहाने जैसा है, आप पापमुक्त होते जा रहे हैं इस कन्फेसन से।
ReplyDeleteवैसे एक बात बताइए, आप दो बजे तक ऐसे विचारों में विचरित होते हैं तब सुबह उठते कब हैं:)
और हॉं, अब तक मैंने ऐसा कोई कंफेसन नहीं किया, इसलिए एक मई को गंगा नहाने जा रहा हूँ:)
तो ये सब सागर का किया धरा है.. उसको तो भी धरता हूँ मैं..
ReplyDeleteवैसे मुझे तो अपने पिताजी से किसी तरह की ठुकाई याद नहीं.. हा मम्मी के दो चार लप्पड़ जरुर याद है..
प्रशान्त जी, आपके के पिताजी से बहुत कुछ सीखा । स्नेह और सुधारने की कला ।
ReplyDeleteसतही बातें ही जिन्दा होने के मायने समझाती हैं...बड़ी बड़ी जिन्दगी की फिलासफी तो बोर कर देती है नहीं पढ़ा जाता...
ReplyDeleteसतही बाते आगे भी जारी रहे ....
भावुक हो गया हूं।
ReplyDeleteक्या टिप्पणी दुं।
Worthy son of a worthy father !
ReplyDelete"Smoking is injurious for health"
महत्वपूर्ण बात है इस अहसास का बने रहना .आगे कई सालो तक ......
ReplyDeleteचाय नहीं पीने वाले सिगरेट पीते हैं !!!!!!!!!!!
ReplyDeleteइस टेम्प्लेट में कांट्रास्ट ठीक करो टिप्पणी पढ़िए नहीं जाती
चाय नहीं पीने वाले सिगरेट पीते हैं !!!!!!!!!!!
ReplyDeleteइस टेम्प्लेट में कांट्रास्ट ठीक करो टिप्पणी पढ़िए नहीं जाती
anjule shyam ji ki baton me dam hai :)
ReplyDelete"सतही बातें ही जिन्दा होने के मायने समझाती हैं...बड़ी बड़ी जिन्दगी की फिलासफी तो बोर कर देती है नहीं पढ़ा जाता"
jaari rahe..
dil se likha hua hai bandhu,
ReplyDeleteise tumhari aatm-swikarokti ke rup me darj kiya jana chahiye
हम बहुत ही मन लगा कर तुम्हारे सारे ब्लॉग पढ़ते है .. काफी अच्छा लिखते हो .. कल तुम ने कोई ब्लॉग का लिंक डाला था जीमेल बज्ज़ पर .. अब बेटा माँ को मिस करने लगा है .. उस ब्लॉग को और तुम्हारे इस ब्लॉग को आपस मैं जोड़ रहा हूँ .. हम ऐसे माध्यम वर्गीय परिवार से है जहा यह नहीं कहा जाता की माँ .. मैं आप से बहुत प्यार करता हूँ .. माँ .. मैं आप को मिस कर रहा हूँ .. इत्यादि .. यह सब प्रथा तो शायद अमेरिका से उठ कर आया है तभी तो वह के लोग मदर डे और फाठेर डे मानते है ..
ReplyDeleteऔर हाँ हर बेटे का सपना होता है .. की वोह अपने पापा के जैसे बने .. उनकी तरह बाते करे.. लेकिन यह सब हम पापा के आगे कह नहीं सकते .. मेरे कहना का मतलब बन के दिखाओ न उनको कह कर बन कर दिखाओ .. दुनिया खुद देख लेगी समझ लेगी की तुम पापा के पदचिन्हों पर चल रहे हो ..
और हाँ तुम्हारे पापा की वोह बात मैं गाँठ बांध कर रख लिया .. किसी भी इंसान कि पहचान इससे नहीं होता है कि वह अपने से बड़े के साथ कैसा बर्ताव करता है, बल्कि इससे होता है कि वह अपने से छोटे से कैसा व्यवहार रखता है ..
अच्छा लिखते रहो .. मेरी शुबकामनाएं .. -- जय हिंद, जय भारत ..
"किसी भी इंसान कि पहचान इससे नहीं होता है कि वह अपने से बड़े के साथ कैसा बर्ताव करता है, बल्कि इससे होता है कि वह अपने से छोटे से कैसा व्यवहार रखता है"
ReplyDelete.... सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...............
बेबाक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबिंदास लेखन
सिगरेट के लिए तो हम कुछ नहीं बोलेंगे, केवल आंखे तरेर कर रह जो गए हैं :-)
तो सिगरेट पीना छोड़े कि नहीं ? पता है, मेरे बाउ भी कभी गुस्सा नहीं होते थे, मारते भी नहीं थे, बस ऐसे ही आत्मग्लानि की आग में झुलसने देते थे...
ReplyDeleteये फोटो मैंने फ़ेसबुक पर देखी थी तो कहने वाली थी कुछ, पर अपने अम्मा-बाउ याद आ गये और मैं अब भी उनको याद करके फूट-फूटकर रो लेती हूँ, बस आस-पास कोई हो न तभी...
मैं कहने वाली थी कि मम्मी कितना शर्मा रही हैं इस फोटो में... उनके चेहरे पर शर्म है और पापा के चेहरे पर प्यार... इस तस्वीर को देखकर आसानी से बताया जा सकता है कि दोनों कितने खुश हैं.
तुम बहुत किस्मतवाले हो प्रशान्त, जो तुम्हें ऐसे मम्मी-पापा मिले. तुम्हें और तुम्हारे परिवार को शुभकामनायें !
@ Sajjan Sir - मुझे पता है की आप मेरे ब्लॉग के कुछ साइलेंट रीडर में से एक हैं, और आपका पहला कमेन्ट पढ़ कर मुझे बेहद खुशी हुई.. :)
ReplyDeleteवैसे एक बात कहना चाहूँगा, किसी दूसरी सभ्यता कि हर बात बुरी नहीं होती है.. जैसे पाश्चात्य सभ्यता से लेकर ही सही, मगर एक बार अपने पापा-मम्मी को "Love you" या "Miss you" कह कर देखिये.. उन्हें जरूर अच्छा लगेगा..
वैसे भैया, आपकी हिंदी भी बेहद अच्छी है.. आप भी हिंदी में लिखना क्यों नहीं शुरू करते हैं?
बहुत बहुत बहुत सुन्दर.. :)
ReplyDeleteपता है हम एक बार शिवरात्रि मे भाग खाकर घर फ़ोने किये थे.. पापा से बोले कि पापा आज भाग खाये है.. वो कुछ नही बोले और फ़ोन मम्मी को दे दिये और मम्मी तो शुरु हो गयी :)
पता है ये भी एक अनसेड रूल मे से एक है.. मम्मिया कितनी ही बार तो एक लिन्क का काम करती है.. अभी भी मम्मी से घन्टो बात कर सकता हू.. पापा से नही कर पाता तो आजकल मम्मी को पीछे बोलते हुये सुनता हू कि ’अरे पूछिये न कि खाने मे क्या खाया?’ :)
छोडो.. एक पोस्ट बनती है हमारी भी.. :)
भाग= भांग
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट!
ReplyDeletepadh kar bahut emotional ho gayi.kabhi main bhi aap ki tarah papa jaisa bananaa chahti thi.lekin ab pata nahi kyun shaadi ke 7 vars ke baad kewal mummy jaisi banne ki ichchha hoti hai.unke jaisi safal aur sughad grihini banna.
ReplyDeletepadh kar bahut emotional ho gayi.kabhi main bhi aap ki tarah papa jaisa bananaa chahti thi.lekin ab pata nahi kyun shaadi ke 7 vars ke baad kewal mummy jaisi banne ki ichchha hoti hai.unke jaisi safal aur sughad grihini banna.
ReplyDelete@ दीदी - क्या कहें इसपर? आप ये सोचिये कि लिखते समय मैं कितना इमोशनल हुआ होऊंगा?
ReplyDelete@ ALL - ऊपर कमेन्ट लिखने वाली रश्मि ही मेरी दीदी है, जिन पर मैंने पिछले जाने कितने ही पोस्ट कुर्बान किये होंगे.. :) यह उनका पहला कमेन्ट है किसी भी साईट या ब्लॉग पर.. :)
ज़िंदगी के पड़ाव के साथ सोच भी बदलती है
ReplyDelete