मां याद है तुम्हें?
कैसे तुम्हारी कहानियों में,
नायक हमेशा जीतता रहा है..
खुद को जाने कितनी ही बार
उस नायक के स्थान पर
देख चुका हूं मैं..
लड़ाई में मगर अकेला पर जाता हूं..
इस नायक का हौशला भी
टूटता सा लगता है..
तुम आ जाओ मां..
आज फिर उन कहानियों कि जरूरत सी है..
सच कहा प्रशांत भाई ..मेरे पास तो सिर्फ माँ की यादें बची हैं माँ नहीं...भावुक कर दिया आपने...
ReplyDeleteबेखयाली में भी सुन्दर रचना। किसी शायर के शब्दों में कहूँ तो-
ReplyDeleteनिकले जो घर से माँ की दुआएँ लिए हुए।
बढ़कर हमारे रास्ते आसान हो गए।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
पीडी, मां की याद दिलाने के लिए शुक्रिया। यादों के संसार के भावों में बहती अच्छी याद।
ReplyDeleteतुम आ जाओ मां..
ReplyDeleteआज फिर उन कहानियों कि जरूरत सी है.
बचपन के एइसे ही कुछ एहसास...... माँ के करीब बीते हुवे पल संबल देते हैं जीवन में ............ भावुक रचना
ये पढ़ कर तो माँ दौड़ी चली आयेगी प्रशान्त...
ReplyDeleteबहुत प्यारा..
हौसला बनाये रखो जवान।
ReplyDeleteतुम्हारे पास माँ है।
mera hausla to isi se bana rehta hai ki mere pass maa hai
ReplyDeletebahut achchhi rachna PD bhai
बचपन के यही अहसास जीवन की आपाधापी में हमारा सहारा बनते है.
ReplyDelete... बहुत सुन्दर
कभी मां ऐसे ही याद आती है। सुंदर भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहम तीनो भाई आज भी मां को बचपन मे सुनाई कहानिया सुनाओ कह कर तंग करते हैं।बहुत सुन्दर लिखा पीडी।
ReplyDeletewowww.... :)
ReplyDeletesach hai maa ki kahaniya aisi hi hoti hai
ReplyDeletebahut badiya :)
ReplyDeleteBahut sundar!!
ReplyDeleteमॉं की ममता की कीमत वही बेहतर जानता है, जिसकी मॉं न हो।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }