Wednesday, June 24, 2009

फादर्स डे के बहाने कुछ मेरी बातें

- मैं इन सब बातों को नहीं मानता हूं.. अब भला यह भी कोई बात हुई कि कोई दिन फिक्स कर दिया जाये कि इसी दिन आप मां-बाप को याद करें?

- फिर तो तुम्हें नया साल भी नहीं मानना चाहिये?

- हां नहीं मानता हूं..

- तो फिर हमलोग पिकनिक पर क्यों जाते थे? और सबसे ज्यादा खुश भी तुम ही होते थे..

- मैं उस समय छोटा था, अपनी सोच विकसित करने लायक नहीं हुआ था.. और जहां तक मेरा अब मानना है कि आपलोग भी हमें पिकनिक पर इसलिये ले जाते थे कि बच्चे खुश रहें, ना कि इसलिये कि आप नया साल मनाना चाहते थे..

कुछ ऐसी ही बातें मेरे और मेरे पापाजी के बीच अभी-अभी गुजरे हुये मदर्स डे पर हुई थी.. इस फादर्स डे पर शाम ढ़ले मैंने पापाजी को फोन किया और उन्हें बधाईयां दी.. फिर से हमारे बीच कुछ ऐसी बाते हुई -

- तुम तो यह सब नहीं मानते थे?

- उससे क्या होता है, आप तो मानते हैं ना? (अनकही बात यह भी थी कि मुझे पता थ, पापाजी को मेरे फोन करने से अच्छा लग रहा होगा..)

- मेरा कहना ये है कि नहीं मानते हो तो मत मनाओ..

- मानने को तो मैं भगवान को भी नहीं मानता हूं, मगर जब आप यहां थे तब आपके साथ मंदिर भी गया था.. नहीं तो आप मुझे जानते हैं कि मंदिर को लेकर मेरा क्या ख्याल है..

और ये टॉपिक यहीं खत्म हो गया.. वैसे मुझे पता है कि पापाजी मेरी टांग खिचाई कर रहे थे.. वे अक्सर ऐसा करते हैं..

आम तौर पर हम हमेशा ये बात सुनते हैं कि वेलेंटाईन डे नहीं मनाना चाहिये, नया साल नहीं मनाना चाहिये, मदर्स डे-फादर्स डे विदेशी संस्कृति और बाजार के प्रभाव में आकर यहां लोग मना रहे हैं और भारतीय संस्कृति भूल रहे हैं, इत्यादी.. अगर मैं अपनी इच्छा से और भारतीय कानून की सीमा में रह कर कुछ भी मनाऊं या ना मनाऊं, किसी को भला क्या हक है मुझे कहने का? अगर मैं आज ही खुश हूं और आज ही पार्टी करना चाहता हूं तो मेरे लिये क्या पाश्चात्य कैलेंडर का नववर्ष और क्या वसंत पंचमी आना जरूरी है? ठीक इसके विपरीत अगर मैं वसंत पंचमी या पाश्चात्य नववर्ष पर खुश नहीं हूं तो उसे क्यों मनाऊं? अगर मुझे आज अपने माता-पिता की याद आ रही है तो भला क्या मैं अब उन यादों को अगले साल तक संजो कर रखूं?

आपका क्या कहना है इस पर??

17 comments:

  1. प्रशांत भाई...ये सवाल अच्छा उठाया आपने और पहले भी उठा रहा है...मुझे लगता है की विरोध ज्यादातर इसलिए होता है क्यूंकि इसका हमने आयात सीधे पश्चिमी सभ्यता से किया है...उनके और हमारे परिवेश में काफी अंतर था..हाँ था..अब तो सब कुछ उसी रंग में ढलता जा रहा है..मगर यदि इसी बहाने कोई अपनों को याद कर रहा है,,,उसके साथ खुशी बाँट रहा है,,तो इसमें इतनी हाय तौबा क्यूँ...हमारी माँ, पत्नी. भी बहुत से विशेष दिवस ..व्रत सिर्फ हमारे लिए मनाती हैं..
    तो बस यहाँ चाहे ये फादर्स दे , मदर्स दे ,,दिखावा लगे..जहां का मूलतः है वहाँ दिखावा नहीं है...ऐसा मुझे लगता है..

    ReplyDelete
  2. प्रशांत आप से पूरी तरह सहमत हूँ। आज पिताजी का जन्म दिन है। बस उन्हें स्मरण कर रहा हूँ।

    ReplyDelete
  3. मनाना है तो मनाओ..
    और जरुर मनाओ..
    इसलिये मनाओ कि खुद को अच्छा लगता है

    नहीं तो

    इसलिये मनाओ कि दुसरे तो अच्छा लगता है

    या फिर

    इसलिये कि बाद में न पछताओ कि
    यार हमने तो मनाया ही नहीं..

    मना लो कि पुरानी बाते (गल्तियां) भूल जाओ
    या इसलिये कि पुरानी बातें (अच्छी) याद करों

    मनाओ इसलिये कि कल का नहीं पता क्या हो
    मनाओ इसलिये कि आज सुहाना है

    यार इतने कारण है मनाने के..


    (वैसे और भी कई है, पर ५ बज गये..)

    ReplyDelete
  4. Its important to understand what gives US happiness . If we do that then we will be doing what needs to be done . And the more amalgamted the cultures become the less will be the boundries of cast creed and religion . In india itself there are many days which are celebrated with pomp and show
    like karva chauth , like bat saavitri , like pardosh where woman
    fast for the welfare of their loved ones ,many woman dont do it
    with willingness but because of religion and society pressure but in western world they are so busy in their daily routine that they make it a point to wish their loved ones for sure on one specifc day .

    ReplyDelete
  5. प्रश्न आपने बहुत अच्छा उठाया है

    ReplyDelete
  6. जो लोग वेलिंटाइन डे के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं , मॅ उनका विरोध तो नहीं करती पर उनसे सहमत भी नहीं हूँ, वही लोग फ़ादर डे, या मदर डे पर तो नहीं बोलते ,......किसी को सिर्फ़ एक ही दिन याद किया जाए , इसके लिए ये' डे' नहीं बनाए गये हैं , बल्कि उनको समर्पित किए जाते हैं , ......इस बात से तो आप भी सहमत हैं की फादर्स डे पर उनको कुछ गिफ्ट देने या सम्मान देने से वो कितने खुश होते हैं ....और हमको क्या चाहिए उनकी खुशी के सिवा.....ये छोटी छोटी खुशियाँ जिंदगी मे बहुत मायने रखती हैं

    ReplyDelete
  7. bahut achhi baat.............
    main poorntah: sahamat hoon.....
    umda aalekh
    badhaai !

    ReplyDelete
  8. अरे कहाँ चक्क्कर में पड़ गए भैया , विरोध का भी एक फलता फूलता धंदा है ओर हर दिन एक फलाने दिन का भी .

    ReplyDelete
  9. वैसे रंजन जी सही कह रहे हैं... दिल कहता है तो मनाओ नहीं है तो मत मनाओ |

    ReplyDelete
  10. व्यक्तिगत राय है यह पूर्णतः आपकी और आप अपने लिए कुछ भी नियम निर्धारित करने को स्वतंत्र हैं.

    कुछ तो उम्र का तकाजा होता है और कुछ व्यक्तिगत अनुभव..

    जब उस उम्र में आओ कि आप पिता हों और बच्चे के फोन का इन्तजार करो कि आज फादर्स डे है, आज तो जरुर करेगा. उस दिन तौल पाना थोड़ा मुश्किल होगा कि रोज ही तो फादर्स डे है या मदर्स डे है.

    उत्सव की एक अलग उमंग होती है, फिर उत्सव किसी का भी क्यूँ न हो. बात भावना प्रदर्शित करने की है.

    सोचना, विचारना. विचार बदलने को नहीं कहूँगा, वह तो समय करवा ही देगा.

    जवानी के दिनों में मैने भी बहुत विरोध किया मंदिर जाने का..समय ने सिखला दिया.

    वैसे मेरे ब्लॉग पर एक पंच लाईन लगी है अमिताभ बच्चन की:


    दूसरों की गलतियों से सीखें। आप इतने दिन नहीं जी सकते कि आप खुद इतनी गलतियां कर सके।

    -अमिताभ बच्चन के ब्लॉग से.

    कुछ समझ आये इसमें तो समझना!!


    -लगता है कुछ ज्यादा लिख गया. तुम अपने से लगते हो तो शायद अधिकार क्षेत्र लांघा हो, क्षमाप्रार्थी.

    ReplyDelete
  11. मेरा खयाल है कि पिताजी को आपकी टूटी टाँग की खिंचाई नहीं करनी चाहिए थी :)

    ReplyDelete
  12. "कुछ देर बस पास बैठ जायूं
    माँ अब ओर कुछ नहीं चाहती है .'

    एक उम्र के बाद दोनों की चाहत यही होती है बस ...बाकि सब फ़साना है....

    ReplyDelete
  13. बिलकुल नहीं। पर कोई खास मौका किसी दिन विशेष से जुड जाने पर हम औपचारिक रूप से उन बातों को कह व कर सकते हैं, जो हम अक्‍सर तमाम वजहों से छोडते चले आते हैं।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

    ReplyDelete
  14. mujhe pata tha ki aap valentine day ke khilaaf the...vaise is tarah ke dino ko leke aapki kya raay hai ye thik se aaj jaanne ko mili...par mujhe kabhi in sabme kuch galat nahi laga...aaj insaan ki life sach me itni busy ho gayee hai ki use aise dino ki zaroorat hai jo kuch khaas baaton ki dhyaan dilaaye hume...sirf pashchaaty(vaise ye bhedbhaav to galat hi hai) diwas hi nahee,bhartiy tyohaar bhi aham isliye hai ki ek mauka dete hai ki log ek doosre ke kareeb aaye...kehne ko keh sakte hai ki khush nahi hone pe diwali hum us din na manaaye aur khush hai to kisi bhi din manaa le,par ye practical nahi hota...usi tarah mothers day ho ya fathers day,ek khaas din rakhne ka ek khaas matlab hotaa hai...

    personal level pe main bhi is din ko kisi khaas nazar se ab tak nahee dekhta,par iske peeche ka jo vichaar hai,jo philosophy hai usse mujhe koi aitraaz nahi...balki mujhe sahi lagtaa hai...

    ek baat aur....valentine day ka virodh sabse galat aur nirarthak baaton me se ek hai...fathers day aur mothers day ki hi tarah ek khaas diwas hai ye,iske prati kuch reactions bikul atpate hote hai...


    aap aajkal mere blog pe nazar nahi daalte shayad...itne busy?? :(

    ReplyDelete
  15. किसी भी अच्छी चीज को करने में कोई बुराई नहीं है............... अगर मन माने तो करो न माने तो न करो

    ReplyDelete
  16. अच्छी बातें बनाई हैं बहाने से। खिंचाई तो चलती रहनी चाहिये।

    ReplyDelete