कई मित्रों का मानना है कि मैं गाना अच्छा गाता हूं और अक्सर मुझसे गाना गाने का आग्रह करते रहते हैं। एक अंधे को क्या चाहिये बस दो आंखें उसी तर्ज पर एक कवि या गवैये को क्या चाहिये बस एक श्रोता। और मैं भी आनंद सिनेमा के राजेश खन्ना कि तरह कभी खाने और गाने मे शरमाता नहीं हूं। खैर ये तो बस एक भूमिका थी, असल बात तो ये बताना था कि कैसे दोस्तो ने ये निर्णय किया था की रात के खाने के बाद सब बैठकर गाना गाना सिखेंगे। और मेरा सोचना था कि जूनियरों के उपर ये अत्याचार के अलावा और कुछ नहीं होगा। आखिर वे बोल भी क्या सकते थे और मेरे कमरे के आस-पास विकास, संजीव और नीरज को छोड़कर बाकी सभी जूनियर ही रहते थे। खैर हमने कभी इसे गम्भीरता से लिया नहीं तो बेचारों का पता नहीं क्या होता।
मैं आपको दूसरे दॄश्य में लिये चलता हूं। मैं चेन्नई में नया-नया आया था और नये जगह में नयी भाषा और नयी संस्कॄति में जल्दी रम नहीं पा रहा था सो उस दिन कहीं मन नहीं लग रहा था। उस दिन गूरूवार था और रात में मुझे पता चला की शुक्रवार को अर्चना बैंगलोर जाने वाली है। और मैने आनन-फ़ानन में बैंगलोर जाने का प्रोग्राम बना लिया। खैर, शुक्रवार को दफ़्तर ना जा कर मैं बैंगलोर के लिये निकल लिया। रास्ते में काटपाड़ी(अर्चना को वहीं से चढना था) से अर्चना का साथ मिल गया। फ़िर बैंगलोर पहूंचकर वहां से हम दोनों वाणी, प्रियंका और प्रियदर्शीनी के आफिस चले गये। शाम के समय हम दोनों और साथ में प्रियंका और प्रियदर्शीनी भी वाणी का इंतजार कर रहे थे। थोड़ी देर में वाणी हमलोगों को ढूंढते हुये हमलोगों के पास पहूंची तो अर्चना के मुंह से ठेठ बिहारी स्टाईल में अचानक ही ये निकल गया कि, "तुम हम लोग को उधर ढूंढ रही थी और हम लोग यहां खड़े होकर बतिया रहे थे।" उसके बाद हंसते हुये अपना माथा पिटते हुये बोली की ये मैं क्या बोलने लगी हूं, तुम लोगों के साथ रहते हुये मैं भी बिहारी भाषा बोलने लग गयी हूं। मुझे कोई बिहारी बॊय फ़्रेन्ड नहीं बनाना है जो तुम लोग मुझे ये सिखा रहे हो। दरअसल अर्चना बचपन से ही मुंबई और दिल्ली में रहती आयी थी और कालेज में आकर ही बिहार के लोगों के संपर्क में आयी थी और वो भी ऐसा की हमारे झुंड(झुंड इसलिये कहा क्योंकि हमारा ग्रुप था ही इतना बड़ा कि उसे ग्रुप नहीं कह सकते थे)में 1-2 को छोड़ कर सारे बिहार या झारखंड से ही थे।
तीसरे दॄश्य में आपको लिये चलता हूं वालपरई की खूबसूरत घाटियों में। ये तमिलनाडू में स्थित है और यहां चाय के कई बागान आपको मिल जायेंगे। ये एक बहुत ही खूबसूरत जगह है और किसी भी तरह से उंटी और मुन्नार(केरल) से कम नहीं है पर ज्यादा लोगों को इसकी जानकारी नहीं है शायद इसीलिये यहां पर्यटकों की ज्यादा भीड़-भाड़ नहीं है और इसका फायदा मुझ जैसे चंद पर्यटकों को मिल जाता है जो वहां कि अनछुई खूबसूरती देखने पहूंच जाते हैं। हमें वहां तक पहुंचते-पहूंचते रात के 10:30 से ज्यादा बज गये थे, और वहां होटल पहूंचते ही सभी थक कर चूर हो गये थे। फिर वाणी ने कहा की सुबह-सुबह कौन घुमने चलेगा मौर्निंग वाक पर? कोई तैयार नहीं हुआ, सभी सुबह की मीठी नींद खराब नहीं करना चाह रहे थे। बस मैं बोला की मैं उठ जाउंगा, पर तुम सोये मत रह जाना। और सुबह जब मैं उठा तो वहां की खूबसूरती देखता ही रह गया। चारों ओर बस पहाड़ीयाँ थी जो चाय के बागानों से ढकी हुयी थी। मैंने बस अपना कैमरा निकाला और धराधर फोटो लेना चालू कर दिया। फिर जाकर तैयार हो गया। इस बीच एक के बाद एक सभी उठने लगे और वहां की खूबसूरती को निहारने लगे। सबसे पहले अमित उठा और उठते ही चिल्लाया "अरे यार मस्त"। और उसने इस एक वाक्य को इतनी बार कहा की सभी कोई उठ कर एक बार जरूर चिल्लाते, "अरे यार मस्त"। फिर तो ये वाक्य हमारा उस यात्रा में पंचलाइन ही बन गया। कुछ भी अच्छा दिखा बस सभी बोल उठते, "अरे यार मस्त"। आज भी कुछ अच्छा दिखता है और अमित मेरे साथ होता है तो मैं एक् बार जरूर कहता हूं, "अरे यार मस्त" और उन पलों को याद कर लेता हूं।
आप सोच रहे होंगे की मैं मौर्निंग वाक पर गया की नहीं, तो जवाब ये है की वाणी सुबह-सुबह उठी और तैयार होकर फिर सो गयी। तमिलनाडू की उमस भरी गर्मी को झेलने के बाद कोई भी उस ठंढे वातावरण में सोने का मज़ा खोना नहीं चाहता था। :)
सुंदर किस्से, व्यवस्थित संवेदनाएं, पुरसुकून स्मृतियां। बधाई।
ReplyDeletemast likha bee. achaa yee bata dee bhaii ki uss group mai mera bhi naam hai ki nahi.
ReplyDeleteअगर ये एक ग्रुप होता तो तुम्हें ये संदेह करना चाहिये था, पर मैंने तो पहले ही बता दिया है कि ये एक झूंड था और झूंड में तो हर वक्त हर किसी के लिये जगह होता है।
ReplyDelete:)
बढ़िया विवरण
ReplyDeleteवालपरई के बारे में हमें मालूम नहीं था । इस जानकारी का शुक्रिता ! और मुन्नार थेक्कड़ी मार्ग पर हम मुन्नार से २५ किमी दूर ठहरे थे वो इलाका भी बेहद खूबसूरत था। हम सुबह छः बजे से ही उठकर चाय बागान की सैर को निकल गए थे। उसके बारे में विस्तार से पाँचवे भाग में लिखा था.
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