Monday, February 08, 2010

कुछ बाते जो मुझे हद्द दर्जे तक परेशान करती हैं.. हमेशा..

अमूमन मेरी कोशिश रहती है कि हद तक किसी से झूठ ना बोलूँ.. मगर एक आम इंसान कि तरह सच को मैं भी छुपाता हूँ.. खासतौर से जब पूरी तरह से मेरी बात हो तब झूठ बोलने कि अपेक्षा मैं कुछ ना कहना ही पसंद करता हूँ.. वैसे भी मेरे साथ ऐसे किस्से कम ही आते हैं जब मुझे किसी से अपने बारे में कोई बात छुपानी पड़ी हो.. नहीं तो आमतौर से कोई मुझसे मेरे बारे में कुछ भी पूछता है तो मैं बिना किसी लाग लपेट के सही सही बता देता हूँ.. जीवन के कई मोड पर इससे कई बार नुक्सान भी उठाना पडा है, मगर फिर भी मेरे लिए चलता है.. मैं यहाँ सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में ही लिख रहा हूँ, अगर बात किसी और के बारे में है तो मैं अक्सर उन विषयों पर बाते ना करके उसे छिपा भी जाता हूँ.. मैं भला क्यों किसी और कि परेशानी की गवाही किसी और के सामने क्यों दूं?

मेरे जिंदगी का सौ फीसदी ना भी तो कम से कम नब्बे फीसदी बाते मेरे आस पास रहने वाले लगभग सभी को पता है.. मगर बाकी के दस फीसदी फिर भी मुझे कभी ना कभी कुरेदती है.. अंदर तक भेदती है.. लगता है कि मैं जमाने से नहीं, खुद से ही कुछ छिपा रहा हूँ.. और वे बाते ऐसी हैं जिसे मैं सिर्फ अपने लिए ही छोड रखा है.. भला कुछ तो अपना हो, हर बात दूसरों को कह कर दिल कि भड़ास निकाल लेना भी ठीक नहीं.. मगर वह जो मन के अंदर है, उससे कुछ हमेशा सा रिसता सा महसूस होता रहा है.. टीस हमेशा उठती रही है.. कभी-कभी सोचता हूँ कि यह भी किसी बेहद अपने को सूना कर मन हल्का कर लूं.. अपने आस पास तलाशता हूँ किसी ऐसे उपयुक्त शख्स को.. मगर कोई मिलता नहीं, और शायद उन बातो को मैं किसी से बांच सकूं.. ऐसा कोई मिलेगा भी नहीं.. अपनी उन कमियों को मैं किसी के सामने जाहिर नहीं कर सकता.. खुद कि उन कमियों से खुद को मैं किसी के भी सामने कमजोर नहीं देख सकता.. वैसे यह ब्लॉग ही है जो मेरे हर कन्फेशन को शांति से सुनता रहा है.. मगर इस ब्लॉग के हिस्से भी वे दस फीसदी नहीं हैं..

ऐसी कई बाते हैं, जिसे सुनकर जो भी मेरा भला चाहते हैं वे मुझे कम से कम घंटे भर का लेक्चर भी सुनायेंगे.. पता नहीं इंसान अपनी कमजोरी से हमेशा क्यों भागना चाहता है.. कुछ कुंठाएं अगर मन में बैठी हों तो सारे जमाने कि कुंठाए क्यों दिखने लगती है?

आज फिर जाने क्या-क्या बकवास लिखने बैठ गया हूँ..


चलते-चलते : कई लोग मुझसे कहते हैं कि मैं पुरानी बाते बहुत सोचता हूँ.. कंचन दीदी ने तो मेरा नाम ही नौस्टैल्जिया ही रख दिया है.. यहाँ मैं कुछ पुरानी बातों का जिक्र करते हुए भी नौस्टैल्जिक टाइप नहीं लिखा.. वैसे मूड तो अभी भी कुछ-कुछ वैसा ही है.. :)

11 comments:

  1. १०% तो बहुत कम है..जरुरी ही जिन्दगी में एक ऐसा अंधेरा कमरा जिसमें सिर्फ और सिर्फ तुम जा सको खुद से मिलने.

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  2. न बाबा मत करना ऐसा !
    रहिमन मन की व्यथा जाई न कहिये कोय
    सुनी इठीलहैं लोग सब बांटि न लैहें कोय
    मेरे तो पी डी साहब हाल के ही बड़े तिक्त अनुभव हैं
    मन कह रहा है
    आपके गले लग कर थोडा रो लूं !

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  3. इसी विषय पर हमने एक पोस्ट लिखी थी ""हाँ हम भी इंसान हैं..." और उसके बाद एक और...

    ये उसकी आगे की अभिव्यक्ति है।

    कुछ न कुछ राज हरेक आदमी के अंदर तक छुपे रहते हैं, जो वह किसी से उजागर नहीं करता, वह केवल अपने तक साझा रखता है, १०% या २०% या ज्यादा या कम यह अलग अलग व्यक्तियों पर निर्भर करता है।

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  4. ऐसी बातें न दोस्त को बतानी चाहिए न दुश्मनों को

    ब्लॉग पर तो हरगिज़ नहीं

    दोस्तों के लिए ऐसी बातें कोई मायने नहीं रखतीं
    और
    दुश्मन मन ही मन खुश होता है कि अच्छा हुआ, बहुत उछलता था पट्ठा!

    बंद कमरे का सफर कुछ अलग सा ही होता है।

    बी एस पाबला

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  5. ज़्यादा नहीं सोचने का..मस्त रहने का

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  6. अरे! याद आया आप से बात किए बहुत दिन हो गए हैं।

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  7. यही सब बातें कई बार मुझे भी परेशां करती हैं.........


    बहुत ही शानदार पोस्ट.......

    Hats off........

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  8. आज फिर जाने क्या-क्या बकवास लिखने बैठ गया हूँ..

    मस्त बकवास.

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  9. भाई अपने अंधेरे कमरे में दूसरों को मत झांकने दो. फ़िर मत कहना कि ताऊ ने चेताया नही था.

    रामराम.

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  10. eh... so i m not alone who thinks alike..!!

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  11. संवेदनशील पोस्ट! सुन्दर!

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