आज हिंदी ब्लौगिये संसार में अविनाश जी को लगभग सभी जानते हैं, सो मैं उनका परिचय दिये बगैर सीधे अपनी बातों पर आता हूं।
अभी का तो मुझे पता नहीं है कि कितने लोग उन्हें 'लौटकर अविनाश' के नाम से जानते हैं पर बात उन दिनों की है जब अविनाश जी कि पहचान 'लौटकर अविनाश' के नाम से होती थी। और हम बच्चे उन्हें प्यार से मुन्ना भैया कह कर बुलाते थे और आज भी बुलाते हैं।
एक परंपरागत पत्रकार कि तरह खादी का झोला कंधे पर लटकाये, खादी का कुर्ता जिंस पर चढाये हुये, पैरों में कोई सा भी एक सादा सा चप्पल डाले हुये, दुबला-पतला छड़हरा सा बदन, चेहरे पर हमेशा बढी हुई दाढियां मानों अभी-अभी किसी के कैद से छूटकर भागे हुये हों। वे जब भी हमारे घर आते थे तो उनका हुलिया ऐसा ही होता था।
उन दिनों घर में जब कभी भी पर्व-त्योहार या कोई उत्सव होता था और मुन्ना भैया पटना में होते थे तो उनका आना अनिवार्य होता था। पर भैया के आने का कोई समय नहीं होता था। साधारनतया वो रात के 10 बजे के बाद ही आते थे, और मैं उन्हें कभी-कभी निशाचर कह कर चिढाया भी करता था।
अब घर में कोई उत्सव हो या किसी का जन्मदिन हो तो कई बार खाने में "पलाव" भी बनता था, जो मुन्ना भैया को पसंद नहीं था। जब भी ऐसी स्तिथि का सामना उन्हें करना परता था तो वो सीधे-सीधे कभी नहीं कहते थे कि उन्हें पलाव पसंद नहीं है, वो बोलते करते थे की "ये सामंती भोजन है, मैं सामंती भोजन नहीं खाता हूं"। और जब बात जन्मदिन का केक खाने कि होती थी तो मुन्ना भैया केक को बड़े चाव से खाते थे। हमलोग जब उनको चिढाते हुये पूछते थे कि क्या केक सामंती भोजन ना होकर जन-साधारण का भोजन है? तो उनका उत्तर होता था कि नही केक सामंती भोजन नहीं है। इसका कारण पूछने पर वो अपना तर्क(तर्क या कुतर्क जो भी कह लें :)) देते थे कि, "पलाव इसलिये सामंती भोजन है क्योंकि जब पलाव भारत में प्रचलन में मुगलों के साथ आया था तब भारत में सामंती व्यवस्था का बोल-बाला था, पर जब केक भारत में प्रचलन में आया तब तक भारत आजाद हो चुका था और सामंती व्यवस्था खत्म हो चुकी थी।"
अब आप ही कहिये आपके क्या विचार हैं इस तर्क(कुतर्क) पर? :D
मुन्ना भैया अपनी बिटिया के साथ
भोजन के बारे में तो नहीं पता... लेकिन ये बच्ची बड़ी प्यारी है.
ReplyDeleteहो भी क्यों ना? मेरी भतीजी जो है.. :)
ReplyDeleteअविनाश जी का तर्क तो बड़ा शानदार है...वैसे छुटकी बड़ी प्यारी है.
ReplyDeleteअपने हिसाब से तर्क घड़ने में भाईश्री माहिर है :)
ReplyDeleteउनकी सोच के बारे में कुछ नहीं कहना, लेकिन व्यक्ति के बारे में आपने जो परिचय दिया है उसे पढ कर अच्छा लगा. किसी भी चिट्ठाकार को इस तरह जाने पहचाने व्यक्ति द्वारा जानना बडा अच्छा लगता है. कुछ और भी लिखें अविनाश जी के बारे में. मुझे नहीं लगता कि एक लेख में आपने उनका पर्याप्त परिचय दे दिया.
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