अब वह बात पुरानी हो चुकी है.. लोग उसे भगवान कहते कहते शायद भगवान मान भी लिए हों क्रिकेट का.. छुटपन में सपने देखते थे कि सचिन वन डे में दोहरा शतक जमाये.. बड़े होने के साथ वह दीवानगी कम होती गई.. आज जब उसने लगा ही दिया तब याद आया, कि इसी तवारिख़ का इन्तजार हमें बीस वर्षों से था..
मजे कि बात तो यह कि जब वह दोहरा शतक लगा रहा था तब एक बेजान सी बात पर हमारे टीम के सभी सदस्य बहस कर रहे थे.. वे बेचारे क्या जाने कि इस शतक का मोल क्या है? क्या पता उन्हें अपने बाकी बचे जीवन में फिर यह नजारा देखने को मिले भी या नहीं? और अगर मिले भी तो कहीं वह भारत के ही खिलाफ ना हो.. इधर बहस गर्म होती जा रही थी और उधर हमारा ध्यान सामने कमेंट्री सुन रहे कुछ लोगों पर था.. अचानक से एक थम्स-अप का इशारा आया, और हम समझ गए कि हो गया आज कारनामा..
उस समय शायद सात-आठ साल का रहा होऊंगा जब उसे टीवी पर खेलते देखा था.. एक बच्चा खुद से ७-८ साल बड़े को बच्चा कहने कि तोहमत भी लगा गया था.. अरे, एक बच्चा पाकिस्तानियों को पीट रहा है.. उस जमाने में 'साला' ही सबसे बड़ी गालियों में शुमार था.. मगर पाकिस्तानियों को साला कहने कि हिम्मत भी नहीं थी, मगर सचिन फिर भी उसे धोए जा रहा था..
उसके बाद के कुछ और किस्से याद हैं.. सन 1992 का आस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड में हुआ विश्व कप.. छठी कक्षा में था तब.. जाड़े कि ठिठुरती ठंढ में स्कूल से भाग कर घर आया करते थे.. स्कूल से भागने का गुर भी इसी मुए ने सिखाया था हमें, जो कालेज के जमाने तक काम आया.. एक शुक्रिया उस यायावरी कि शुरुवात कराने के लिए भी..
अखबार और इण्डिया टुडे में उसके फोटो आने पर कटिंग काट कर अपने नोटबुक के भीतर छुपाते थे तब.. कुछ टुकड़े अब भी उस टीन कि पेटी के अंदर घुसी पड़ी होगी.. कुछ-कुछ अजायब घर सा माहौल रहता है उस पेटी का.. कुछ बचपन में पढ़ी कहानी कि किताबे.. कुछ पहले प्यार के कुछ किस्से गिफ्टों कि शक्ल लिए हुए.. कुछ कामिक्स के फ्री में मिले हुए मैग्नेटिक स्टीकर... और उन सब के बीच सचिन और माराडोना के अख़बारों से ली हुई कटिंग.. अब तो उस जमाने के कतरन कुछ-कुछ एंटीक पीस सा माहौल बनाते हैं.. ये दो खेल एक ऐसी दीवानगी लिए हुई थी कि पहले प्यार कि दीवानगी फीकी पर जाए.. शायद जैसे-जैसे उम्र बढती जाती हैं, वैसे-वैसे ही दीवानगी कि कीमत भी बढती जाती है.. जिसे अदा ना कर पाने कि एवज में उस दीवानगी से मरहूम रह जाते हैं..
मैट्रिक में खराब नंबर आने पर मैंने कहा, सचिन भी तो एक दफे फेल हो चुका है.. तो मैंने कौन सा बुरा काम कर दिया.. फिलहाल जो नंबर आया था उसकी सजा अब तक भुगत रहा हूँ.. थ्रू-आउट सिक्सटी परसेंट का होर्डिंग लगभग हर नौकरी देने वाले के दरवाजे पर टंगे दीखते हैं.. मानो एक ऐसा गुनाह किया हो जिसका मुआफीनामा भी कबूल नहीं..
फिर कुछ दिन यूँ ही गुजरे.. सचिन कप्तान बने और खुद कप्तानी छोड़ी.. उन दिनों उनके किसी इंटरव्यू में पढ़ा था और उसका खूब मजाक भी बनाया था.. सचिन ने कहा था कि उसका सपना वन डे में पन्द्रह हजार रन बनाने का है.. और तब सचिन उस खूबी से अपनी बल्लेबाजी कि जिम्मेदारियों को नहीं निभा पा रहे थे.. हम भी किसी संगदिल बेवफा सनम कि तरह सचिन का साथ छोड़ गांगुली के हिस्से टपक गए थे.. फिर 1996 आया और चला गया.. सचिन ने खूब खेला, मगर लोगों को काम्बली का रोता चेहरा और श्रीलंकाईयों का खुशी से उछालना ही याद रहा.. तब तक पटना का सफर हमने भी तय कर लिया था.. एक ऐसा युग जिसे मैं सचिन का डार्क एज कहता हूँ..
फिर सचिन ने कप्तानी खुद छोड़ी और पहुंचे बंगलादेश.. इंडिपेंडेंस कप खेलने.. १८ जनवरी का वह तारीख मुझसे भूले भी ना भूलता है.. जब पहली बार किसी टीम ने तीन सौ से अधिक आंकडो का पीछा करते हुए उसे हराया था.. अब अगर जीतने वाला भारत हो और हारने वाला पकिस्तान, और वह भी कोई रिकार्ड का सा बनाते हुए, तो भला उस तारीख को भूलने का जुर्म हम कैसे कर सकते हैं? फिर वह साल तो जैसे सचिन के ही नाम होकर रह गया.. पूरे नौ शतक.. कई खिलाडी पूरे जीवन भर नौ शतक नहीं बना पाते हैं और इस खुदा ने एक साल में वह कर दिखाया.. फिर वह शारजाह कि जमीं पर लगातार लगाये दो शतक, जिसने शेन वार्न के जीने कि दिशा ही बदल कर रख दी, उसे भला कौन भूल सकता है.. पहले लगाये शतक में पहले लगाये दो छक्कों के बार कमेंट्री बाक्स में जो हलचल और रोमांच पैदा की थी, वह रोमांच मैंने अभी तक के किसी भी टेलीविजन कमेंट्री में नहीं सुनी है..
एक किस्सा याद आ रहा है.. स्कूल में मार-पीट करने जैसे आवारा कामो कि सीख भी यही रहनुमा दे गया है मुझे.. तब कहीं से कोई खबर पढ़ी थी कि सचिन को बचपन में टेनिस खिलाडी बनने का शौक था और इसके हीरो शायद जिमी कार्नर हुआ करते थे.. फिर क्या था.. हमने तो बेफिक्री में कह दिया, सचिन सचिन है.. यह आज अगर टेनिस भी खेलता होता तो भारत के पास ३०-४० ग्रैंड स्लैम होते.. कुछ लड़के इसे मानने को तैयार नहीं थे.. अब कोई मेरे खुदा को ना माने और हम उसे काफिर ना करार दें, ऐसा भी कहीं होता है.. बस वह मुलाक़ात उसी वक्त मुक्का-लात में भी बदल गई.. सनद रहे के आवारागर्दी कि डायरी को मोटी करने में, कुछ पन्ने सचिन के नाम भी शहीद हुए है..
लिखते ही जा रहा हूँ.. अभी इसे यहीं रोकता हूँ.. अगर मिज़ाज ठीक रहे तो आगे भी लिखूंगा.. :)
फिलहाल hurrey... हां सचिन पूर्व किशोरवस्था का जूनून था
ReplyDeleteपूरा बाद में आकर पढेंगे !
बढ़िया प्रवाह में आवारगी-दीवानगी गाथा चल रही थी..फिर शुरु हो जाओ!
ReplyDeleteaji aisi aawargi aur aisi deewangi dekhi nahi kahin..kaa baat hai..!
ReplyDeletehaan nahi to..!!
wah bhai...laajawab....
ReplyDeletemaza aa gaya padh ke...
is "god of cricket" ke to hum bhi na jaane kab se deewane hain...humein to yaad bhi nahi... :)
waise to main match dekh nahi pata lekin kal ka match dekha tha...:)
बहुत बढ़िया .... अच्छा लिखा है .........
ReplyDeleteपईस्सा वसूल था भाई......... और सच तो ई है कि उधारी चढ़ गया है ....
सच कहा आप ने .... शेष बचे जीवन में शायद अब ये नज़ारा देखने को न मिले ..... सचिन पर गर्व है देश को.
आप को तो सब बातें अभी याद हैं। उस दिन मुझे भी अच्छा लगा था जब सचिन ने पहली बार पाकिस्तानी गेंदबाजों को धुना था। हालांकि भारत मैच हार गया था।
ReplyDeleteयार पीडी,
ReplyDeleteमुए ने 200 रन क्या बनाये कि आप पुरानी डायरी को उधेडने लगे. उम्मीद है कि अगली पोस्टों में उधडी डायरी के बाकि पेज भी मिलेंगे.
बहत शानदार और सुंदर आलेख....
ReplyDeleteसनद रहे के आवारागर्दी कि डायरी को मोटी करने में, कुछ पन्ने सचिन के नाम भी शहीद हुए है...
ReplyDeletesahi jagah shid huwe wo panne.......nice artical.....
होली पर आपको सपरिवार शुभकामनायें !
ReplyDeleteबढ़िया है तस्वीरे देखकर मज़ा आ गया ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा । बहुत सुंदर प्रयास है। जारी रखिये ।
ReplyDeleteहिंदी को आप जैसे ब्लागरों की ही जरूरत है ।
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mast likhte ho brother...
ReplyDelete:)
ReplyDeleteखोजते-खाजते इस पोस्ट पर पहुंचे, बस आज का दिन दर्ज़ करना था.... एक युग के समापन का दिन....
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