मैंने वंदना को फोन किया और पूछा कहां हो तुम, उसने कहा कि 10 मिनट में आती हूं। उस समय सुबह के 10 बजकर 15मिनट हो रहे थे। हमने 10 बजे मिलने का समय तय किया था पर मैं 15 मिनट देर् से पहूंचा था और वंदना, जिसे मैंने पहले बता दिया था कि मैं 15 मिनट देर से आऊंगा, जो मुझपर पहले देर से आने के कारण गुस्सा हो रही थी वो मुझे फोन करके और 10-15 मिनट मांग रही थी। मैंने उसे आने को कहा और तब तक के लिये अपने मोबाईल पर अपनी पसंद के गानों को सुनने लगा। थोड़ि देर तक मैं 'द ग्रेट इंडिया मौल' के सामने वाले हिस्से में बैठा रहा और फिर सड़क वाले हिस्से में चला गया। लगभग 10:25 के आस-पास मुझे लगा कि कोई मुझे देख रहा है। ये मानव स्वभाव होता है कि जब कोई उसे एकटक देखता रहता है तो उसे इस बात कि अनुभूती हो जाती है। मैंने तेजी से अपनी नजर उधर डाल कर उसी तेजी से हटा भी लिया, मैंने पाया की कोई लड़की मुझे लगातार देखे जा रही है। मैं समझ गया कि वंदना ही है पर फिर भी मैंने ऐसे दिखाया कि मैंने उसे नहीं देखा। मैं उसे पूरा मौका देना चाहता था मुझे अचम्भित करने के लिये, क्योंकि मुझे पता है कि किसी को भी अचंभे में डालने पर हर किसी को प्रसन्नता का अनुभव होता है और मैं वही खुशी उसके चेहरे पर भी देखना चाहता था।
नोयडा मे ग्रेट इंडिया मॉल के सामने वाला मॉल
लगभग 2 मिनट के बाद मैंने देखा की वो आकृति मेरी ओर आ रही है तो मैंने पीछे मुड़ कर देखा और वंदना को देखकर मुस्कुराया। जब वो पास आयी तो पता नहीं मैं क्या सोच रहा था और पहले अभिनंदन करने का मौका उसे मिल गया। वो आसमानी रंग के सल्वार-समीज में आयी थी, चेहरे पर कोई मेक-अप नहीं था, चेहरे पर अंडाकार वाला चश्मा और बाल खुले हुये थे। मुझे अच्छा लगा, क्योंकि जब भी आप किसी ऐसे से मिलते हैं जिसके विचार आपसे मिलते हों तो उनसे मिलकर प्रसन्नता का अनुभव होना स्वभाविक ही है, क्योंकि मैं भी कोई कास्मेटिक प्रयोग में नहीं लाता हूं यहां तक की आफ्टर सेव लोशन भी नहीं रखता हूं। मिलने के बाद हाथ मिलाते हुये उसने कई बातें पूछी, जैसे शादी कैसी रही, अभी तक की यात्रा कैसी रही, इत्यादि। इधर-उधर की बातों से गुजरते हुये उसने मुझसे पूछा "आप तो मुझे गालियां दे रहे होंगे, मैं देर से जो आयी?" और मैंने अपने प्राकृतिक ढंग से उत्तर दिया "हां" और ये हमारे कालेज के दोस्तों के बीच बहुत सामान्य सा है, पर शायद उसे पहली मुलाकात में इसकी उम्मीद नहीं थी। शायद उसे इस तरह के उत्तर की आशा नहीं थी और ये भाव उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था। फिर मैंने अपने उत्तर पर थोड़ी सी लीपा-पोती की, और उसने भी शायद मेरा साथ देने के लिये उस बात को वहीं छोड़ दिया। मैं जाने से पहले सोच रहा था की मैं कुछ भी उपहार लेकर नहीं जा रहा हूं और सच्चाई यही थी की वास्तव में मुझे उतना समय मिला भी नहीं था कि मैं उसके लिये कुछ ले पाता, पर वंदना नहीं भूली और मेरे लिये मेरी पसंदीदा मिठाई काजू की बर्फी लेती आई थी।
एक परिचयः
वंदना जी से मेरी मित्रता और्कुट के माध्यम से पिछले साल दिसम्बर में हुई थी। उस समय मैं दीदी के घर जयपूर गया हुआ था। उसके बाद कभी हमारी बातें हुई तो कभी नहीं हुई और हमारी मित्रता का स्वरूप बस किसी भी आम नेट फ़्रेंड तक ही था। धीरे-धीरे उसमे कब प्रगाढता आती चली गई इसका मुझे पता ही नहीं चला। आज ये चिट्ठा लिखते समय ना जाने क्यों अनायास ही मुझे वो बात याद आ गयी जब मैं जून में चेन्नई आया था और ट्रेनिंग में था और एक झेलाऊ लेक्चर में मैंने उनसे लगभग 2-3 घंटे चैट किया था। उसकी लम्बाई लगभग 590 पंक्तियां थी। मैंने अभी तक इनको जितना समझा है उस आधार पर ये तो जरूर कह सकता हूं कि ये स्वभाव से बहुत ही संवेदनशील हैं और विनोदिता में तो इनकी कोई सानी नहीं है। इनकी संवेदनशीलता का अंदाजा आप इनके चिट्ठे पर इनकी कविताओं से लगा सकते हैं। मैं इनका परिचय यहीं खत्म करता हूं क्योंकि अगर मैं इनके बारे में लिखता रहा तो मेरा चिट्ठा भी शायद पूरा ना पड़े।
मैंने उस समय से पहले ये तो जानता था कि वंदना जी हर चीज पर बहुत ही सूक्ष्म दृष्टि डालती हैं इसे प्रत्यक्षतः अपनी आंखो से उस दिन देख भी लिया। और बाद में मुझे पता चला कि मैंने जो भी देखा वो 10% भी नहीं था। मैं क्या कर रहा हूं, मैं क्या पढ रहा हूं, मैं क्या देख रहा हूं। हर चीज पर सूक्ष्म दृष्टि।
मुझे कभी ये सोचकर आश्चर्य भी होता है की कई चीजों के बारे में हमारे विचार इतना ज्यादा मेल क्यों खाते हैं जिसे हम अक्सर हंसी-मजाक में कहते हैं कि "फ़्रिक्वेंसी मैच" करना। जैसे इन्हें भी मौल संस्कृति पसंद नहीं है और मुझे भी उससे ज्यादा लगाव नहीं है, ये बात और है कि हमारी पहली मुलाकात नोयडा के एक शौपिंग मौल में हुई। ये भी नेट का कीड़ा हैं और मैं भी। अंकों को याद रखने में इनकी कोई सानी नहीं है और मुझे भी अंक बहुत याद रहते हैं। सबसे बड़ी बात तो ये है की हमारी दोस्ती औरकुट के जिस कम्यूनिटी में हुई थी उसमें हमारे उम्र के लोगों की दखल कम ही होती है क्योंकि वो बच्चों की कामिक्स वाली कम्यूनिटी है।
समय अपनी पूरी रफ़्तार से भागा जा रहा था, वंदना जी को 12 बजे कार्यालय के लिये निकल लेना था। पर उन्होंने अपने टिम के सदस्यों से बात करके उसे और बढा लिया। हमारे पास इतनी बातें थी कहने के लिये की वो समय भी कम हो गया था। मुझे बाद में वंदना जी ने कहा कि वो सोच रही थी की 12 बजे से पहले ही हमारी मीटिंग खत्म हो जायेगी पर ऐसा हुआ नहीं। मुझे तो जाना था ही और मैं वहां से 1:25 में निकला और पीछे छोड़ गया एक और यादों का सिलसिला। जिसे मैं कभी भूलाना नहीं चाहूंगा।
हम हर दिन पता नहीं कितने लोगों से मिलते हैं पर बहुत ही कम लोग अपने पद-चिन्ह छोड़ जाते हैं। और वंदना के पद-चिन्ह किसी रेत पर नहीं किसी पत्थर जैसी सख्त चीज पर है, जो शायद कभी नहीं मिटेगी।