अकसर लोग प्यार कर बैठते हैं किसी ऐसी लड़की से जो छोटे से शहर से निकल कर, बड़े शहर की चका-चौंध में कहीं खो सी जाती है.. मैं भी उन चंद लोगों में से हूं.. जमाने के साथ चलने का शौक था उसे, मगर ना जाने किससे डरती थी.. मेरा साथ पाकर वो डर जाता रहा और जमाने के साथ कदम ताल करते हुये ना जाने किधर निकल गई..
नजरें आज भी खोजती है, हर रिक्से पर.. शायद वो दिख जाये कहीं.. सिमटी हुई, सकुचाती हुई, छुई-मुई सी, सिकुड़कर बैठी हुई.. इस डर से कहीं कोई देख ना ले कि वो किसी से मिलने आ रही है.. शायद मुझसे? भ्रम भी अजीब होते हैं.. है ना?
फ़ुरसत के रात दिनये मनुष्य का प्राकृतिक गुण होता है कि जब उसके पास काम होता है तो वो चाहता है की कैसे ये काम का बोझ हल्का हो, और जब उसके पास कोई काम नहीं होता है तो वो…Read More
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भाषा का ज्ञान और भाषा की समझमेरी समझ में भाषा का ज्ञान और भाषा की समझ दोनों में बहुत अंतर है। मेरी मातृभाषा हिंदी है जिसे मैं बचपन से बोलता आया हूं और मुझे इस भाषा से बहुत प्रेम …Read More
बैंगलोर-मैसूर यात्रा वर्णन५ गाडियाँ१० लोगरास्ता बंगलोर-मैसूर हाइवेदूरी ३७५KM(चंदन की गाड़ी से मापी हुयी)(सबसे पहले: ये पोस्ट कुछ ज्यादा ही लम्बी हो गयी है जिसके लिये मैं क्षमा च…Read More
अज्ञात कविताआज यूं ही कुछ कविताओं की बातें रही थी तो मेरी एक मित्र ने मुझे एक कविता इ-पत्र के द्वारा भेजा, जो मुझे कुछ अच्छी लगी उसे यहां डाल रहा हूं। मगर पोस्ट क…Read More
क्या बात है.. प्रशांत भाई.. बहुत बढ़िया.. चित्र भी बढ़िया है..
ReplyDeleteभ्रम अजीब के साथ खतरनाक भी होते हैं। वे असलियत से दूर रखते हैं।
ReplyDeleteअब मिलेगी भी तो बदली हुई मिलेगी यार .....
ReplyDeletetalash jari rakhiye...
ReplyDeletewah je tareef ka haq n chheenanaa
ReplyDeleteसही है..कवि बन ही बैठे. बढ़िया लगा.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर है।
ReplyDeleteनजरें आज भी खोजती है,
हर रिक्से पर..
शायद वो दिख जाये कहीं..
सिमटी हुई,
सकुचाती हुई,
छुई-मुई सी,
सिकुड़कर बैठी हुई..