Friday, February 01, 2008

अरे सर क्या बताऊं, इस बार तो मस्त-मस्त आइटम एडमिशन ली है

"अभी कुछ दिन पहले तो देखे थे की कैंपस में खुल्लम-खुल्ला एक फारेनर लड़का और एक फारेनर लड़की किस कर रहे थे और क्या-क्या नहीं कर रहे थे जैसे...(सेंसर्ड...)। जब एक फैकल्टी आकर रिक्वेस्ट किये की "This is India not Europe so please be mannered." तब जाकर दोनों अलग हुये। चीन से तो भड़कर आइटम लोग एडमिशन ली है और दिल्ली कि तो बात ही मत पूछिये। अरे सर क्या बताऊं, इस बार तो मस्त-मस्त आइटम एडमिशन ली है।"

पिछली बार मैं जब कालेज गया था तब मेरा एक जूनियर मुझे ये बता रहा था और मेरी मजबूरी उसे झेलने की थी क्योंकि वो मेरे एक बहुत पुराने मित्र (जो कालेज में मेरा जूनियर भी था) के साथ था। उसके चेहरे पर ये बताते हुये जो खुशी के भाव आ रहे थे उसका तो मैं वर्णन भी नहीं कर सकता हूं, जैसे मानो वो किसी खजाने का पता मुझे बता रहा हो।

काफी देर तक उसकी इस तरह की बातों को झेलता रहा। कुछ और नहीं कर सकता था क्योंकि कई बार सिनीयर होने का घाटा भी उठाना पड़ता है और दूसरी बात ये कि हर किसी से बहस करने की उर्जा मेरे भीतर नहीं है। सामान्यतः मैं उसी से बहस करता हूं जिसे मैं बहस के लायक समझता हूं और कम से कम मैं उस लड़के को बहस के लायक तो नहीं ही समझता हूं।

खैर जब मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने पूछा की तुम्हारी कोई बहन है? और उसके उत्तर देने से पहले ही मैंने कहा की अगर कोई बिलकुल ऐसी ही बातें तुम्हारी बहन के बारे में बोले तो कैसा लगेगा? चलो मान लेते हैं कि तुम्हारे सामने ना बोले, पीठ पीछे ही बोले और तुम्हें इसका पता ही चल जाये तो?

अब उसने खींसे निपोरनी शुरू कर दी। और बोला क्या सर आप तो मूड ही खराब कर दिये। और फिर कुछ देर की खामोशी के बाद हम अपने-अपने रास्ते चल दिये। मुझे पता है जिस तरह का उसका स्वभाव है उसमें अगर वो मेरा जुनियर नहीं होता तो मुझसे भिड़ गया होता। सिनीयर होने के कुछ फयदे तो कुछ नुकसान भी हैं।

मेरे कालेज का मेन बिल्डिंग

3 comments:

  1. एक पीढ़ी बाद की बातें पढ़ने का मजा है इस ब्लॉग पर।

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  2. प्रियदर्शी भाई..एक कहावत है की टॉर्च से कभी क्रांति नही होती.....मित्र अगर आपका जूनियर यही आईटम का विवरण दे के खुश था तो..शायद आपने उससे ऐसा बोल के गलत किया...यार कोलेज का अगर कभी ज़िक्र आता है तो लोग शायद सबसे पहले लड़कियों का ही ज़िक्र करते है....अरे वो स्वेता कैसी है,दीप्ति कहाँ है ....अरे ,अनामिका की ४ बैक लगी थी क्या हुआ उसका...बेटा जो भी थी लेकिन मस्त लगाती थी ....ऐसे ही लोग बात करते है......खैर अच्छा लिखा है आपने....कभी हमारे ब्लोग पर भी तसरीफ लायें!!!

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  3. हाँ, बढ़िया लिखा है और टिप्पणी न. २, राज जी की, भी बढ़िया है । आइटम ही तुम्हें जन्म देती हैं , आइटम ही तुम्हें राखी बाँधती है , आइटम से ही तुम विवाह करते हो और कभी कभी आइटम के ही पिता भी बन जाते हो ! बस इन सभी आइटमों का रूप रंग , उम्र, जीवन में आपके लिए निभाई भूमिका भर बदल जाती है , परन्तु हैं तो सब आइटम ही ।
    जब कॉलेज की बात करते हो तो लड़कियों की बात आती है, यह स्वाभाविक है । पर उन्हें लड़कियाँ तो कह लो, आइटम मत बनाओ ।
    घुघूती बासूती

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