अकसर लोग प्यार कर बैठते हैं किसी ऐसी लड़की से जो छोटे से शहर से निकल कर, बड़े शहर की चका-चौंध में कहीं खो सी जाती है.. मैं भी उन चंद लोगों में से हूं.. जमाने के साथ चलने का शौक था उसे, मगर ना जाने किससे डरती थी.. मेरा साथ पाकर वो डर जाता रहा और जमाने के साथ कदम ताल करते हुये ना जाने किधर निकल गई..
नजरें आज भी खोजती है, हर रिक्से पर.. शायद वो दिख जाये कहीं.. सिमटी हुई, सकुचाती हुई, छुई-मुई सी, सिकुड़कर बैठी हुई.. इस डर से कहीं कोई देख ना ले कि वो किसी से मिलने आ रही है.. शायद मुझसे? भ्रम भी अजीब होते हैं.. है ना?
नये भारत की नई तस्वीरएक कंकाल सा शरीर जो सकुचाता हुआ कहीं बैठने की जुगत में लगा हुआ था और बगल में खड़े टिप-टाप लोग उसे ऐसे देख रहे थे जैसे किसी गली के जानवरों से भी गया गुज…Read More
एक एनोनिमस की टिप्पणीमेरे "अविनाश" वाले पोस्ट पर एक एनोनिमस महाशय की टिप्पणी आयी है। मेरे पूरे ब्लौगिये जीवन में ये दूसरी एनोनिमस टिप्पणी आयी है। मुझे आज तक समझ में नहीं आ…Read More
मायूसी भरे दिनआज अपना भेजा खपा कर कुछ भी लिखने का मन नहीं कर रहा है पर समय भी तो काटना है। कमबख्त साफ्टवेयर बनाने वालों कि भी अजीब जिंदगी होती है। जब काम मिले तो इत…Read More
समय और रेतमुट्ठी बंद करने से,हाथ से फिसल जाती हैं रेत..मैंने तो हाथ खोल दिये थे,फिर भी एक कण ना बचा सपनों का..एक आंधी सी आयी थी,जो उसे उड़ा ले गई..हां वो आंधी सम…Read More
क्या बात है.. प्रशांत भाई.. बहुत बढ़िया.. चित्र भी बढ़िया है..
ReplyDeleteभ्रम अजीब के साथ खतरनाक भी होते हैं। वे असलियत से दूर रखते हैं।
ReplyDeleteअब मिलेगी भी तो बदली हुई मिलेगी यार .....
ReplyDeletetalash jari rakhiye...
ReplyDeletewah je tareef ka haq n chheenanaa
ReplyDeleteसही है..कवि बन ही बैठे. बढ़िया लगा.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर है।
ReplyDeleteनजरें आज भी खोजती है,
हर रिक्से पर..
शायद वो दिख जाये कहीं..
सिमटी हुई,
सकुचाती हुई,
छुई-मुई सी,
सिकुड़कर बैठी हुई..