मैं यहां विषय से थोड़ा भटक गया था, मेरी समझ में आप अपनी भावनाओं को उसी भाषा में सही तरह से उजागर कर सकते हैं जिस भाषा कि आपको समझ हो। जिस भाषा का आपको ज्ञान भर है उस भाषा में आप अपनी बात को बस दूसरे तक पहूँचा भर सकते हैं। मेरे कई मित्र ऐसे हैं जो अक्सर मुझसे पूछते हैं की मैं अपना सारा ई-मेल हिंदी में क्यों लिखता हूं, क्योंकि मेरी व्यवसायिक भाषा अंग्रेजी है। उसका उत्तर उन्हें मेरे इस चिट्ठे में मिल जायेगा। ये कुछ और नहीं मेरी अपनी भाषा से प्रेम भर है और बस यही कारण है मैं जो कुछ भी लिखता हूं उसकी लिपी देवनागरी होती है।
महत्व को समझे और ज्यादा से ज्यादा इस भाषा का प्रयोग करें क्योंकि प्रयोग करने से ही ये महान भाषा अपने शीर्ष पर पहूंच सकता है। प्रयोग से ही कोई भी भाषा महान बनती है। ये सही है की विदेशी भाषा का अच्छा ज्ञान होने से आप कई जगह सफल हो सकते हैं और इसीलिये विदेशी भाषा का ज्ञान भी होना बहुत जरूरी है, पर वो आपको महान नहीं बना सकती है। आपको और आपकी संस्कृति को महान बनाने का कार्य आपकी अपनी भाषा ही कर सकती है।
Acha likha hai. Shabdon ka selection ache dhang se kiya gaya hai aur sabse achi baat, sabhi ka level ek saman hai (jo pehle kam dekhne ko mailta tha). Na chate hue bhi hum English use kar rahen hain. Waise pehle hindi mein hi likh rahe the lekin acha nahi laga kyonki letter to English hi use ho raha tha.
ReplyDeleteLekin bahut thoda sa likha hai. Time mile to ise badhana. Waise ek jagah mere naam bhi hai bracket mein. Aur hindi ka tu to master hai. Hum kahan….TU KAHAN... haan kabhi kabhi use kar lete hain. Sahi use to tu kar raha hai. Mere ko likhne ko bola jaye halat kharab ho jayega. Aur tu to achchha khasa likh leta hai.
Tera “ek kahani bachpan ki” padhe. Who bhi acha hai. Khaskar last wala paragraph. Ekdum sahi likha hai.
भारतेंदु ने कभी कहा था, निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल... ठीक है कि हिंदी आप अपनी मातृभाषा की संज्ञा देते हैं, लेकिन ये ज़बान कई ऐसी लोकभाषाओं की बुनियाद पर खड़ी है, जिन पर आज सत्ता-व्यवस्था का ध्यान नहीं है। आप बंगाल और थोड़ा दक्षिण को देखिए। उनकी सांस्कृतिक समझ और विरासत आपकी हिंदी से कहीं अधिक समृद्ध है। सौ-दो सौ साल की हिंदी को आप इतना अधिक सम्मान दे रहे हैं, लेकिन आपके घर की ज़बान मैथिली आपके लिए बेगानी है, जिसके कवि विद्यापति तमाम भारतीय भाषाओं के आदिकवि हैं। इसलिए अच्छा है कि आपके हिंदी का ज्ञान है, लेकिन भाषाई समझ के मामले में ये ज्ञान अभी और गहराई की मांग करता है।
ReplyDeletelikha achaaa hai per 1 galti kar di bhai neee. anvesh ke samne kabhi bhasha ka pryog hi nahi kiaa.
ReplyDeleteसबसे पहले तो आपसे शिकायत है, कि आपने बड़े भाई की तरह नहीं एक अंजान बन कर अपनी प्रतिक्रिया जताई है। अगर आप बड़े भाई कि तरह लिखते तो आप मुझे तुम कह कर ही संबोधित करते। खैर आप मुझसे बहुत बड़े हैं और हर क्षेत्र में मुझसे बहुत ज्यादा अनुभव भी है, सो आपको इसकी ज्यादा समझ होगी।
ReplyDeleteमैं यहां बस इतना ही कहना चाहूंगा कि कोई भी भाषा मेरी समझ में अच्छा या बुरा नहीं होता है, अच्छे या बुरे तो हम या आप होते हैं। ये तो हमारे समाज में बैठे लोग ही तय करते हैं कि कौन भाषा अच्छा या बुरा है। और जहां तक आपने मेरी बात कही है तो मेरा कहना ये है की मैथिली मेरे लिये एक ऐसी भाषा है जिसे मैं अंग्रेजी से भी कम जानता हूं, अब आप ही कहिये मैं इसे अपनी मातृभाषा कैसे कह दूं। ठीक उसी तरह मैं दरभंगा का रहने वाला हूं क्योंकि मेरे पिताजी वहां के थे, मगर मैं वहां कभी 10 दिन भी लगातार नहीं रहा तो मुझे उससे भी बहुत ज्यादा लगाव नहीं है। मैं पटना में सबसे ज्यादा समय रहा हूं तो मुझे पटना से ज्यादा लगाव है। ठीक इसी तरह अगर मेरे बाद की पीढी अगर किसी और महानगर को अपना शहर कहने लगे तो मुझे कभी भी ऐतराज नहीं होगा। क्योंकि मैं जानता हूं कि उसे पटना या दरभंगा से बहुत ज्यादा लगाव कभी नहीं होने वाला है। शायद दो पीढी के बीच होने वाले कम्यूनिकेशन गैप का एक बहुत बड़ा कारण ये भी है कि पहली पीढी सोचती है की दूसरी पीढी मेरी तरह क्यों नहीं सोचती है और दूसरी पीढी के पास उस तरह से सोचने का कोई उचित कारण नहीं होता है।
आप अच्छी तरह जानते हैं कि मैं अभी चेन्नई में हूं और मुझे तमिल नहीं आती है और मुझे इस कारण कई तरह की परेशानियों का सामना करना परता है। लेकिन फ़िर भी मैं इस भाषा के महत्व को समझता हूं और ये भी जानता हूं की ये भाषा हिंदी से बहुत ज्यादा समृद्ध है। मेरे ख्याल से आप मेरी भावनाओं को अच्छी तरह समझ रहे होंगे।
मैं किसी भाषा को किसी से न तो कमतर बता रहा हूं, न बेहतर। तमाम भाषाओं की अपनी विरासत है, अपने मुहावरे हैं। मैं सिर्फ ये कहना चाहता हूं कि अगर अंग्रेज़ी आज विश्व भाषा है, भले ही वो अमेरिकी साम्राज्यवाद के ताक़तवर होने की वजह से हो, लेकिन वो हम तक सीधे बेलाग पहुंचती है। उसे हमने सीखा और सीखने में कोई गुरेज़ नहीं रखी। लेकिन भारतीय भाषाओं को सीखने की हमारी हकलाहट के पीछे का मनोविज्ञान भी हमें समझना होगा। आपको जो माहौल मिला, उसमें आपका मैथिली न जानना लाज़िमी है- मेरा आग्रह सिर्फ इतना है कि अगर आपने थोड़ी कोशिश करके उस ज़बान के मुहावरे हथिया लिये होते, तो आपकी हिंदी में भी एक चमक आ जाती। बाक़ी आपकी तमाम बातों से मैं सौ फ़ीसदी सहमत हूं।
ReplyDeleteआपका कहना बिलकुल सही है भैया, और ऐसी बात नहीं है की मैं इसका प्रयास नहीं कर रहा हूं। आप मेरे पास कई मैथिली की किताबें पा सकते हैं जिनमें "हरिमोहन झा" का नाम प्रमुख है।
ReplyDeleteजितेन्द्र जी के लियेः आपके सुझाव के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं पहले ही वहां अपना पंजीकरण करा चुका हूं और सोमवार का इंतजार कर रहा हूं।
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है।
ReplyDeleteहिन्दी के प्रति आपकी भावना भी स्तुत्य है।
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