कुछ समय बाद दीदी कि छोटी बिटिया भी हुई.. और उसकी सोमू दीदी उसके बदमाशी करने पर उसे भी पछांत मामू के डंडा से ही डराती रही.. छोटी बिटिया के साथ अधिक समय गुजारने का मौका कभी नहीं मिला.. मेरे लिए वो अप्पू से गप्पू कब बन गई, मुझे भी पता नहीं चला.. सभी के लिए अप्पू, और मेरे लिए गप्पू.. दोनों गाल खूब फुले हुए.. देखते ही खींचने का मन करने लगे, कुछ ऐसा..
इस बार के पटना यात्रा में कुछ अधिक समय गुजारने का मौका मिला जिसे मेरे बुखार ने बर्बाद कर दिया.. किसी को गोद नहीं ले सकता हूँ, कहीं उसे भी बुखार ना हो जाए.. मगर दूर से तो डरा ही सकता हूँ.. है कि नहीं?? :)
कुछ दिनों बाद एक और बच्चे का आगमन हुआ घर में.. भैया-भाभी को बेटा और मुझे भतीजा मिला.. पापा-मम्मी अब नाना-नानी के अलावा दादा-दादी भी बन गए.. उधर दीदी-पाहुनजी का भी प्रोमोशन हो गया इन रिश्तों में.. 24 अगस्त को भैया के बेटे केशू का दूसरा जन्मदिन था..
अब जन्मदिन बच्चों का हो और बैलून ना आये, ये भी कभी होता है भला? नहीं ना!! तो ढेर सारे बैलून भी आये.. और मैंने ऐसे ही मस्ती में एक बैलून फोड़ दिया.. तीनों बच्चे हैरान-परेशान.. ये क्या आवाज किया.. सोमू रानी अब साढ़े छः साल कि थी, सो तुरत समझ गई कि बैलून फूटा.. गप्पू रानी को बताया गया कि बैलून फूटा.. और केशू लाला सोच में कि हुआ तो आखिर क्या हुआ? फिर उसे इतना ही समझ में आया कि बैलून से खेलने पर वो फूट जाता है और उससे डरावनी आवाज आती है..
अब तीनों बच्चों को इकठ्ठा करके, एक बैलून हाथ में लेकर खेलने पर तीनों कि प्रतिक्रिया के बारे में सुने :
सोमू बिना कुछ बोले अपने कान पर हाथ रख कर इन्तजार में रहती कि बैलून अब फूटा तो तब फूटा..
गप्पू बिटिया बिना किसी भाव को चेहरे पर लाये कुछ वाक्य लगातार बोलने लगती है, "मामू.. बैलून मत फोडो मामू.. प्लीज मामू.. बैलून मत फोडो मामू.. हम्फ(लंबी सांस लेने कि आवाज).. मामू.. बैलून मत फोडो मामू.. प्लीज मामू.. बैलून मत फोडो मामू.." यह मंत्र जाप तब तक चलता है जब तक कि उसके मामू, यानी मेरे हाथ से बैलून ना निकल जाए..
अब बचा सबसे छोटा बच्चा.. केशू.. वो तो जैसे ही अपने छोटे पापा के हाथ में बैलून देखता है वैसे ही दहाड़े मर-मर कर रोना चालू.. शुरू शुरू में तो किसी के भी हाथ में बैलून देख कर रोता था, बाद में उसकी समझ में आ गया कि बैलून से खेलते तो सभी हैं मगर फोड़ने का काम बस छोटे पापा का ही है..
कुछ और भी किस्से हैं जिसे मैं संभाल कर लेता आया हूँ.. मौका मिलते ही सुनाता हूँ.. :)
अरे लाना तो जरा वायरस घुसा हुआ पैनड्राइव,पीडी के सिस्टम में लगाना है।.
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट है ....
ReplyDeleteअपने विचार प्रकट करे
(आखिर क्यों मनुष्य प्रभावित होता है सूर्य से ??)
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_07.html
ए ! पता है, मेरी दीदी की बिटिया शीतल को भी हम गुब्बारे से डराते थे. जब वो साल भर की थी, तो बहुत शैतान थी. टी.वी. की बटन दबाती रहती थी, तो उसे डराने के लिए स्क्रीन के दोनों ओर गुब्बारा लगा दिया जाता था, जिससे वो टी.वी. से दूर रहे.... :-)
ReplyDeleteअरे केशू के जन्मदिन पे तो हम भी वहीँ पे थे :) और हाँ मेरे सामने भी तुम केशू को डरा रहे थे, जब अगले दिन तुम्हारे घर आया था :) :P
ReplyDeleteरोचक.........
ReplyDeleteपाव्लोव का सिद्धांत हो गया ई डर भी...कोनो डरावना सिनेमा में ई जानते हुए भी कि ई नक़ली है, डर जाता है लोग...बच्चा लोग तो मन का सच्चा होबे करता है...अब तबियत बुझाता है ठीक हो गया है!!!
ReplyDeleteमामू के डंडे का भय पटना में व्याप्त है।
ReplyDeleteयाद है न कंस मामा का क्या हाल हुआ था? बच्चों को केवल धमकी देते हो? हमने तो सच में बांध दिया था, न यकीन हो तो ये पोस्ट देखो :)
ReplyDeletehttp://antardhwani.blogspot.com/2007/11/blog-post.html
बडा होने दो बच्चों को, पछांत मामू दुम दबाये भागे भागे न फ़िरें तो कहना :)
डरावने मामा!!
ReplyDeleteकुछ नुस्खे काम आयेगें...
ReplyDeleteवैसे आदि को कहे है.. मुच्छी बाबा आ जायेगा... बड़ा बड़ा डंडा लेकर.. ठक ठक करके...
और दुसरा.. बागड़ बिल्ला आ रहा है... और बाकि कहानी आदि खुद ही बना देता है..
बुखार के क्या हाल?
mama hokar darate ho...mamu
ReplyDeletebadiya nuskhey hai.. kaam aa sakte hain.....
ReplyDeleteA Silent Silence : Ye Dua Mere Labon Ki..(ये दुआ मेरे लबों की..)
Banned Area News : DeGeneres strikes deal with AOL
बच्चो को डराते हो.. लाहौल विला कुवत
ReplyDeleteवैसे पछांत मामु ये विनीत बाबु का कह रहे है..? कही इनके लैपटॉप में तो आपने नहीं घुसाई पेन ड्राईव..
अरे अरे बस अपना एक फ़ोटू टांग दो घर मे, बच्चे उस से खुब डरे गे, एक फ़ोटू मुझे भी भेज दो पडोसियो के बच्चे डरा दिया करुंगा...:)
ReplyDeleteबड़ी अजीब बात है । किसी को डराकर हम चाहते हैं कि वह हमें याद रखे । और यदि वह याद रखे तो बड़े खुश होते हैं ।
ReplyDeleteबहुत खूब पीडी भाई.. लगता है दुनिया के सारे मामा एक ही तरह से बच्चों को डराते हैं.. तभी हम सब कंस कहलाते हैं.. हा हा हा..
ReplyDelete@ विनीत - हम किसी का कोई चीज उधार नहीं रखते दोस्त.. कितना भी वायरस लेकर आओ, उल्टा कुछ लेकर ही जाओगे मेरे सिस्टम से.. :P
ReplyDelete@ रजनीश जी, AlbelaKhatri जी, - धन्यवाद..
@ अराधना - बच्चों को डराने में कित्ता मजा आता है न.. :D
@ अभिषेक - वो तो नमूना मात्र था..
@ सलिल जी - अब बिलकुल चंगा हो गया हूँ.. :) दफ्तर भी जाने लग गया हूँ.. :(
@ प्रवीण जी - ना जी, बच्चों को ही दरकार संतोष कर लेता हूँ.. पटना को डरना, अपनी जान प्यारी है मुझे.. :)
@ नीरज - बेचारा बच्चा को कैसे बांध दिए हो जी? तुम भी अपनी ही पाल्टी के लग रहे हो.. ;)
@ समीर जी - डरावने छोटे पापा भी.. :)
@ रंजन जी - हम्म.. मुच्छी बाबा और बागड़ बिल्ला.. बढ़िया बताए.. अब ये भी ट्राई किया जाएगा.. :D
@ अनिल - कुछ दिन में तुम भी यही करने वाले हो.. :)
@ सोनल जी - जरूर.. अभी तक मैंने पेटेंट नहीं कराया है..
@ कुश - विनीत कि बातें विनीत से ही पूछो.. :)
@ राज जी - घर वाले फोटो को देख कर भतीजा दिन भर पापा पापा चिल्लाता रहता है.. इन्तजार में हैं कि कब डरेगा.. :(
@ विवेक जी - यह मानव मनोविज्ञान की बात है.. (देखिये मैं सीरियस हो गया..) :D
@ दीपक भाई - तो तुम भी बिरादर वाले ही हो..
अरे एकदम मस्त पीडी . पढ़ते हुए मुझे अपने घर की बात याद आ गई. बड़े भतीजे तो अब खैर सब जॉब में हैं. छोटा भतीजा 8th में भांजी 9th में. भांजा है 6th में . तो हाल ये होता है की अगर किसी एक को दुसरे को चमकाना होता है तो फाटक से कहेगा. संजू मामा/चाचा को बुलाऊं/फोन लगाऊं .
ReplyDeleteऔर जब इन सब के बीच बैठो तो एक दुसरे की शिकायतें सुनकर कान पक जाते हैं...