मुझे कुछ समझ में नहीं आया कि वो बच्ची चाह क्या रही थी? फोन पर ही बातें करते हुये मैंने देखा कि वह वहां खड़े लगभग हर किसी से तमिल में कुछ कह रही थी और सभी उसकी बात सुनकर या तो अनसुना कर रहे थे या फिर उसकी हंसी तमिल में ही कुछ कह कर उड़ा रहे थे..
पहली नजर में मुझे लगा कि उस बच्ची को भूख लगी है.. वहीं एक चाय वाला भी बैठता है जो कटिंग वाली चाय के साथ बिस्किट और ब्रेड भी रखता है.. मैंने उसे अपने पास बुला कर अंग्रेजी में उसे समझाने की कोशिश की, और बोला कि तुम्हे जो चाहिये वो ले लो.. मगर वो वहां से भी भाग गई..
मुझे कुछ समझ में नहीं आया कि ये इस तरह से क्यों कर रही है.. एक छटपटाहट उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी, और कारण मेरी समझ से बाहर थी.. तमिल ना आने का अपह्सोस मुझे शायद सबसे ज्यादा उसी समय हो रहा था.. तभी मैंने देखा कि चाय वाला उसे डांटते हुये कुछ बोल रहा था, टूटी-फूटी तमिल में मैं इतना समझ गया कि वह बच्ची चाह क्या रही थी..
वहीं पार्किंग के पास एक आईसक्रीम वाला भी था, और वह किसी भी तरह एक आईसक्रीम खाना चाह रही थी.. उस चाय वाले की बात मुझे यह समझ में आयी थी कि वह कटाक्ष करते हुये बोल रहा था जिसको हिन्दी में हम कुछ ऐसे कहते हैं, "अपनी औकात देखी हो, आईसक्रीम खाना चाह रही हो.. भागो यहा से और मेरे कस्टमर को परेशान मत करो.."
उसे मैंने अपने पास बुलाया, मगर वह नहीं आयी.. शायद डर गई थी.. आईसक्रीम वाले के पास जाकर मैंने उसे बुलाया तो वह झट से मेरे पास चली आयी.. मैंने आईसक्रीम वाले को बोला कि इसे जो भी आईसक्रीम चाहिये इसे दे दो.. वो आईसक्रीम वाला मुझे ऐसे देखा जैसे मैं पागल हो गया हूं.. मैंने फिर से उसे कहा तो वह चुपचाप उस बच्ची से पूछकर उसे आईसक्रीम दे दिया..
उस बच्ची के चेहरे पर अपार संतोष का भाव साफ दिख रहा था.. मैंने फिर एक अद्भुत बात देखी, वह बच्ची धीरे-धीरे करके सारा आईसक्रीम अपने गोद वाले उस छोटे बच्चे को खिला दी जिसे आईसक्रीम क्या होता है इसकी समझ भी ना होगी.. खुद उसे चखी भी नहीं..
जाने क्यों मुझे अपनी दीदी की बड़ी बेटी याद आ गई, जो कमोबेश उसी कि उमर की होगी.. जो आईसक्रीम के लिये अपना मुंह भी खोलती है तो 1 किलो वाला आईसक्रीम का पैकेट घर में आ जाता है.. अभाव क्या होता है वह उसे पता भी नहीं, दुनियादारी तो दूर की बात है..
एक डर सा लगने लगा.. इंडिया जगमगा रहा है, मगर भारत अपनी गरीबी पर रो रहा है.. तभी ट्रैफिक के शोर ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा.. पास वाले सिग्नल की लाल बत्ती जगमगा रही थी.. मैंने देखा कि वह बच्ची अपने गोद वाले बच्चे को लेकर सिग्नल की ओर जा रही है.. आगे देखना शायद मुझे अच्छा नहीं लगता, सो मैं वापस अपने ऑफिस के अंदर चला आया..
aapne bahut accha kiya :) ye bahut dukhi baath hai ki, vo 6saal ki bacchi 5-6mahine ka baccha ko dekhbaal kar rahi hai :D mujhe ye sunke accha laga ki, ice cream ko godh wali bachi ko bhi khilayi :D
ReplyDeletevo do bacche jaha bhi ho, kidhar bhi ho, bhagwan usko sab accha kare.
extremely heart touching post :D aaj wala post mujhe bahut accha laga :D
बहुत सुंदर, यह एक मुस्कान १५ रुपये से कही महंगी है.उस बच्ची की तरफ़ से मै धन्यवाद करता हुं.
ReplyDeleteप्रशांत भाई ये मुस्कराहट बहुत कीमती है बैशक 15रुपये मे ही खरीदी गई है। जिदंगी में लोग अब मुस्कराना भूल गए है।
ReplyDeleteक्या कहें प्रशान्त.. ये खुशी तो अनमोल है... इस पर तो हजारों कुर्बान..
ReplyDeleteतुमने बहुत अच्छा नेक काम किया.. बहुत आभार..
यह मुस्कुराहट आंखों में पानी ले आई। कब? कब वह दिन होगा जब इस तरह कोई बच्ची अपने छोटे के लिए आइस्क्रीम दिलाने को इस तरह मांग न रही होगी?
ReplyDeleteबहुत सही है एक मुस्कान का मुल्य १५ रुपये तो कम ही है. इस आलेख के अंत मे कहे गये शब्द चिंता पैदा करते हैं और आपके संवेदनशील होने का सबूत देते हैं. यह हम सभी की पीडा है.
ReplyDeleteरामराम.
संतोष हुआ !
ReplyDeleteतुमने बहुत नेक काम किया !!
ReplyDeleteतुम्हारी सोच की तो तारीफ़ करूँगा भाई.. पर इन चीजों को बढावा देना ठीक नहीं.. बछि को आज किसी ने कुछ खिलाया है तो वो कल फिर मांगेगी.. मैं ऐसे केसेस में उन्हें कुछ काम करने के लिए कहता हूँ.. कुछ भी काम जैसे उन्हें अपनी गाडी साफ़ करने के लिए कहा देता हूँ.. पता है कई लोग तो मना कर देते है.. पर कुछ करने के लिए हाँ कहते है.. इस से उनमे हम ये सोच पनपने देते है कि काम करेंगे तभी पैसा मिलेगा.. पर तुम्हारी भावनाओ की कद्र करता हूँ.. कभी कभी लोजिकल माईंड को ऑफ भी करना पड़ता है..
ReplyDelete१५ रुपये में अनमोल काम कर दिया भाई !
ReplyDeleteभावुक कर दिया..मुस्कराहट की क्या कीमत!!
ReplyDeletebahut prabhavi sansmaran
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा इसे पढ़कर!
ReplyDeleteगरीबों की छोटी-छोटी खुशियां बहुत बडे सुख देती है।बडे लोगो के लिये तो ये रोज़ की बात होती है।सच कहा पीडी बहुत डर लगता है जब किसी को फ़ीस के लिये तो किसी को किताबों के लिये तरसते देखो और दूसरी तरफ़ बेवजह बाईक दौडाते,काफ़ी पीकर मोटी रकम टीप मे छोड़ कर बिना देखे चले जाते बच्चों को।बहुत ज्यादा फ़र्क नज़र आता है ्खुशी और रूटीन में।अच्छा किया और अच्छा लिखा।
ReplyDeletechoti choti khushiyaan baantne मैं जो aanand है............ वो बड़ी बड़ी baton में नहीं......... सुन्दर post है
ReplyDeleteशब्दों ने मन को ऐसे बांध दिया है की कुछ कहते नहीं बन पड़ रहा....
ReplyDeleteआप जैसा दिल ईश्वर सबको दे.....
भूख अभाव गरीबी की तासीर को महसूस कर पाना सरल नहीं....
घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूँ कर लें
ReplyDeleteकिसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए.
पढ़ के अच्छा लगा....
कभी कभी लोजिकल माईंड को ऑफ भी करना पड़ता है..-kush se sahmat ..aapne achchha kiya.
ReplyDeleteओह! यह तो बहुत मर्मस्पर्शी पोस्ट थी। धन्यवाद।
ReplyDeletesenti,very senti...
ReplyDeletejinhone abhaav nahi dekha hai,wo bhi zara sa saamjh le abhaav kya hota hai aur jahaan tak ho sake use door karne ki koshish kare to aisi kuchh ghatnaaye hoti rahengi...well done bhaiyya
मैंने देखा तो पाया की एक 3-4 साल की बच्ची थी और उसके गोद में भी एक 5-6 महिने का बच्चा था.. मैंने उसे भीख मांगने वाली समझ उसे इसारे से मना किया, कि मैं कुछ भी नहीं दूंगा.. उसने कहा, "अन्ना, नो मनी.."
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@Kush ji
shayad aap in panktyion par dhyan nahi diya..
aur aap kya sochte hain 3-4 saal ki bachchi agar koi aapke ghar mein hogi aur use ice-cream khane ki ichchha ho to aap use car ki safai karne ke liye pahle bolenge?
Prashant bhai aapne bahut hin achchha kaam kiya...
post par kuch kehnaa shayad uchit naa ho, jaanti hoon shabd insaaf naa kar sakenge... par haan vo amoolya muskaan bachaa, yahaaan tak laane ke liye shukriyaa.... it actually touched the core of my heart.........nd lended me a smile with a few tears ...:)
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