Tuesday, April 27, 2010

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?

कल मैंने एक दफ़े फिर से यह सिनेमा देखी, और इस पुरानी पोस्ट को फिर से ठेल दिया। पहली बार जब मैंने यह लिखा था तब शायद ही कोई मेरे ब्लॉग को पढता था, शायद अबकी कोई पढ़ ले। :)

कल मैंने फिर से प्यासा देखी, ये एक ऐसी फ़िल्म है जिसे मैं जितनी बार देखता हूं उतनी बार एक बार और देखने का जी चाहता है। मेरा ऐसा मानना है कि अगर कोई भी डायरेक्टर अपने जीवन में इस तरह का फ़िल्म बनाता है तो फिर उसे कोई और फ़िल्म बनाने कि जरूरत ही नहीं है, क्योंकि वो फ़िल्म व्यवसाय को इससे अच्छा उपहार दे ही नहीं सकता है। मगर जैसा कि अपवाद हर जगह होता है, बिलकुल वैसे ही गुरूदत्त जैसा अपवाद हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री को भी मिला। उन्होंने हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री को एक से बढकर एक कई अच्छे और दिल को छू जाने वाले फ़िल्म दिये। जैसे ‘कागज़ के फूल’, ‘चौदहवीं का चांद’, ‘साहिब, बीवी और गुलाम’, ‘मिस्टर एंड मिसेस 55’, ‘बाज़ी’, इत्यादी।

यहाँ मैं बस प्यासा फ़िल्म की चर्चा करने जा रहा हूं। मेरे मुताबिक ये फ़िल्म अपने आप में एक विशिष्ठ श्रेणी की फ़िल्म थी, क्योंकि यह फ़िल्म तब बनी थी जब जवाहर लाल नेहरू के सपनों के भारत का जन्म हो रहा था। और उस समय गुरूदत्त ने जो समाज का चित्रन किया था वो आज कि परिदृष्य में भी सही बैठता है।

प्यासा, जो सन १९५७ में बनी थी, में वह सबकुछ है जो किसी फ़िल्म के अर्से तक प्रभावी व जादुई बने रहने के लिए ज़रुरी होता है। सामान्य दर्शक के लिए एक अच्छी, कसी हुई, सामयिक कहानी का संतोष (फ़िल्म के सभी, सातों गाने सुपर हिट)। और सुलझे हुए दर्शक के लिए फ़िल्म हर व्यूईंग में जैसे कुछ नया खोलती है। अपनी समझ व संवेदना के अनुरुप दर्शक प्यासा में कई सारी परतों की पहचान कर सकता है, और हर परत जैसे एक स्वतंत्र कहानी कहती चलती है। परिवार, प्रेम, व्यक्ति की समाज में जगह, एक कलाकार का द्वंद्व व उसका भीषण अकेलापन, पैसे का सर्वव्यापी बर्चस्व और उसके जुडे संबंधों के आगे बाकी सारे संबंधों का बेमतलब होते जाना।

मैं यहां प्यासा फ़िल्म का एक गाना लिख रहा हूं जो कि आज के समाज पर भी उतना ही बड़ा कटाक्ष कर रहा है जैसा उस समय पर था। ये मेरे अब-तक के सबसे पसंदीदा गानों में से भी है।

ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया..
ये इंसान के दुश्मन समाजों की दुनिया..
ये दौलत के भूखे रिवाजों की दुनिया..
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है??

हर एक जिस्म घायल, हर एक रूह प्यासी..
निगाहों में उलझन दिलों में उदासी..
ये दुनिया है या आलम-ए-बदहवासी..
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है??

यहां एक खिलौना है इंसान की हस्ती..
ये बस्ती है मुर्दा-परस्तों की बस्ती..
यहां पर तो जीवन से है मौत सस्ती..
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है??

जवानी भटकती है बदकार बनकर..
जवां जिस्म सजते हैं बाजार बनकर..
यहां प्यार होता है व्यापार बनकर..
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है??

ये दुनिया, जहां आदमी कुछ नहीं है..
वफ़ा कुछ नहीं, दोस्ती कुछ नहीं है..
जहां प्यार की कद्र ही कुछ नहीं है..
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है??

जला दो इसे फ़ूंक डालो ये दुनिया..
मेरे सामने से हटा दो ये दुनिया..
तुम्हारी है, तुम ही संभालो ये दुनिया..
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है??


24 comments:

  1. इस गीत में बहुत अच्‍छा मैसेज है, जो आजकल के गानों में शायद ही नजर आए। और यह मुझे भी काफी पसंद है-
    यहां एक खिलौना है इंसान की हस्ती..
    ये बस्ती है मुर्दा-परस्तों की बस्ती..
    यहां पर तो जीवन से है मौत सस्ती..

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  2. अच्छा किया जी रिठेल कर
    पहले नही पढी थी, अब पढ ली
    मुझे भी एक गमजदा, निराश और टूटे दिल का गाया हुआ यह गाना बहुत अच्छा और संदेशात्मक लगता है।

    प्रणाम

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  3. सही कहा आपने प्यासा बहुत उम्दा फिल्म है. इस फिल्म में आलोचना लायक कोई बात ही नहीं है गाना सुनाने के लिए धन्यवाद.

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  4. कई साल पहले यह फिल्म देखी.........तब बहुत अच्छी लगी थी..........आज भी उतनी ही पसंद है और यह गाना अपने समय में जितना सामयिक था आज भी है..........बहुत सी पुरानी यादें ताज़ादम हो आँखों के आगे लहरा सी गयीं।

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  5. ye duniya mil jaye bhi to kya hai.....
    ye gurudat ka sinema hai...ye kewal busnes nahi hai..balkin ak jindgi hai...ak film meinn kai sare logon ki gadmadh jindgi.......

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  6. सौ साल बाद की पीढ़ी के लिए भी यह फिल्म उतनी ही महत्वपूर्ण होगी जितनी बनने के समय थी या आज है। इस के गानों की कैसेट कार में स्थाई स्थान पाई हुई है।

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  7. पिछली बार नहीं पढा था, इस बार पढ लिया।

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  8. प्यासा जितनी बार देखी जाए उसे देखने की प्यास और बढ़ती ही जाती है।

    द्विवेदी जी ने मार्के की बात कही है।

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  9. सच में ये फिल्म आज भी उतनी ही प्रांसगिक है...और फिर इस गीत के तो क्या कहने...!बहुत अच्छा किया आपने ये सब पुनः बताया...!गाना सुनाने के लिए धन्यवाद.!!!!

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  10. kuch din pahle hi GuruDutt classics DVD khareedi aur in sab movies ko jehan mein aur gehra kiya.. pyaasa hindi cinema ke liye ek milestone thi.. mujhe ye film bahut achhi lagti hai.. baki maine apne buzz par likh hi diya hai :D

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  11. प्यासा वो फ़िल्म है जो हर युग मे सामयिक है………………इसकी तारीफ़ मे तो लफ़्ज़ भी कम पड जायें।

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  12. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  13. बदकिस्मती हमारी कि हम अब तक यह फिल्म नही देख पाए। आपने फिर से प्यास जगा दी है।

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  14. यह फिल्म मैं कई दफा देख चुका हूँ. हर बार देखकर कुछ नया सा एहसास होता है और इसे अगली बार फिर से देखने की प्यास नहीं बुझती.

    प्यासा मेरी सबसे प्रिय फिल्मों में से एक है और सर्वश्रेष्ठ पायदान पर खड़ी दिखाई देती है .

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  15. हमारा भी मनपसंद गाना भी यही है और अपनी टेगलाईना भी

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  16. प्यासा देखने की प्यास कभी नहीं बुझती और रफ़ी साहब की आवाज़ और गुरुदत्त की अदाकारी इस प्यास को और बढा देती है. सुंदर पोस्टिंग
    सुंदर गीत,

    सुंदर कमेन्ट!

    हा हा
    हा हा
    हा हा
    हा

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  17. मुझे यह गाना अत्यधिक प्रिय है । पता नहीं क्यों ?

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  18. aap k is post ne hame fir se is film k gane sunane ko majboor kar diya. dhanywad aapka !!!
    waise agar aap online is geet ko sunana chahte hain to ye raha link: http://ww.smashits.com/player/flash/flashplayer.cfm?SongIds=10745,10746,10747,10748,10749,10750,10751

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  19. आँखों में आँसू बुलवा ही दिए प्रशांत बाबू आपने। कुछ कहते ही बन नहीं रहा क्या कहा जाए जी ?
    आभार आपका, याद दिलाने के लिए।

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  20. उफ़ ! बहुत दिन हुये ये फ़िल्म देखे...तुमसे जलन हो रही है...अब किसी दिन मैं भी पहुँचती हूँ वीडियो लाइब्रेरी. पर, मैं हर बार इसे देखकर बहुत उदास हो जाती हूँ...जीवन से विरक्ति हो जाती है, शायद यही इस फ़िल्म की सफलता है...

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  21. इस पर मैंने भी एक पोस्ट लिखी थी पर गुरुदत की कलम से

    http://apnidaflisabkaraag.blogspot.com/2010/03/blog-post_22.html

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  22. प्यासा हिंदी फिल्म के इतिहास में मील का पत्थर है...श्री प्रहलाद अगरवाल की किताब "प्यासा-चिर अतृप्त गुरुदत्त" में इस फिल्म पर बहुत विस्तृत जानकारी दी है, प्यासा फिल्म के प्रेमियों को ये पुस्तक जरूर पढनी चाहिए...साहिर भी इसी फिल्म के गीत लिख कर प्रसिद्द हुए थे...वहीदा जी की पहचान भी इसी फिल्म से बनी...गुरुदत्त की अदाकारी इस फिल्म में बेजोड़ थी और संगीत...वाह...वा...सुभानाल्लाह...
    नीरज

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  23. bahu achha kiya humein yaad dilakar ki yeh duniya kya ho gayi hai....
    sach mein yeh duniya agar mil v jaaye to kya hai..
    -------------------------------------
    mere blog par is baar
    तुम कहाँ हो ? ? ?
    jaroor aayein...
    tippani ka intzaar rahega...
    http://i555.blogspot.com/

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