अकसर लोग प्यार कर बैठते हैं किसी ऐसी लड़की से जो छोटे से शहर से निकल कर, बड़े शहर की चका-चौंध में कहीं खो सी जाती है.. मैं भी उन चंद लोगों में से हूं.. जमाने के साथ चलने का शौक था उसे, मगर ना जाने किससे डरती थी.. मेरा साथ पाकर वो डर जाता रहा और जमाने के साथ कदम ताल करते हुये ना जाने किधर निकल गई..
नजरें आज भी खोजती है, हर रिक्से पर.. शायद वो दिख जाये कहीं.. सिमटी हुई, सकुचाती हुई, छुई-मुई सी, सिकुड़कर बैठी हुई.. इस डर से कहीं कोई देख ना ले कि वो किसी से मिलने आ रही है.. शायद मुझसे? भ्रम भी अजीब होते हैं.. है ना?
हम लड़ेंगे साथीआज बस एक पुरानी कविता आपके सामने -
हम लड़ेंगे साथी हम लड़ेंगे साथी,उदास मौसम के लिए हम लड़ेंगे साथी,गुलाम इच्छाओं के लिए हम चुनेंगे साथी,जिन्दगी के टु…Read More
एक सस्ती शायरीएक इन्कलाब आयी, पूरी दुनिया सुधर गई..हजार और आये, हम न सुधरे हैं औ ना सुधरेंगे..
मेरे पिछले पोस्ट पर कुछ लोगों ने कमेन्ट में मुझे सुधारने कि सलाह दे …Read More
ज्वलंत समय में लिखना प्रेम कविता1.
जब देश उबल रहा था
माओवादी हिंसा एवं
आदिवासियों पर हुए अत्याचार पर
मैं सोच रहा था कि लिखूँ
एक नितांत प्रेम में डूबी कविता!!
2.
बुद्धिजीवियों के वि…Read More
बाथे नरसंहार के ठीक बादजिस रात यह घटना घटी उससे एक दिन बाद ही मुझे PMCH के इमरजेंसी वार्ड में एक डाक्टर से मिलना तय हुआ था. सोलह-सत्रह साल की उम्र थी मेरी. सुबह जब PMCH के ल…Read More
बयार परिवर्तन कीबिहार की राजनीति में रैलियों का हमेशा से महत्व रहा है और अधिकांश रैलियों में सत्ता+पैसा का घिनौना नाच एवं गरीबी का मजाक भी होता रहा. इस बार आया "परिवर…Read More
क्या बात है.. प्रशांत भाई.. बहुत बढ़िया.. चित्र भी बढ़िया है..
ReplyDeleteभ्रम अजीब के साथ खतरनाक भी होते हैं। वे असलियत से दूर रखते हैं।
ReplyDeleteअब मिलेगी भी तो बदली हुई मिलेगी यार .....
ReplyDeletetalash jari rakhiye...
ReplyDeletewah je tareef ka haq n chheenanaa
ReplyDeleteसही है..कवि बन ही बैठे. बढ़िया लगा.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर है।
ReplyDeleteनजरें आज भी खोजती है,
हर रिक्से पर..
शायद वो दिख जाये कहीं..
सिमटी हुई,
सकुचाती हुई,
छुई-मुई सी,
सिकुड़कर बैठी हुई..