आज अपने एक मित्र से बात कर रहा था तो वो युं ही मज़ाक में बोली थी कि अब बस इमैजिनेट करते रहो, उस समय मन किसी और ही भंवर में फ़ंसा हुआ था और मन ही मन में ये कुछ शब्द उभर आये जो मैं यहां लिख रहा हूं।
असीमित इच्छाओं की उड़ान,
जैसे पंछियों का गगन में उड़ना,
मगर ये मानव मन की उड़ान,
कुछ अलग है उनसे..
जैसे,
निर्जीव 'औ' असीम कल्पनाऐं,
और उन कल्पनाओं के पीछे भागता मनुष्य,
कल्पनाओं को पीछे छोड़ता मनुष्य..
पर ये तो निर्जीव हैं!
बिलकुल भावनाओं की तरह..
पर फ़िर भी कल्पनाऐं
'औ' भावनाऐं पनपती हैं..
और उनके पीछे भागता है मनुष्य...
मुझे यह पसन्द आया:
ReplyDelete...और उन कल्पनाओं के पीछे भागता मनुष्य,
कल्पनाओं को पीछे छोड़ता मनुष्य..
पर कल्पनायें वह हैं जो मन में वैक्यूम नहीं रहने देतीं. उन्हे पीछे छोड़ दें तो नयी बन जाती हैं!
मैने आपका ब्लॉग अपने गूगल रीडर में जोड़ लिया है!
प्रियदर्शी जी ,ये जानकार बहुत अच्छा लगा कि ,हमारे टेक्नीकल फील्ड के दोस्त भी हिंदी ब्लोग्गिंग मे काफी रूचि ले रहे है ...और काफी अच्छा लिख रहे है ..जैसा कि आपने भी लिखा है "असीमित इच्छाओं की उड़ान,
ReplyDeleteजैसे पंछियों का गगन में उड़ना," ...एक मेरी तरफ से ...
थे थके थके फिर भी हमे चलना पड़ा । ।
साथ सूरज के हमे ढलना पड़ा ।
बर्फ के उस गुन गुनाते जिस्म को ।
धुप के एक शहर में ढलना पड़ा।
खैर ..आपने काफी अच्छी कविता लिखा है ....
और हां आपका हमारे ब्लोग पे स्वागत है ,।
अच्छी कविता।
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