Tuesday, November 20, 2007

एक क्षण

एक क्षण,
जब कुछ भी आपके लिये मायने नहीं रखता,
एक पल में सब अधूरा लगने लगता है..

ना जिंदगी से प्यार,
ना मौत से भय,
ना सुख का उल्लास,
ना दुख का सूनापन,
ना चोटों से दर्द,
ना सड़कों की गर्द..

निर्वाण की तलाश,
आप करना चाहते हैं,
पर मखौल उड़ाती जिंदगी,
खुद आपको तलाशती फिरती है..

एक क्षण में आपको,
दुनिया बदलती सी लगती है..
पर बदलता कुछ भी नहीं है..
बदलते तो आप हैं,
ये दुनिया आपको,
बदलने पर मजबूर कर देती है..

एक क्षण में,
आप खुद को,
लाचार महसूस करने लगते हैं..
एक क्षण में,
ना जाने क्या कुछ हो जाता है..

एक क्षण..



तस्वीर के लिए गूगल को आभार

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6 comments:

  1. बहुत अच्छे.. अच्छी कविता.. अच्छा लेखन...

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  2. सही बात है - यह 'क्षण' का ही खेल है। राग और विराग वही उत्पन्न करता है।

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  3. आपकी यह पंक्तियाँ कुछ सोचने पर मजबूर कर देती हैं ... एक पल में जीवन में इतना कुछ हो जाता है.. पर वास्तविकता में इन्ही खोये हुए पलों
    का नाम तो ज़िंदगी है. और यह निरंतर चलती रहती है... :)

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  4. कटु सत्य! यह एक क्षण ही जिंदगी की दिशा तय कर देता है. वास्तव मे एक बहुत अच्छी कविता लिखी आपने.

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  5. बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने ।
    घुघूती बासूती

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  6. बहुत ही बढ़िया रचना. बधाई.

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