Wednesday, September 12, 2007

कुछ कविताऐं दोस्तों की तरफ़ से

मैंने आज का अपना ये पोस्ट अपने इंटरनेट के मित्रों के नाम किया है जो अपने आप में एक अनूठे व्यक्तित्व के स्वामी हैं। एक का नाम है वंदना त्रिपाठी और दूसरे हैं सजल कुमार। दोंनो ही अपने आप में कई खूबियों को समेटे हुये हैं। वंदना जी से मैं सबसे पहले दिसम्बर महीने में मिला था और सजल जी से मैं कब मिला मुझे याद नहीं है पर शायद अक्टूबर या नवम्बर में मिला था। इन दोनों ही से मेरी मुलाकात और्कुट पर हुई थी और वो भी सुपर कमांडो ध्रुव काम्यूनिटी में। वंदना जी की चर्चा मैं अपने इस ब्लौग पर पहले भी कर चुका हूं। उसे पढने के लिये यहां खटका दबाऐं।

य़े दोनों ही मेरे ऐसे मित्र हैं जिनसे बातें करते समय मुझे लगता ही नहीं है की मैं किसी ऐसे से बात कर रहा हूं जिससे मैं कभी मिला नहीं हूं। सजल जी की बातों से जहां मासूमियत झलकती है तो वंदना जी की बातो से परिपक्वता। दोनों ही के अपने-अपने तरीके हैं तो अपनी-अपनी पसंद भी। पर एक जगह जाकर दोंनो की पसंद मिल जाया करती है। वो ये की ये दोनों ही अच्छी कविताऐं लिखते हैं। जहां वंदना जी अंग्रेजी में कविता लिखने के हुनर में माहिर हैं तो सजल जी हिंदी और उर्दू की अच्छी समझ रखते हैं।

यहां लिखी हुई पहली कविता वंदना जी की लिखी हुई है और दूसरी कविता उसे उसी अंदाज में सजलजी के द्वारा अनुवाद किया हुआ है। इसके मौलिक रूप को पढने के लिये आप यहां खटका दबाऐं।

Today the wind is blowing so fast,

That I can remember the Memories of my past

I can feel the moisture of Your tears in the Air

I can feel the Fragnance of Your body here & there

All these sparkling stars in the Sky

Make Me to remember

The Serenity of Your Eyes

As the Wind kisses My Cheeks

I can remember

The Softness of Your lips

As these black clouds are Wandering without Fear

It's natural for Me

To image them as Your untied Hair

All these beautiful things make to feel that

I am not Alone

Somebody is always besides Me to shape My SOUL!!!

ये सजल जी के द्वारा किया हुआ अनुवाद है।

आज इन हवाओं में कुछ ऐसी गति है,

कि इनमे नज़र आती मेरे अतीत की प्रगति है,

हवाओं में तेरे

आँसूओं की नमी महसूस होती है,

तेरे बदन की खुश्बू यहीं कहीं महसूस होती है,

आकाश के ये चमकते सितारे याद दिलाते है

तेरे आँखों की शांत चंचलता,

जब हवा सहला जाती है मेरे गालो को,

मुझे याद आती है तेरे होंठो की कोमलता,

ये निर्भीक काले बादल स्वभाविक रूप से

तेरे खुले बालों कि भाँति नज़र आते है,

ये खूबसूरती का 'आलम' कराता है एहसास,

की मैं अकेली नही हूँ,

कोई हमेशा है पास,

और जो मेरी आत्मा को नये आयाम,

नये मायने दे रहा है..


सबसे बड़ी बात तो ये है कि ये दोनों ही पेशे से लेखक या कवि ना होकर इंजीनियर हैं। जहां सजल जी अभी अपनी पढाई पूरी भी नहीं किये हैं, वहीं वंदना जी अभी-अभी अपनी पढाई पूरी करके नोयडा में अपनी पहली नौकरी में गई हैं।

9 comments:

  1. सुंदर, वाह। बहुत अच्‍छी कविताएं। केवल शीर्षक में कुछ फेरबदल कर दो- वाक्‍य दुरुस्‍त जो जाएगा। दोस्‍तों के तरफ से को दोस्‍तों की तरफ से कर दो। प्‍लीज़।

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  2. लिजीये भैया, मैंने शीर्षक बदल दिया है और हां एक बात, आप आग्रह् नहीं करें आदेश दें।
    :)

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  3. wow........bahut hi badiya likha hai aapne, vandanaji aur sajalji.......vese main dono ke baare me jaanta hoon isliye ye post padhne me aur bhi maza aaya!.......great going, keep going.

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  4. इंजीनीयर साब की कविता ठीक-ठाक लगी, पर अविनाष की टिप्पणी पर जरूर मजा आया अब ये नहीं लिखेगे कि क्यों... औ प्रशांत जी प्रसिद्धी जैसी कोई चीज मेरी नजर में नही होती जब प्रसिद्धी मिलनें लगती है तो मेरे नजर में उस आदमी के लिये शक पैदा हो जाता है ...खैर यह मेरी अपनी सोच है| पर आजमाता रहता हूँ|

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  5. अरे तेरा ब्लॉग तो वाकई बहुत अच्छा दिख रहा है!

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  6. अरे वाह! आप लोग तो बहुत प्रतिभावान हैं. हम सोचते थे कि उत्कृष्टता का ठेका मेरी ही पीढ़ी ले कर चल रही है.
    बस शायद यह हो कि दो अलग-अलग जेनरेशन के लोग सम्प्रेसंण में अटपटा पन महसूस करते हों. आज PD ने मेरे ब्लॉग पर कमेण्ट किया तो यहां आया मैं. और आ कर बहुत अच्छा लगा.
    फॉण्ट साइज कुछ बढ़ सकता है क्या?

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  7. जी हां, फ़ोंट साईज जरूर बढ सकता है.. मैं अभी अपने ब्लौग पर कुछ प्रयोग कर रहा हूं, जल्द ही आपको सभी कुछ सही दिखने लगेगा..
    :)

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  8. प्रशान्त भैया को मेरा शुक्रिया...सच कहूँ तो मुझे नही लगता की ऐसी किसी तारीफ़ क हक़दार मैं हूँ..वैसे एक बात ज़रा अजीब लगी कि भैया ने मुझे चंचल और वंदना जी को परिपक्व बताया है,जबकी भोलेपन में वो हमेशा मुझसे दो कदम आगे रहेंगी. . .प्रशान्त जी से तो एक खास रिश्ता जुड़ गया है..इसका एक आश्चर्यजनक उदाहरण आज मुझे खुद देखने को मिला "मासूम" फ़िल्म पर बनाये गये ब्लॉग के रूप में,जिसे एक ऐसे वक़्त डाला गया है जब पिछले कुछ दिनो से मैं लगातार इस फ़िल्म की बात कर रहा हूँ...अब इसे एक् अनोखे रिश्ते के अलावा क्या कहूँ

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  9. सुंदर!!
    आज सारथी जी के लेख पर आपकी टिप्पणी के सहारे यहां तक पहुंचा।

    पता नही अब तक आपके ब्लॉग पर नज़र क्यों नही पड़ी! तमाम एग्रीगेटर्स में पंजीयन करवाया है या नही आपने अपने ब्लॉग को! अगर करवाया लिया हो तो मुझे अफ़सोस है कि अब तक मेरी नज़र क्यों नही पड़ी।
    शुभकामनाएं

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