कुछ खालीपन सा..
एक सन्नाटा सा..
कुछ विरानी सी..
एक छटपटाहट सी..
ऐसा लग रहा है जैसे कोई आत्मा को खरोंच रहा हो.. कुछ बूंदे टपक रही हो जैसे.. कुछ वैसा ही जैसे किसी बोतल में खरोंच लगने पर पानी कि बूंदे बेतरह चूने लगती हो.. मगर यह पानी की बूंदें नहीं है.. पता नहीं क्या है? शायद आत्मा का जीवन रस कोई निचोड़ रहा है..
शायद हम जमाने से भाग सकते हैं.. अपने चेहरे पर मुखौटे पहन कर अपनी असली सख्शियत जमाने से छुपा सकते हैं.. मगर खुद से भागना और अतीत से छुपना लगभग नामुमकिन सा होता है..
बहुत दिनों पहले का लिखा एक एस.एम.एस.
जीवन के एक अटूट सत्य को आपने बहुत आसानी से बयां कर दिया है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
ये एक aisaa saty है..जो hameshaa साथ rahtaa है.. अपने आप से aankhen कोई नहीं churaa saktaa.......... सच और prabhaavi likhaa है
ReplyDeleteऐसा हर किसी के साथ कभी न कभी होता है मगर इसे महसूस करना और बयान करना बहुत कठिन है। आपने किया और बहुत अच्छे तरीके से किया बधाई आपको।
ReplyDeleteआप ने माँ की भी नीन्द उड़ा दी। इस से अच्छा तो किसी दोस्त को फोन करते।
ReplyDeleteद्विवेदी जी ठीक कह रहे हैं
ReplyDeleteबेटा मैं मम्मी बोल रही हूँ। तुम्हारा खाली दिमाग अब शैतान का घर बन गया है, अतः अब समय आ गया है की तुम्हारे हाथ पीले कर दें। फ़िर न तुम्हें आत्मा में झाँकने की फुर्सत रहेगी न सन्नाटे में आवाजें सुने की :)
ReplyDeleteभैये तुम चेन्नई में रहते हुये प्रवासियों की तरह एस.एम.एस. का मजनून सोचते और पोस्ट करते हो। कोई प्रवासी ठोंक देगा कापी राइट का मुकदमा! देखते रह जाओगे!
ReplyDeleteअरे प्राशांत अगर यह सिर्फ़ लेख है तो ठीक है, क्योकि ऎसी स्थिति हम सब की आती है, ओर हमे हालात से लडना आना चाहिये , मां बाप का तो ध्यान हमेशा बच्चो की तरफ़ रहता है इस लिये उन्हे ऎसी बात बता कर ज्यादा उदास ओर फ़िक्र मै नही करना चाहिये,शेर बनो ओर हर कठिनाई से लडना सीखॊ.
ReplyDeleteराज भाटिया जी की बात मेरे भी मन में आयी थी।
ReplyDeleteयहाँ पर कैसी भी हालत हो जब भी घर फ़ोन होता है कि हमेशा यही मुंह से निकलता है कि सब मस्त मजे में है।
कई बार झूठ भी बोलना पडता है जब माताजी पूछ लेती हैं कि खाना खा लिया और मुंह से बिना सोचे ही हां निकल जाता है और कहना पडता है कि बाहर नहीं घर पर ही दाल और चावल बनाया था।
मेरी माताजी ज्यादा ही चिंता करती हैं, ऐसा कुछ लिख दिया तो तुरन्त अगली फ़्लाईट से घर वापसी का फ़रमान मिल जायेगा।
वैसे बेनामी की बात में दम है, शादी कर लो, सारी समस्यायें हल :-)
काहे अम्मा को परेशान करते हो जी रात गये. बाकी सब बातों के लिए दोस्त और परेशानी के लिए माँ. क्यूँ?
ReplyDeleteअच्छे बच्चों की तरह यह सब बातें दोस्तों से वरना जब अम्मा सामने हों तब!!
बात तो सही ही लिखी है पर इतना बड़ा एस एम एस?
ReplyDelete0^0
तुम भी न प्रशान्त.. अब तुम्हे नींद नहीं आ रही तो sms भेज मम्मी की नींद भी उड़ा दिये..:)
ReplyDelete@ सभी के लिये - मेरी मम्मी को पता होता है कि देर रात जो भी एस.एम.एस. आता है वो मैं ही भेजता हूं, कोई और नहीं.. और वो कभी रात में नहीं पढ़ती है, सुबह उठकर पढ़ती है.. :)
ReplyDelete@ नीरज जी - ऐसा अक्सर उन सभी के साथ होता है जो घर से बाहर होते हैं.. शुरू में तो झूठ पकड़ी जाती थी, अब तो झूठ बोलने में भी उस्ताद हो गये हैं..
@ कौतुक रमण जी - जी हां.. ये एस.एम.एस. शायद 5-6 पेजेज में बंटा हुआ था..
iska matlab aapne sahi mein ye sms bheja tha? Ham to majaak samajh rahe the!
ReplyDeletewen u get free tym, visit here, arsahana.blogspot.com
ReplyDeleteYou have a surprise :D
main hairan si raha gayi hu... aapne itni sahajta aur sundarta se kaise sabkuch byakt kar dia!!!
ReplyDeleteapka bahut bahut shukriya ki aapne meri kavita padhi. i don't write much in hindi aur dhundhla aks meri dusri hindi kavita thi aur apke shabdo ne mera hausla badaya. aapki kavita dil ke andruni hisse ko chu gayi.
aapka bahut bahut shukriya.