Thursday, January 03, 2008

नये साल से पहले की धूम

दुनिया भर के लोग इधर नववर्ष का इंतजार कर रहे थे और मैं चाह रहा था की इसके आने में जितनी देरी हो उतना ही अच्छा क्योंकि मेरे दो मित्र क्रिसमस की छुट्टीयों में हमलोगों से मिलने के लिये चेन्नई आये हुये थे। अर्चना मुम्बई से तो चंदन बैंगलोर से। और दोनों को ही 30 को वापस लौटने की जल्दी थी जिससे वो सोमवार को अपने कार्यालय जा सकें। मेरे पास एक और कारण था जिस लिये मैं चाह रहा था की नया साल थोड़ी देर से आये और वो ये था कि मुझे अपने टीम(कार्यालय वाली) के साथ ट्रिप पर घूमने के लिये जाना था और वो भी 28 कि शाम को। और मैं अपने दोस्तों का साथ छोड़ना नहीं चाह रहा था। उस ट्रिप पर जाने के लिये मेरे प्रोजेक्ट मैनेजर ने दो बार पूछा था और मैंने मना कर दिया था पर बाद में शिवेंद्र के कहने पर मैंने अंततः हामी भर दी थी सो अब इंकार करने की कोई वजह ही बाकी नहीं बची थी।

मैंने आनन-फानन में अपना सामान ठीक किया और अपने दोस्तो के साथ निकल लिया स्पेंसर प्लाजा के लिये। वहां उन्हें "वेलकम" सिनेमा देखनी थी और मुझे वहां से चेन्नई सेंट्रल के लिये निकल लेना था।

मैं जब स्टेशन पहूंचा तो कई पूर्वाग्रहों से ग्रस्त था कि पता नहीं मैं दो दिन कैसे काटूंगा क्योंकि मुझे पता था की 1-2 को छोड़कर शायद ही कोई मुझे वहां मिलेगा जो हिंदी जानता होगा और पूरी कि पूरी टीम के सदस्य मेरे लिये नये थे। यहां तक कि कार्पोरेट जगत भी मेरे लिये अभी नया ही है और मुझे इसके शिष्टाचार कि ज्यादा जानकारी नहीं है।

मेरे साथ जाने वालों में 4 मेरे ट्रेनिंग के समय के साथी थे सो मैं ट्रेन में उनके साथ ही बातों में लगा हुआ था। थोड़ी हिचक भी थी कि मेरे साथ जो भी हैं वे सारे मेरे वरिष्ठ सहकर्मी हैं, मैं औपचारिकता निभाते हुये कैसे 3 दिन काटूंगा। मगर जब वहां पहूंचा तब मैंने पाया कि उन सभी का व्यवहार बहुत दोस्ताना था। मैं पहले से बस अपने PM(कार्थी) और PL(सुरेन) को ही जानता था और वो भी बहुत नजदीक से नहीं। मगर इस ट्रिप पर उनके दूसरे पहलू मेरे सामने खुलकर आ गये और मैं खासतौर पर अपने PM(कार्थी) की मन ही मन प्रशंसा किये बिना नहीं रह पाया।

कार्थी मेरे PM
मैं पहले ही बता चुका हूं कि मैं वहां अकेला था जिसे तमिल नहीं आती थी और हम 5 ऐसे थे जो सबसे कनिष्ठ थे, सो हमें लगभग बच्चों के जैसा ही रखा गया और जैसे-जैसे लोगों को पता चलता गया कि मुझे तमिल नहीं आती है वैसे-वैसे ही सभी मुझसे अंग्रेजी में बाते करने लगे और मैं भी धीरे-धीरे उन सब में रम गया।

हां मुझे कुछ लोग ऐसे भी मिले जो टूटी-फूटी हिंदी भी बोल लेते थे और उनमें सबसे प्रमुखे नाम संतोष और शिवा का है। कुछ नये और अच्छे लोगों से जान पहचान भी हो गई जिनमें प्रमुख नाम संतोष, चंद्रू, शिवा, सतीस, दिनाकरण, नंदकुमार, प्रसाद, नवीन हैं। और भी कुछ नाम हैं जो मुझे अभी ठीक से याद नहीं आ रहा है और गलत नाम लिखने से अच्छा है कि ना ही लिखूं।

हम लोग यरकौड नामक हिल स्टेशन पर घूमने गये थे जो सेलम के पास है। और ये कहा जा सकता है कि मैं इन 2-3 दिनों में बहुत आनंद लिया और साथ ही ढेर सारे अच्छे लोगों को जानने का मौका मिला। हां कहीं ना कहीं मन में ये भी आ रहा था कि मेरे मित्र जिन्हें मैं चेन्नई में छोड़ आया हूं उनसे अगली बार पता नहीं कब मिल पाऊंगा।

मैं खुद
कुल मिला कर कहा जा सकता है कि चेन्नई की गर्मी से दूर किसी पहाड़ी इलाके में भ्रमन करने का आनंद उठाया।

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2 comments:

  1. मित्र मैं आपके यह कहने पर आया टिप्पणी करने कि मेरे पास नेट कनेक्शन की समस्या है। मेरा ऑफिस शिफ्ट होने के कारण वहां अभी नेट कनेक्शन नहीं लगा है। घर पर पोस्टें पढ़ना और उन पर कमेण्ट भी करना - पूरा नहीं पड़ पाता। पर गूगल रीडर के माध्यम से मै‍ पढ़ सभी पोस्टें ले रहा हूं। आपकी आउटलुक/जी मेल के बारे में भी उसमें है जो यहां नहीं दिख रहा!
    और मुझे आपकी सोशल नेटवर्किन्ग की व्यापकता से ईर्ष्या है! :-)

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  2. i know few of your friends their in the TEAM with which you went on trip.. don't you think you can talk about the things which is the sen sored in the outing..


    its good that you mingle up with lots of friends....

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