Friday, December 28, 2007

मेरी कम्पनी में बम विस्फोट की अफवाह

आज मैं थोडी देर से लगभग 10:30 AM में आफिस पहूंचा। जैसे ही अंदर दाखिल हुआ तो मेरे एक साथी ने बताया कि थोडी देर पहले हमारे कम्पनी के एक दूसरे ब्रांच में बम रखे जाने की धमकी मिली है और उस पूरी इमारत को खाली करा लिया गया है। मैं पहले तो चौंका कि अभी तक चेन्नै बस जयललिता और करूणनिधि के हाथों ही परेशान रहता...

Thursday, December 27, 2007

कुछ चीजें अजब-गजब ब्लौगवाणी पर

आज मैं फिर आया हूं कुछ अजब-गजब चीजें लेकर। मैं एग्रीगेटर के रूप में ब्लौगवाणी को सबसे ज्यादा प्रयोग में लाता हूं सो नित्य दिन इसकी खूबियों के साथ-साथ इसकी खामियों पर भी नजर परती रहती है।अब ये तो स्पष्ट है कि अगर मैं इसे...

Wednesday, December 26, 2007

पापा एक चौपाया जानवर होते हैं

"पापा एक चौपाया जानवर होते हैं। उनके दो कान, दो आंख, एक नाक, एक मुह, दो सींग, चार पैर और एक पूंछ होती है। पापा दूध देती है। पापा लाल, काला, सफेद और पीले रंगों में पाये जाते हैं।" ये निबंध मैंने कब लिखा था ये मुझे याद भी...

Tuesday, December 25, 2007

ईसाई भारतीय नहीं हैं क्या?

मैं जब से हिंदी चिट्ठाजगत में आया हूं तब से लेकर अभी तक एक बात मैंने पाया है, वो ये कि हिंदी चिट्ठाजगत कुछ विभिन्न ध्रुवों में बंटा हुआ है। जिनमें से दो प्रमुख ध्रुव कम्यूनिस्म और भगवाधारीयों का है। पर एक बात तो जरूर है कि चाहे जो भी मतभेद अलग विचारधाराओं में हों लेकिन एक बात पर दोनों के विचार एक हो...

Sunday, December 23, 2007

औरकुट प्रोफाइल अब गूगल पर भी

अब आप किसी का औरकुट प्रोफाइल गूगल पर भी देख सकते हैं. इसके लिए आपको कुछ और नहीं बस अपने औरकुट के सेटिंग में जाकर "show my orkut information when my orkut friends search for me on Google.com" को आन करना परेगा. वरना आपको गूगल...

Friday, December 21, 2007

ब्लौगवाणी हैक हो सकता है

मेरे इस पोस्ट का ये अर्थ कदापि नहीं है कि मैं ब्लौगवाणी को हैक करना चाहता हूं, मैं तो बस इतना चाहता हूं की ब्लौगवाणी अपनी तकनीकी खामियों को सुधारे वरना वो दिन दूर नहीं है जब आपको सुनने को मिलेगा कि प्रसिद्ध एग्रीगेटर साइट...

इंटरनेट और बढती दूरियां

मुझे आज भी वो दिन याद है जब मेरे पापाजी की घड़ी का समय कुछ आगे-पीछे हो जाता था तो वो बीबीसी के समाचार सेवा का लाभ उठा कर अपनी घड़ी का समय मिलाते थे। फिर वो दिन भी आया जब घर में बुद्धु बक्से का आगमन हो गया और दूरदर्शन के समाचार सेवा का लाभ उठाया जाने लगा।पर अब तो जमाना है गूगल देव का। मैं हर दिन सुबह-सुबह...

Wednesday, December 19, 2007

मैं, मौसी, बसंती और चंदन

मौसी : अरे बेटा बस इतना समझ लो कि घर में जवान बेटी सिने पर पत्थर कि शील की तरह होती है, बसंती का ब्याह हो जाये तो चैन कि सांस लूं।मैं : हां, सच कहा मौसी आपने, बड़ा बोझ है आप पर।मौसी : लेकिन बेटा इस बोझ को कोई कुंवे में तो...

esnips से करें mp3/wma फाइल डाउनलोड

ज्ञानजी की टिप्पणी पढकर मैंने सोचा कि क्यों ना पहले यही पोस्ट पोस्ट किया जाये। तो चलिये मैं आपको बताता हूं कि esnips से MP3/WMA फ़ाइल कैसे डाउनलोड करते हैं।सबसे पहले मैं आपको बताना चाहूंगा कि ये विधि IE(Internet Explorer) वालों के लिये नहीं है, ये FIREEFOX वालों के लिये है। मगर ये बहुत बड़ी परेशानी कि...

Tuesday, December 18, 2007

YOUTUBE से विडियो डाउनलोड हुआ आसान

आप अकसर youtube पर विडियो देखते होंगे और आप हमेशा ये सोचते होंगे कि काश इन्हें हम डाउनलोड कर पाते। मगर ये समझ में नहीं आता होगा कि इसे डाउनलोड करें तो कैसे करें क्योंकि वहां तो कोई लिंक रहता ही नहीं है डोउनलोड करने के लिये।आपकी समस्या का समाधान लेकर मैं आ गया हूं।आप जब भी www.youtube.com पर कोई विडियो...

Monday, December 17, 2007

दैनिक मजदूर और कम्प्यूटर इंजिनियर

जमाने पहले की बात है...बगल के घर कि सिढी ढलने वाली थी..Uncle ने कहा की उनके बेटे के साथ जा कर Station के पास से कुछ मजदूर ले आऊँ...मैनें पुछा "किसी को भी कैसे रख सकते हैं? किसी को भी कैसे ले आऊँ? कितने मजदूर ले आऊँ?" Uncle ने समझाते हुए कहा.. "1 राजमिस्त्री ले लेना..2-3 कारीगर और 4-5 मजदूर ले लेना.."मैने...

Thursday, December 13, 2007

अविनाश जी और उनका सामंती भोजन

आज हिंदी ब्लौगिये संसार में अविनाश जी को लगभग सभी जानते हैं, सो मैं उनका परिचय दिये बगैर सीधे अपनी बातों पर आता हूं।अभी का तो मुझे पता नहीं है कि कितने लोग उन्हें 'लौटकर अविनाश' के नाम से जानते हैं पर बात उन दिनों की है...

Monday, December 10, 2007

मानवाधिकार दिवस और मेरी दीदी

आज 10 दिसम्बर है, आज मानवाधिकार दिवस है, आज मेरी दीदी का जन्मदिन है। अब चूंकि आज मानवाधिकार दिवस के दिन मेरी दीदी का जन्म हुआ है तो ये स्वभाविक है की जब भी अपने अधिकारों को लेकर दीदी कुछ कहती तो बस हम दोनों छोटे भाई चिढाना...

Sunday, December 09, 2007

जिंदगी किसी के बिना रूकती नहीं

अक्सर यादें आया करती थी,यादों में एक चेहरा था..चेहरे पे एक मासूमियत,और उस मासूमियत में थी मेरी जिंदगी..आज ना वो यदें हैं,ना ही वो चेहरा,और ना ही वो मासूमियत..ऐसा लगता है जैसे वो मासूमियत,कहीं गुम हो गई हो,जीवन के इस वस्तविकता में..उस मासूमियत को,तलाशता फिर रहा हूं हर जगह..पर वि इन प्लस्टिक के चेहरों...

Wednesday, December 05, 2007

आज भी फिरंगियों की गुलामी में इंडिया

कल मैं अपने एक मित्र को छोड़ने चेन्नई हवाई अड्डे गया था। मैं अपने मित्रों से थोड़ा पहले ही पहूंच गया था सो मुझे थोड़ा समय मिल गया और मैं उस समय को वहां के लोगों के हाव-भाव को पढने में खर्च करने लग गया। थोड़ी देर इधर-उधर देखने...

Sunday, December 02, 2007

चेन्नई के हिंदी ब्लौगरों सावधान

मैं पिछले 2-3 दिनों से अनीता जी के ब्लौग में ब्लौगर मीट के बारे में पढ रहा था तो बरबस ही ये विचार आया की चेन्नई से कितने लोग हैं जो हिंदी में ब्लौग लिखते-पढते हैं। और अगर कोई है तो क्यों ना हम भी एक चेन्नई ब्लौगर मीट करें?...

Monday, November 26, 2007

मेरे मित्र का प्रणय निवेदन

"यार! ये प्राणाय क्या होता है?", शिवेन्द्र ने चीख कर पूछा।"क्या? मैं कुछ समझा नहीं", मैंने रसोई में रोटीयां सेकते हुये चिल्ला कर पूछा साथ में रोटीयां बेलते हुये विकास ने भी पूछा।"प्राणाय? प्राणाय?""पूरी बात बताओ तब समझ में...

Friday, November 23, 2007

एक अजनबी सी मुलाकात, एक अजनबी से मुलाकात

मैंने वंदना को फोन किया और पूछा कहां हो तुम, उसने कहा कि 10 मिनट में आती हूं। उस समय सुबह के 10 बजकर 15मिनट हो रहे थे। हमने 10 बजे मिलने का समय तय किया था पर मैं 15 मिनट देर् से पहूंचा था और वंदना, जिसे मैंने पहले बता दिया...

Tuesday, November 20, 2007

एक क्षण

एक क्षण,जब कुछ भी आपके लिये मायने नहीं रखता,एक पल में सब अधूरा लगने लगता है..ना जिंदगी से प्यार,ना मौत से भय,ना सुख का उल्लास,ना दुख का सूनापन,ना चोटों से दर्द,ना सड़कों की गर्द..निर्वाण की तलाश,आप करना चाहते हैं,पर मखौल...

Saturday, November 17, 2007

दिपावली कि छुट्टीयां

शुक्रवार का दिन था, मैं आफिस से जल्दी घर लौटना चाह रहा था और अपना सामान ठीक करके जल्दी सो जाना चाह रहा था क्योंकि मुझे अगले दिन दिल्ली के लिये फ्लाईट पकड़नी था। मैं जिस छुट्टी का कई दिनों से इंतजार कर रहा था वो पास आ चुका...

Thursday, November 15, 2007

ययाति

मैं जब घर से चला तो मैंने पापाजी से हमेशा की तरह पूछा, कोई अच्छी किताब मिलेगी क्या? उन्होंने कहा, "उधर रैक पर से कोई सा भी उठा लो"। मेरी नजर सबसे पहले ययाति पर पड़ी और मैंने उसे ही उठा लिया और पापाजी से पूछा कि ये कैसी है, और उनका उत्तर सकारात्मक पा कर मैं उसे लेकर घर से निकल पड़ा। इधर कुछ दिनों से मुझे...

Friday, November 02, 2007

यादें तरह-तरह की

कुछ याद करने पर बहुत कुछ याद आता है। यादें अच्छी भी होती हैं और बुरी भी, पर यादें तो यादें होती हैं और उसे अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं होता है। पर हां मेरी एक आदत बहुत बुरी है, मैं यादों को संजो कर रखता हूं। मुझसे कई लोग अक्सर...

Monday, October 29, 2007

वो रिक्त स्थान

वो रिक्त स्थान,जो तुम्हारे जाने से पैदा हुआ था,वो आज भी,शतरंज के ३२ खानों की तरह खाली है..कई लोग चले आते हैं,उसे भरने के लिये,मगर उन खानों को पार कर,निकल जाते हैं,उसी तरह जैसे शतरंज की गोटीयां..जीवन की बिसात पर,जैसे-जैसे...

Friday, October 26, 2007

बैंगलोर-मैसूर यात्रा वर्णन (भाग दो)

मैं और विकास वहीं मैसूर में ठहर गये। वहां पहूंचते ही मैंने अपना हाथ-पैर धोया और बिस्तर पर लेट गया और थकावट ऐसी की लेटते ही नींद ने मुझे घेर लिया। अगले दिन हमलोग सुबह का नाश्ता खाकर बैंगलोर के लिये चल पड़े। इस बार हमदोनों...

Wednesday, October 24, 2007

बैंगलोर-मैसूर यात्रा वर्णन

५ गाडियाँ१० लोगरास्ता बंगलोर-मैसूर हाइवेदूरी ३७५KM(चंदन की गाड़ी से मापी हुयी)(सबसे पहले: ये पोस्ट कुछ ज्यादा ही लम्बी हो गयी है जिसके लिये मैं क्षमा चाहूंगा। पर मैं इसमें कुछ कांट-छांट नहीं सकता था।)इस बार मेरे कुछ दोस्तों...

Tuesday, October 23, 2007

अज्ञात कविता

आज यूं ही कुछ कविताओं की बातें रही थी तो मेरी एक मित्र ने मुझे एक कविता इ-पत्र के द्वारा भेजा, जो मुझे कुछ अच्छी लगी उसे यहां डाल रहा हूं। मगर पोस्ट करने से पहले मैं अपने मित्र का परिचय देना चाहता हूं। उसका नाम है नेहा।...

Wednesday, October 17, 2007

फ़ुरसत के रात दिन

ये मनुष्य का प्राकृतिक गुण होता है कि जब उसके पास काम होता है तो वो चाहता है की कैसे ये काम का बोझ हल्का हो, और जब उसके पास कोई काम नहीं होता है तो वो चाहता है कि कोई काम मिले। आज-कल मैं भी कुछ ऐसी ही अवस्था से गुजर रहा...

Sunday, October 07, 2007

एक बीता हुआ कल

आज-कल ना जाने क्यों अकेलेपन का एहसास कुछ अधिक ही बढ गया है। कहीं भी जाऊं बस खुद को भीड़ में अकेला महसूस करता हूं। मुझे चेन्नई में दो जगहें बहुत अधिक पसंद है। मुझे पढने का बहुत अधिक शौक है और मुझे जो भी मिलता है वही पढ जाता हूं, चाहे वो तकनिक से संबंधित कोई जानकारी हो या फिर साहित्य से संबंधित या व्यवसाय...

Saturday, September 29, 2007

दो विपरीत अनुभव

पहला अनुभवमैं चेन्नई में जहां रहता हूं वहां से कार्यालय जाने वाले रास्ते में 'बस' में बहुत ज्यादा भीड़ होती है। उस भीड़ का एक नजारा आप भी इस तस्वीर में ले सकते हैं। (चित्र के लिये आभार 'हिंदू' को)मैं उस दिन अपने कार्यालय से...

Monday, September 24, 2007

कवि का निर्माण (व्यंग्य)

मैंने अक्सर लोगों को और अपने दोस्तों को कहते सुना है कि जब किसी का दिल इश्क़ में टूटता है तो वो कवि बन जाता है और कवितायें लिखने लगता है। मेरी भाभी मुझे अक्सर चिढाती भी हैं कि आपका दिल किसने तोड़ा कि आप कवितायें लिखने लग गये।...

"सामर्थ्य और सीमा" के कुछ अंश

'टन-टन-टन' घड़ी ने तीन बजाये और चौंककर मेजर नाहरसिंह ने अपनी आंखें खोल दीं। अब मेजर नाहरसिंह को अनुभव हुआ कि रात के तीन बज गये हैं। दिन निकलने में कुल दो घण्टे बाकी हैं। कितनी तेजी के साथ यह समय बीत रहा है। इस समय को सेकण्ड, मिनट, घण्टे, दिन-रात, महीनों, वर्षों, सदियों, युगों और मन्वन्तरों में विभक्त...

Saturday, September 22, 2007

कल्पनायें

आज अपने एक मित्र से बात कर रहा था तो वो युं ही मज़ाक में बोली थी कि अब बस इमैजिनेट करते रहो, उस समय मन किसी और ही भंवर में फ़ंसा हुआ था और मन ही मन में ये कुछ शब्द उभर आये जो मैं यहां लिख रहा हूं।असीमित इच्छाओं की उड़ान,जैसे पंछियों का गगन में उड़ना,मगर ये मानव मन की उड़ान,कुछ अलग है उनसे..जैसे,निर्जीव 'औ'...

Wednesday, September 12, 2007

कुछ कविताऐं दोस्तों की तरफ़ से

मैंने आज का अपना ये पोस्ट अपने इंटरनेट के मित्रों के नाम किया है जो अपने आप में एक अनूठे व्यक्तित्व के स्वामी हैं। एक का नाम है वंदना त्रिपाठी और दूसरे हैं सजल कुमार। दोंनो ही अपने आप में कई खूबियों को समेटे हुये हैं। वंदना जी से मैं सबसे पहले दिसम्बर महीने में मिला था और सजल जी से मैं कब मिला मुझे...

Tuesday, September 11, 2007

तुझसे नाराज़ नहीं जिंदगी

आज सुबह से ही मैं इस गीत को मन ही मन गुनगुना रहा था, सो सोचा क्यों ना आज इसे अपने ब्लौग पर चिपका ही दूं। वैसे मुझे इस सिनेमा के सारे गाने ही पसंद हैं और 'लकड़ी पे काठी' वाला गाना तो मेरे बचपन की याद से भी जुड़ा हुआ है पर...

Monday, September 10, 2007

अव्यवस्थित किस्से

जैसा कि मेरे इस लेख का विषय है, आपको मेरे इस लेख में कुछ भी व्यवस्थित रूप में नहीं मिलेगा। सो आपसे निवेदन है कि आप कृपया इसमें सामन्जस्य बिठाने की कोशिश ना करें। इसमें कोई भी घटना कहीं से भी किसी भी तरफ़ मुड़ सकती है, इसका...