Thursday, December 17, 2009

पता नहीं, प्रोसेसर स्लो है या हार्ड डिस्क फुल?

आज सुबह ऑफिस जाने की हड़बड़ी में था तभी देखा कि पापा जी का फोन आ रहा है.. और इससे पहले भी तीन बार उनका फोन आ चुका था जिसका मुझे पता नहीं चल सका.. उन्होंने बताया कि मेरे लिये किसी सईद का फोन आया था और उन्होंने मेरा नंबर उसे दे दिया है..मैं तब से ही सोच रहा हूं कि ये सईद कौन है? और उसके पास मेरे घर पटना...

Wednesday, December 16, 2009

अब भी उसे जब याद करता हूं, तो बहुत शिद्दत से याद करता हूं

समय के साथ बहुत कुछ बदला है.. मैं भी बदला हूं, मेरी सोच के साथ-साथ परिस्थितियां भी बदली है.. कई रिश्तों के मायने बदले हैं.. पहले जिन बातों के बदलने पर तकलीफ़ होती थी, अब उन्ही चीजों को देखने का नजरिया भी बदला है और उन्हें उसी रूप में स्वीकार कर आगे बढ़ने की प्रवॄति भी आ गई है.. जिन चीजों के बदलने पर तकलीफ...

Tuesday, December 15, 2009

DDLJ के जादू का बाकी है असर

कुछ महिने पहले "दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे" के 14 साल पूरा होने के अवसर पर मैंने अपनी याद अजय जी के ब्लौग चव्वनी छाप पर आप लोगों से बांटा था.. आज उसे ही अपने ब्लौग पर भी बांचे जा रहा हूं.. डीडीएलजे ऋंखला के बाकी लेख पढ़ने...

Sunday, December 13, 2009

एक कविता कोडिंग पर

कोई अपने ही घर में चोरी करता है क्या? नहीं ना? मगर मैंने किया है.. ज्ञान जी के शब्दों में यह रीठेल है.. यह कविता मेरे एक बेहद पुराने पोस्ट पर डा.अमर जी ने कमेंट किया था जिसे यहां ठेले जा रहा हूं.. आजकल ब्लौगिंग करने की फुरसत भी नहीं है और कुछ लिखने की इच्छा भी नहीं, तो सोचा क्यों ना अपना शौक कुछ इसी...

Wednesday, December 02, 2009

बैंगलोर में मार-कुटाई की बातें

दो लोग मेरी जिंदगी में ऐसे भी हैं जिन्हें देखते ही धमाधम मारने का बहुत मन करने लगता है.. पता नहीं क्यों.. एक को तो अबकी पीट आया हूं और दूसरे को धमका आया हूं कि जल्द ही आऊंगा, मार खाने को तैयार रहना.. यह मत सोचना कि लड़की...

Friday, November 27, 2009

दर्द की कोई उम्र नहीं होती

दर्द की कोई उम्र नहीं होती, वो ना तो एक साल की होती है और ना ही सौ साल की.. चाहे वह 26/11 हो, मुंबई बम ब्लास्ट हो, 2002 गुजरात हो, सिख दंगे हो या कुछ भी.. वह हमेशा उतनी ही सिद्दत से महसूस की जाती है जैसे पहली बार..ठीक एक...

Thursday, November 26, 2009

ये बूढ़ी पहाड़ियां अक्सर उदास सी क्यों लगती हैं?

जब कभी किसी हिल स्टेशन पर घूमने जाता हूं तो वहां की पहाड़ियां अक्सर मुझे बहुत उदास सी लगती हैं.. लगता है जैसे कुछ कहना चाहती हों.. अपना दर्द किसी से बांचना चाहती हों, मगर उन्हें सुनने वाला वहां कोई ना हो.. लम्बे-लम्बे देवदार...

Monday, November 23, 2009

क्या शीर्षक दूं, समझ में नहीं आ रहा है

अभी कल ही दो दिनों के ट्रिप से लौटा हूं.. येलगिरी नामक जगह पर गया था जो तमिलनाडु का एक हिल स्टेशन है.. अभी फिलहाल इन चार चित्रों को देखें, लिखने का मन किया तो वहां के भी किस्से सुनाऊंगा..ये पिल्ला अपनी मां और भाई-बहनों को...

Friday, November 20, 2009

भगवान का होना ना होना मेरे लिये मायने नहीं रखता है(एक आत्मस्वीकारोक्ति)

मैंने आज तक इस विषय पर कभी कोई पोस्ट नहीं लिखा है और शायद आगे भी नहीं लिखूं.. मैं भगवान को नहीं मानता हूं और उन्हें मानने या ना मानने को लेकर किसी से कोई तर्क-वितर्क नहीं करता हूं.. जब मैं भगवान को नहीं मानता हूं तो खुदा या ईसा को मानने का सवाल ही पैदा नहीं होता है.. फिर भी मुझे अपने हिंदू होने पर गर्व...

Thursday, November 19, 2009

नौस्टैल्जिक होने के बहाने कुछ गुमे से दिन

यूं तो नौस्टैल्जिक होने के कई बहाने हम-आप ढ़ूंढ़ सकते हैं, तो एक बहाना संगीत का भी सही.. आज सुबह से ही 'माचिस' फिल्म का गीत "चप्पा-चप्पा चरखा चले" का एक लाईन जबान पर चढ़ा हुआ है.. "गोरी-चटखोरी जो कटोरी से खिलाती थी,जुम्मे के...

Saturday, November 14, 2009

अलग शहर के अलग रंग बरसात के

बाहर झमाझम बरखा बरस रही है.. तीन-चार दिन सुस्ताने के बाद फिर से मानो आसमान बरस पड़ा हो.. यह बारिश जब कभी देखता हूं, उसमें एक पागलपन सा मुझे नजर आता है.. ढ़ेर सारी खुशियों को मैं उनमें देखता हूं.. ढ़ेर सारी उदासी भी नजर आती...

Thursday, November 12, 2009

बेवक्त आने वाले कुछ ख्यालात

कभी-कभी कुछ सवाल दिमाग में ऐसे उपजते हैं कि यदि उसे उसी समय पूछ लो तो गदर मचना तय हो जाये.. हर समय उल्टी बातें ही दिमाग में आती है.. अगर हम खुश हैं तो इस तरह के सवाल ज्यादा आते हैं..कुछ दिन पहले एक लंबे-चौड़े मिटिंग के बाद हमारे सुपर बॉस आये.. आते ही कुछ फंडे पिला कर बजा डाला, "यू कैन आस्क अनी काईंड...

Sunday, November 08, 2009

कार्यालय में बनते रिश्ते

हमने एक छोटा सा ही सही जिसमें मात्र तीन सदस्य हुआ करते थे, मगर एक ग्रुप बनाया हुआ था.. जिसका नाम रखा था एस.जी. ग्रुप.. जिसका फुल फार्म हमारे लिये सिंप्ली गॉसिप हुआ करता था.. मगर वही कोई और यदि उसके बारे में पूछे तो उसे सामान्य ज्ञान बताया जाता था.. ये ऑफिस में दोस्ती का दायरा पहली बार बढ़ने पर हुआ था.....

Wednesday, November 04, 2009

बदलाव के चिन्ह एक बार फिर

आजकल खूब हंसता हूं.. जहां गुस्सा आना चहिये होता है, वहां भी हंसने लगा हूं.. कभी खुद पर हंसता हूं तो कभी अपने भाग्य पर.. पहले कभी भी भाग्यवादी नहीं था, मगर अब लगता है जैसे धीरे धीरे भाग्यवादी होता जा रहा हूं.. कारण बस इतना ही है कि कहीं देखता हूं कि लोग मर मर कर काम कर रहे हैं मगर कुछ फायदा उन्हें नहीं...

Wednesday, October 28, 2009

कौन सा ब्लौग? कौन सा चिट्ठा? कौन से मठाधीष?

आज कोई भी माई का लाल ऐसा नहीं कह सकता है कि उसने हमे हिंदी ब्लौगिंग सिखाई.. अगर कोई है तो आये, हम भी ताल ठोके तैयार बैठे हैं.. हद है यार.. यहां ब्लौग को चिट्ठा किसने कहा? नामवर जी को क्यों बुलाया? जैसे व्यर्थ प्रश्न में ही अपना दिमाग खराब किये हुये हैं.. हम तो यहां आलोक जी से लेकर नामवर जी तक, सभी का...

Tuesday, October 20, 2009

लंद-फंद देवानंद बतिया रहे हैं, पढ़ने का मन हो तभिये पढ़ियेगा

गूरू लोग अपन गूरूपनी झाड़ले चलते हैं कि बेटा खूब मेहनत करो.. बड़का औफिसर बनोगे.. पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे त होगे खराब.. एक्को गो नसिहत काम नहीं आता है.. दोस्त लोग के साथ लंद-फंद देवानंद बतियईते चलते हैं.. अबकी इंटरभ्यू में ई सब पुछिस थी ऊ एच.आर. अऊर टेक्निकल बला राऊंड तक त पहुंचबो नहीं किये.....

Monday, October 19, 2009

दिवाली की रात मेरे घर में भूतों का हंगामा

इसमें मैं यह नहीं लिखूंगा की दिवाली की रात हमने कैसे दिये जलाये? क्या-क्या पकाया? और कितने पटाखे जलाये.. ये सब तो लगभग सभी किये होंगे.. मगर दिवाली कि रात कुछ हटकर अलग सा कुछ हो तभी तो मजा है, और वो भी अनायास हो तो सोने पे सुहागा.. तो चलिये सीधे किस्से पर आते हैं..दिवाली मनाने के बाद हम सभी मित्र खाना...

Friday, October 16, 2009

शीर्षकहीन कविता दिवाली की

जहां हर खुशी से तुम्हारी याद जुड़ी होअच्छा है कि हमने मिलकर कभी नहीं मनाया,होली या दिवाली..अब कम से कमइन दो त्योहारों परतुम्हारी याद तो नहीं आती है..जैसे उन पहाड़ों से भागता हूं,जहां घूमे थे हम साथ-साथहाथों में हाथ लिये..सच...

Tuesday, October 13, 2009

एक बीमार की बक-बक

मेरे ख्याल से बीमार आदमी या तो बेबात का बकबकिया हो जाया करता है या फिर चुपचाप अपने में सिमटा रहता है और यह समय भी बीत जायेगा जैसे ख्यालों में रहता है.. जब तक घर में था तब जब कभी पापाजी बीमार पड़ते थे, उनके मुख से अनवरत कविता-कहानियों का निकलना चालू हो जाता था.. एक से बढ़कर एक कविता-कहानी.. किसी आशु कवि...

Monday, October 12, 2009

ईश्वर बाबू

आज यूं ही अपने ई-मेल के इनबाक्स के पुराने मेल पढ़ते हुये कुछ कवितायें हाथ लगी, जिसे मैं यहां पोस्ट कर रहा हूं.. मुझे नहीं पता यह किसकी लिखी हुई है, मगर जिनकी भी है अगर उन्हें इस कविता के यहां पोस्ट करने से आपत्ति है तो कृप्या एक कमेंट अथवा ई-मेल के द्वारा सूचित करें.. तत्पश्चात इसे यहां से हटा लिया जायेगा..ईश्वर...

Thursday, October 01, 2009

ब्लौगर हलकान सिंह 'विद्रोही' का चेन्नई आगमन

अब क्या कहें, ये हलकान सिंह विद्रोही आजकल जहां देखो वहीं दिख जाते हैं.. पहले कलकत्ता में शिव जी के साथ मटरगस्ती कर रहे थे.. फिर कानपूर में अनूप जी को कथा कहानी सुनाने लगे.. अब जब वह चेन्नई आये थे तब उन्होंने मुझे बताया कि एक दिन वे भटकते हुये मेरे पुराने पोस्ट पढ़ने लगे.. देखा कि यह तो अमूमन जिस किसी...

Wednesday, September 30, 2009

मुझे नहीं पढ़ना यह ब्लौग!!

जैसा कि मैं कई बार पहले भी अपने पुराने पोस्ट पर बता चुका हूं, मैं अधिकतर ब्लौग गूगल रीडर की सहायता से ही पढ़ता हूं.. कुछ ब्लौग ऐसे भी मिलते हैं जिसे कुछ दिनों तक देखने के बाद उसमें अपनी पसंद की कोई चीज नहीं मिलती है.. फिर...

Tuesday, September 29, 2009

ब्लौगवाणी के बाद हिंदी चिट्ठाकारिता की दिशा क्या हो सकती थी?

अभी-अभी नेट पर बैठा.. हर दिन की तरह दिन की शुरूवात ब्लौगवाणी से नहीं की.. सोचा कि वह तो बंद हो चुकी है.. मगर जैसे ही अपने ब्लौग पर गया तो पाया कि ब्लौगवाणी के विजेट पर कल के मैसेज के बदले ब्लौगवाणी का लोगो दिख रहा है.. देखकर मन प्रसन्न हो गया.. ब्लौगवाणी का मैसेज भी पढ़ा जिसका लिंक यहां है.. ब्लौगवाणी...

Monday, September 28, 2009

बधाई हो, ब्लौगवाणी बंद हो गया है!!!

अंततः ब्लौगवाणी बंद हो गया.. मेरी नजर में अब हिंदी ब्लौगिंग, जो अभी अभी चलना सीखा था, बैसाखियों पर आ गया है.. मैथिली जी में बहुत साहस और विवेक था जो इसे इतने दिनों तक चला सके.. शायद मैं उनकी जगह पर होता तो एक ऐसा प्लेटफार्म,...

Saturday, September 26, 2009

गौतम जी अन्य फौजियों से अलग तो नहीं? फिर ये संवेदनहीनता क्यों?

बस अभी अभी खबर मिली कि हमारे प्रिय गौतम जी जख्मी हैं.. आतंकवादिओं से हमारे देश की रक्षा करते हुये कंधे पर गोली खायी और अभी अस्पताल में हैं.. जैसे ही इसे अनुराग आर्य जी के ब्लौग पर पढ़ा, एक झटका सा लगा.. अधिक छानबीन की तो...

Friday, September 25, 2009

जिन्हें गुमान था कि वे सितारे हैं, शायद वह टूट गया

आज दोपहर में मैं खाना खाने के लिये अपने दफ़्तर के ठीक बगल में अवस्थित रेस्टोरेंट "पेलिटा नासी कांधार" गया.. कुछ हद तक कह सकते हैं कि वह चेन्नई के कुछ प्रसिद्ध रेस्टोरेंट्स में से एक है.. कारण यह कि वहां मलेशियन खाना अच्छे गुणवत्ता के साथ मिलता है..मेरे साथ तीन और लोग थे, और वे तीनों तेलगु हैं.. हमने...

Friday, September 18, 2009

दो बजिया वैराग्य

मम्मी की बातों में अक्सर जहां एक मां की ममता का आवेश छिपा होता है वहीं पापा कि बातों में एक विद्वता का पुट और पूरे जीवन भर के अनुभव का निचोर मिलता है.. जब कभी मानसिक रूप से कमजोर होता हूं तो मम्मी को हमेशा साथ पाता हूं.....

Wednesday, September 16, 2009

आई.टी. में प्रतिदिन कार्यावधि अधिक होने के कुछ प्रमुख कारण

मेरे पिछले पोस्ट पर दिनेश जी ने कुछ प्रश्न पूछे थे, और स्वप्नदर्शी जी ने अपने कुछ अनुभव बांटे थे..दिनेश जी ने कहा - एक पहलू से आप की बात सही है। लेकिन यह समझ नहीं आई कि आईटी वालों को 16-16 घंटे क्यों काम करना पड़ता है जब कि अनेक आईटी प्रवीण बेरोजगार हैं। यह गैरकानूनी भी है और मानव स्वास्थ्य की दृष्टि...

Tuesday, September 15, 2009

आई.टी. क्षेत्र में लड़कियां

अगर इक्का-दुक्का अपवादों को छोड़ दिया जये तो मुझे ध्यान में नहीं आता है कि कभी किसी महिला को मैं आई.टी. क्षेत्र में प्रोजेक्ट मैनेजर से ऊपर वाले पोस्ट पर कभी देखा हूं.. किसी अच्छे आई.टी. कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर बनने के लिये औसतन कम से कम 8-10 साल चहिये, और कम से कम 3-4 साल पोजेक्ट मैनेजर पर अच्छे...

Friday, September 11, 2009

आज से ठीक एक साल पहले कि एक पोस्ट

पिछले साल आज के ही दिन मैंने एक पोस्ट लिखी थी, जो मेरे द्वारा लिखी गई सबसे छोटी पोस्ट है.. जिसमें सिर्फ पांच शब्दों का प्रयोग किया गया था.. अब आप इसे माईक्रो ब्लौगिंग भी नहीं कह सकते हैं, यह तो उससे भी छोटा था.. मगर उस पर आये कमेंट्स मजेदार थे.. आज इसे ही पढ़िये.. आज सात साल हो गये आज सात साल हो...

Wednesday, September 09, 2009

पिछले एक महिने का लेखा जोखा

कुछ किताबें जो पढ़ी गई -साहित्य -1. मुर्दों का टीला (हिंदी)2. वोल्गा से गंगा (हिंदी)3. कतेक डारीपर (मैथिली)4. मेघदूतम (मैथिली)5. चार्वाक दर्शन (हिंदी)तकनीक -1. ProvideX Language Reference2. Work Order in ERP System.3. Job Cost in ERP System.4. Software Engineering - Roger S. Pressman (अभी भी पढ़ी जा...

Friday, September 04, 2009

रात ख्वाब की कुछ कतरनें

पिछले कुछ दिनों से भैया से बात नहीं हुई है.. अधिकांशतः भाभी से ही बात करके फोन रख देता हूं.. कल रात सपने में भैया को देखा.. क्या देखा यह कुछ ठीक से याद नहीं है, मगर उसमें उन बचपन के दिनों की झलक थी जो कहीं मन के सूदूर कोने...