Thursday, January 31, 2008

"अविनाश कैसे बना लौटकर अविनाश" और उनसे जुड़े कुछ तथ्य

कल मैंने घन्नू झारखंडी जी का पोस्ट यूं ही पढकर छोड़ दिया था क्योंकि मुझे ये जानने की कोई उत्सुकता नहीं थी की ये लौटकर अविनाश कब और कैसे बने। पर आज इतनी टिप्पणीयां देखकर रहा नहीं गया और बैठ गया लिखने के लिये। पहले तो टिप्पणी लिखी थी फिर सोचा की क्यों ना कोई पोस्ट ही गिरा दिया जाये।

कल जैसा की मनोज जी ने कहा था की उन्हें मुन्ना भैया(मैं तो यही कहकर बुलाउंगा उन्हें) कुछ घमंडी स्वभाव के लगे थे। तो उस पर मेरा कहना ये है की मुन्ना भैया को जो बात सही लगती है उसे सही साबित करने के लिये ये किसी से भी किसी भी स्तर के बहस के लिये तैयार रहते हैं और तब तक उसे सही मानते हैं जब तक कोई ठोस तर्क उसके विरोध में उन्हें ना मिल जाये। ये एक बहुत बड़ी बजह है जिसके कारण लोग उन्हें कई बार घमंडी स्वभाव का समझ बैठते हैं। शायद मनोज जी के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ होगा।

एक बात जो इन्हें भीड़ से अलग खड़ा करती है वो ये है की इन्होंने दुनिया कि कभी परवाह नहीं की और जो भी इनके मन में आया वही इन्होंने किया है अभी तक। और सबसे बड़ी बात तो ये है की आज तक ये कोई भी काम कुछ भी छुप-छुपा कर नहीं किये हैं। जो भी किये हैं सबके सामने। खुल्लम खुल्ला। चाहे इसके लिये इन्हें कितना भी विरोध का सामना क्यों ना करना पड़ा हो।

मेरी जानकारी में बस एक बात ऐसी है जो इन्होंने कुछ दिनों तक हम परिवार वालों से छिपा कर रखी थी, और उससे जुड़ी एक मजेदार घटना भी है। वो बात है उनकी शादी से जुड़ी हुई, जिसे कुछ पारिवारिक समस्या के कारण इन्होंने छुपाया था।

मजेदार घटना :
हुआ ये की इन्होंने उस समय तक शादी कर ली थी और घरवालों से छुपा रखा था। अब मेरे पापाजी एक प्रसाशनिक अधिकारी हैं सो उन्हें पत्रकारों से अक्सर पाला पड़ता ही रहता है। एक बार कोई पत्रकार पापाजी से मिलने के लिये आया हुआ था, उससे पापाजी ने बस यूं ही कहा की मेरा भतीजा भी पत्रकार है(उस समय मुन्ना भैया प्रभात खबर में थे)। उसने नाम पूछा, पापाजी ने बताया अविनाश। उसने कहा की मैं दो अविनाश को जानता हूं, तो पापाजी ने कहा की लौटकर अविनाश। तो उसने कहा की वही ना जिसने अभी शादी की है। अब मेरे पापाजी चौंक गये। बोले की नहीं उसकी तो अभी शादी नहीं हुई है। पर उसने पूरे आत्मविश्वास से कहा की नहीं सर उसकी तो शादी हो चुकी है। उसने तो पार्टी भी दे दी है।

खैर पापाजी घर आये और हम सबको बताया साथ ही ये भी कहा की किसी को भी ये बात मत बतान चाहे कुछ भी हो। वो जब तक खुद नहीं बताये तब तक किसी को ये बात पता नहीं चलनी चाहिये। बाद में मुझे पता चला की एक बार मुन्ना भैया हमें भाभी से अपनी महिला मित्र कह कर मिलवा चुके थे। :D

अब उसके कुछ दिन के बाद की बात है। दिसम्बर का महीना था और पटना में पुस्तक मेला लगा हुआ था। मैं वहां घुम रहा था उसी समय मुन्ना भैया भी को भी वहीं देखा। वो भाभीजी के साथ थे। जैसे ही वे मुझे देखे थोड़ा हरबरा से गये और फिर से भाभी का परिचय मुझसे कराने लगे कि इनसे मिलो ये मेरी महिला मित्र हैं। मैंने कुछ कहा नहीं बस मुस्कुरा कर रह गया।

उस समय जब घर में सभी को पता चला तो हमारे समाज में कानाफूसी का लम्बा दौर चला था। सभी सोचते थे की हमारे समाज के बाहर कि है पता नहीं क्या करेगी घर आकर एडजस्ट नहीं कर पायेगी और भी ना जाने क्या-क्या। पर अगर आज की बात करें तो, मेरी मम्मी के शब्दों में, "मुक्ता(भाभी) बहुत अच्छी हैं, इनसे अच्छी मुन्ना को मिल ही नहीं सकती थी।" और मेरे मत भी मम्मी से कुछ अलग नहीं हैं। :)

अभी-अभी भैया ने मेरा पोस्ट पढा और मुझे एक तस्वीर भेजी जो कि इस पोस्ट पर बिलकुल सही फिट होती है.. सो इसे एडिट करके मैं वो तस्वीर भी लगा रहा हूं..
Thanks to bhaiya.. :)

अफ़लातून जी के साथ मुन्ना भैया

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5 comments:

  1. अविनाश जी का लेखक /चिट्ठाकार वाला रूप तो हम सबने देख रखा है, अब उन्हें एक नए रूप में देख रहे हैं । यह भी सच है कि जो लोग डंके की चोट पर अपनी बात कहते हैं उन्हें अधिकतर लोग घमंडी ही समझते हैं । परन्तु अपने पर विश्वास करने के लिए अपने विषय का ग्यान भी चाहिये होता है व जिसके पास यह है वह अपनी बात पर तब तक अडिग भी रहता है, जब तक कि कोई उसे गलत ना सिद्ध कर दे।
    घुघूती बासूती

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  2. घन्नू भाई,देश के एक महान पत्रकार की जानकारी देकर आपने बहुत भला किया है - खासकर हिंदी पत्रकारिता का। वैसे अविनाश को मैं भी जानता हूं- वो शायद मुझे नहीं जानते। पहली बार दिल्ली में वे हरिवंश के ओएसडी के तौर पर नमूंदार हुए थे - चंद्रशेखर जी पर छपने जा रही किताबों के सहयोगी उपसंपादक के तौर पर। अचानक पता चला कि अविनाश लौट गए। क्योंकि कई आर्थिक अनियमितताओं का आरोप लगा था। अब वे बड़े महान हैं। एनडीटीवी में काम करना शायद महानता की निशानी है।

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  3. शुक्रिया Anonymouse, मेरे बारे में ये नयी जानकारी देने का। क्‍योंकि मुझे पता है कि मैंने अपना काम पूरा करके ही दिल्‍ली से रुख़सत किया। ये तथ्‍य उन किताबों पर भी छपा है, जो मैंने सहयोगी (दरअसल एकल संपादक) के तौर पर पूरा किया। वैसे, आर्थिक अनियमितताएं मेरी बड़ी ख्‍वाहिश रही है, पर साला अभी तक जुगाड़ लगा नहीं है।

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद ! अभी अभी अपने बलॉग पर गई तो आपकी टिप्पणी पढ़ी । बहुत सुन्दर हैं आपकी मुक्ता भाभी ! हमें भी उनसे मिलवाने के लिए धन्यवाद । देखकर व आपके मुझे बताने से बहुत खुशी हुई ।
    घुघूती बासूती

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