Thursday, June 17, 2010

बस ऐंवे ही कुछ भी

उसे पता था कि मेरा फोन रोमिंग पर है, मगर फिर भी हम फोन पर लगे हुये थे.. चलो, इस सरकार में चावल दाल की कीमते भले ही आसमान छू रही हों, मगर कम से कम मोबाईल बिल रोमिंग पर भी कम ही आता है.. शायद सरकार बातों से ही जनता का पेट भरने के चक्कर में हों.. उसने पूरे उत्साह से बताना शुरू किया कि मैंने तुम्हारा पोस्ट पढ़ा भी और कमेंट भी किया.. सच कहूं तो मुझे घोर आश्चर्य हुआ, क्योंकि उसे अगर देवनागरी में कुछ लंबा मेल भी लिख देता हूं तो उससे बात करने पर उसकी चिढ़न साफ महसूस होती है.. उसे कंप्यूटर स्क्रीन पर देवनागरी पढ़ना बिलकुल पसंद नहीं है..

सारी बात बताने के बाद लड़ना चालू, "ओये, वो पूरी मैंने बनाई थी.. तू कैसे लिख दिया कि तूने जो बनाई वही तो मैं खाऊंगी?" और मेरा कहना था "आटा शिवेंद्र साना, पूरी तुम बेली, और उसे तला मैंने.. फिर तुम कैसे सारा क्रेडिट लिए जा रही हो?" खैर थोड़ी ही देर में हम अपनी ही बात पर टिके ना रह कर हँसने-चिढाने लगे.. :)

पिछले गुरूवार को तमिलनाडु एक्सप्रेस में उसे बिठा आया.. अच्छी तरह देख-भाल लिया कि ट्रेन गई कि नहीं? जब ट्रेन निकल गई तभी संतुष्टी हुई कि हां अब वापस नहीं आने वाली है.. ;)

मैंने अब तक कई लेख स्वजनों पर लिख रखें हैं.. अगर ब्लॉग से इतर लोगों की बात की जाये तो शायद ही किसी ने ब्लॉग पर ही प्रतिउत्तर में अपनी बात कही हो.. अक्सर मित्रगण ई-पत्रों के द्वारा अपने मन की बात कहते हैं, कई दफ़े वह भी नहीं.. मैं वैसे भी जिसके बारे में लिखता हूं, उनसे प्रतिउत्तर की उम्मीद नहीं रखता हूं.. अक्सर कई दफ़े मैं बताता भी नहीं हूं कि आपके बारे में कुछ लिखा है.. मगर चूंकि मैं यहाँ इसकी एक तस्वीर लगाना चाह रहा था, सो इससे पूछा कि लगाऊं कि नहीं, और इसे पता चल गया कि इसके बारे में कुछ लिखा गया है.. :) साथ ही साथ इसका एक कमेन्ट भी मिल गया..

इसने लिखा था :

इस सलीके से जिंदगी का तार बुना है
हर शहर से मसरूफियत का अलंकार जुड़ा है
नये लोगों को दोस्त बनाने मे होती है जो कशमकश
हर शहर के रास ना आने में छिपी वो वजह है

शायद अपनी बात ठीक से कह नहीं पायी मैं यहाँ...पर बताने का प्रयास जरूर करुँगी..मैं हिंदी ब्लॉग नहीं पढ़ती और प्रशान्त ये बहुत अच्छे से जानते हो तुम..पर मेरे बारे में क्या लिखे हो ये Thought थोडा Motivating था मेरे लिए...
बहुत कम शब्दों में पूरा मर्म कह दिया तुमने....
अपने परिवार, अपने दोस्त, अपने शहर से बाहर आने में तकलीफ होती है और कुछ भी नया अपनाने में विरोध होता है...वही विरोध झलकता है किसी नए शहर को कोसने में....पर विरोध में भी एक जुड़ाव है और वही जुड़ाव उस जगह से दूर जाने पर दिखता है..
मुझे तो ये फिकर है कि चेन्नई को कोस नहीं पाउंगी अब.. :-P पर तसल्ली के लिए एक नया शहर मिल गया है बैंगलोर....
बहुत अच्छी पोस्ट है तुम्हारी....या मुझे इसलिए पसंद आई क्योंकि मेरे बारे में थी???


अब मुझे मुक्ता से यह कहना है कि वह पोस्ट मैंने अच्छी लिखी थी या नहीं यह मेरे पाठकों पर ही छोड़ दिया जाए, तो अच्छा होगा.. तुम या मैं शायद निष्पक्ष होकर नहीं बता पायेंगे कि कैसी लिखी गई थी.. मगर तुम्हे कवितागिरी का क्या शौक चर्रा गया यार? I am either totally confused or surprised.. मुझे भी नहीं पता.. :D

वैसे यह बात सही कही तुमने दोस्त कि नई चीजें स्वीकार करने में मन में अक्सर एक विरोध होता है, और वही विरोध झलकता है किसी नए शहर को कोसने में.. मगर यह सच्चाई भी है कि परिवर्तन ही संसार का नियम भी है.. खैर मैं भी क्या दर्शन बांटने लग गया हूँ.. अच्छे से कोसना नए शहर को.. :)

नोट : मेरे विचार से आज कि यह पोस्ट घोर ब्लोगरिय पोस्ट है.. :D

वैसे अगर आप इस पोस्ट को पढेंगे तभी इस पोस्ट का मुआमला कुछ-कुछ समझ में आएगा.. :)

17 comments:

  1. एक अलग सी रवानगी है.... इस पोस्ट में.... बिलकुल सब कुछ ऐसा लग रहा था कि.... हाँ! सब आँखों के सामने फिल्म की तरह है.... ब्लॉग से लॉग आउट कर चुका था.... लेटे लेटे ही पढ़ रहा था.... कि कमेन्ट देने से रोक नहीं सका.... फिर उठा और लॉग इन किया ... बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट.... अंत तक बाँध कर रखा....

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  2. Thanks भैया.. :)

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  3. agreed to note, rather घोर नहीं घनघोर ब्लॉगरीय पोस्ट।
    अच्छे से कोसना नये शहर को :)
    great stuff, boss.

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  4. अच्छा किये जो उसकी टिप्पणी का जिक्र किये .. मै तो उसे पढकर, 'waah!! jebaat :)' कहकर निकल लिया था.. :)

    ऎसी दोस्ती हमेशा कायम रहे.. अपनी दोस्ती भी पार्टनर!!

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  5. प्रशांत भाई.. मैं हिंदी ब्लॉग नहीं पढ़ती और प्रशान्त ये बहुत अच्छे से जानते हो ये बात चुभ गई.. जाने क्यों..
    सच कहूं तो इस पोस्ट में पहले की पोस्टों की तरह मुझे तो मज़ा नहीं आया.. ना ही रवानगी दिखी.. मुआमला टूटा-टूटा लगा.. कम से कम आप जैसे दोस्त को झूठ बोल कर अँधेरे में नहीं रखना चाहूंगा.. शायद आप राहुल बोस की तरह क्रोस ओवर सिनेमा बनाने लगे हैं जो हर किसी के पल्ले नहीं पड़ता.. या फिर मुझे ही इस तरह की मॉडर्न आर्ट की ज्यादा समझ नहीं है(हालाँकि पेंटिंग जरूर करता हूँ मॉडर्न :) ) प्लीज छोटा बच्चा समझ कर माफ़ कर देना अगर कुछ तल्ख़ लगे तो... पर एक बार सोचना जरूर कि कहीं जलेबी को जीवन की उलझन तो नहीं बता रहे...

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  6. pahile to ham canfusiya gaye the...baad mein maamla samjhe...
    badhiya laga bhai...
    likhte raho..aur doston se dosti nibhate raho...jeewan mein yahi ek rishta hai jo acche se nibh jaata hai...

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  7. मेरे विचार से आज कि यह पोस्ट घोर ब्लोगरिय पोस्ट है.


    -सही विचार है मगर है मजेदार..कुछ अलग सी!

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  8. मुझे तो ये अघोर ब्लॉगरीय पोस्ट लगी।

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  9. कुछ बीज हम्मे अभी भी बाकी है.. दोस्ती वाला भी उनमे से एक है..

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  10. जी पी.डी. जी, ये घोर ब्लॉगरीय पोस्ट है... इससे पहले मुक्ता पर तुमने पोस्ट तब लिखी थी जब मैं कली के दुःख में ब्लॉग जगत से दूर थी... दोस्तों को याद करना कितना अच्छा होता है और कभी-कभी एक-दो छोटी मुलाकातें भी गहरी दोस्ती में बदल जाती हैं... दोस्ती बड़ा प्यारा रिश्ता है... तुम्हारी दोस्ती बनी रहे...

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  11. I am either totally confused or surprised.. मुझे भी नहीं पता.. :D

    पता चलने में क्या आनन्द आने लगेगा ?

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  12. कोमल सी प्यारी सी पोस्ट है ..हाँ पर मुक्ता का कमेन्ट ज्यादा अच्छा लगा मुझे सिवाय इसके कि वह हिंदी ब्लॉग नहीं पड़ती :( .
    खुदा आप लोगों की दोस्ती कायम रखे.

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  13. ई का इंग्लैंड से आई है ?
    बुरा लगे तो दो गिलास पानी और पी लेना

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  14. बहुत अच्छी पोस्ट. मुक्ता से कहिए कि वो भी हिन्दी पढा करे, कम्प्यूटर स्क्रीन पर.

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  15. Beautifully written
    nice post !

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  16. बहुत दिनों बाद इधर आया था यूँही चहल कदमी करते करते तुम्हारी इस पोस्ट पर नज़र पड़ी.
    पढ़ कर अच्छा लगा.
    कुछ अलग और खास
    बहुत खूब.

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