Monday, September 24, 2007

कवि का निर्माण (व्यंग्य)

मैंने अक्सर लोगों को और अपने दोस्तों को कहते सुना है कि जब किसी का दिल इश्क़ में टूटता है तो वो कवि बन जाता है और कवितायें लिखने लगता है। मेरी भाभी मुझे अक्सर चिढाती भी हैं कि आपका दिल किसने तोड़ा कि आप कवितायें लिखने लग गये। और मेरे पास कोई जवाब नहीं होता है। मैं सोचने लगता हूं की किस-किस का नाम् लूं, कोई एक हो तो। जहां कोई खूबसूरत हसीना दिख जाती है बस दिल वहीं अटक जाता है। शायद जवानी की मस्ती ऐसी ही होती है। लेकिन मेरी बात को कोई गंभीरता से लेता ही नहीं है तो इसमें मेरी क्या गलती है? हर वक़्त उन्हें लगता है की मैं उनसे मजाक ही कर रहा हूं।

खैर मैं आया था कुछ रिसर्च वर्क करने और अपनी ही कहानी सुनाने बैठ गया। रिसर्च का विषय है "कवि का निर्माण"। अगर दिल टूटने से ही कोई कवि बन जाये या फ़िर मेरी तरह छोटी-मोटी कवितायें लिखने लगे तो, मुझे इस पर आश्चर्य होगा की हमारे महान भारत की पृष्टभूमि से जिन महाकवियों की उपज हुई है, वो कवि कैसे बने होंगें? बाल्मिकी से लेकर तुलसी दास तक और दिनकर से लेकर सुभद्रा कुमारी चौहान तक, सभी के पीछे एक दिल टूटने की कहानी होनी चाहिये। वैसे भी ये कहा गया है :

वियोगी होगा पहला कवि,
आह से उपजा होगा गान।
आंखों से बहकर चुपचाप,
बही होगी कविता अनजान।




मैं जहां तक तुलसी दास के बारे में जानता हूं, वो अपनी पत्नी की बातों से आहत होकर भगवान की खोज में निकल पड़े थे और स्त्रीयों के बारे में उनके विचार इस पंक्तियों से पता लग सकता है :

ढोल, गंवार, सूद्र, पशु, नारी।
ये सब तारण के अधिकारी।


हां तो मैं बोल रहा था की कुछ ना कुछ गड़बड़ तो जरूर होनी चाहिये इस सभी महान कवियों के पीछे। कम-से-कम एक रहस्य तो जरूर होनी चाहिये जिसकी खोज करके लोग PHD की डिग्री ले सकें। छोटी-मोटी कई कहानी ना होकर एक सॉलिड कहानी तो होनी ही चाहिये। वैसे अगर ये कहावत सही है की "सौ चोट सुनार की, एक चोट लुहार की", तो हमारे रोमान्टिक कहानियों के सुपर हीरो मजनू को इस कविता की दुनिया के सबसे पहुंचे हुये कवि का खिताब मिलना चहिये।

खैर मेरा रिसर्च अभी यही तक पर सीमीत है, अगर आप इस पर रिसर्च करके कुछ और तथ्य को सामने ला सकें तो बहुत कृपा होगी। शायद मैं इसी में PHD की डिग्री प्राप्त कर लूं!!!
:D

2 comments:

  1. मन में स्पन्दन तो चाहिये, पर कलम पकड़ने की तमीज भी तो जरूरी है. वर्ना हिन्दी ब्लॉगरी जैसा हो जायेगा. कवि बहुत ज्यादा होंगे और सुनने वाले शून्य!

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  2. Namaskaar PD Ji
    sarva pratham to main kshama prarthi hoon ki Hindi bhaasa mein nahi likh rahi hoon...
    aapka PHD ka vishaya atyant rochak hai... waise main aapke vicharoon se sahmat nahi hoon ki har kavi k kavi banane k pechche ek hi karan hota hai...
    yeh sirf ek pakshya hai jisse aapne dekha hai... kavitya to prerna par nirbhar karta hai..
    ab wah prerna-strota kuch bhi ho sakta hai.. jaise koi bhaav ( vatsalya, veer ras, viyog, bhakti.. ityadi..)..
    lekin chaliye Ji aap apni PHD jaari rakhiye...
    Meri shubh kaamnayein aapke saath hein...
    -Vandana

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