मनुष्य के भीतर कि जिज्ञासा ही मनुष्य को नई उचाईयां भी प्रदान करता है साथ ही उन्हें या दूसरों को संकट में भी डालता है.. अब जैसे मैंने यह पहले ही बता दिया है कि यह सच्ची कहानी है, कोई कोरी कल्पना नहीं.. तो मेरे पाठक अथवा मेरे मित्रों' के मन में नाम जानने कि इच्छा सबसे पहले होगी, जो मैं किसी भी हालत में नहीं बताने वाला हूँ.. कृपया मुझसे व्यक्तिगत रूप में भी यह सवाल ना पूछें, ना तो मेल में और ना ही फोन पर.. नाम कुछ भी आप सोच लें.. रेवा-रेवती, सोनल-आरती.. कुछ भी..
उसने मुझसे कहा कि "तुम लिखते हो, तो इस पर भी कोई कहानी लिख दो.." मेरा कहना था कि मैं लिखूं तो शायद कोई नाटकीयता आ जाए, सो बेहतर है कि तुम ही लिखो और मैं उसे तुम्हारा नाम बताए बिना अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर देता हूँ.. वैसे भी मुझे कहानी लिखनी नहीं आती है.. उसने मुझे रोमण में लिख भेजा, जिसे मैंने हिंदी में कन्वर्ट किया है सो त्रुटि कि संभावना बनी हुई है.. बाकी आप खुद ही पढ़ें :
कितना चाहती थी न मैं उसको! क्या मेरे आंसू उसके लिए कोई मायने नहीं रखते? क्यूँ किया उसने मेरे साथ ऐसा?
उस से मैं एक रिश्तेदार की शादी में मिली थी.. करीब १०-१२ साल पहले. २-४ मिनट की बात में उसने मुझसे मेरा फोन नंबर मांग लिया. दिल में खुशी मगर चेहरे पे संकोच का भाव लेकर मैंने नंबर दे दिया, साथ में ये भी बता दिया की किसी लड़की से फोन करवाएं| मन में कई सपने संजो कर मैं वापस लौट आई और इंतजार करने लगी उसके कॉल का. दिन बीते, हफ्ते बीते. कई बार सोचा की मैं ही फोन कर दूं लेकिन फिल्मों में ऐसा कहाँ दिखाते हैं? उसमे तो हमेशा लड़का ही फोन करता है, उस उम्र में फिल्मो का असर भी कुछ अधिक ही होता भी है. ऐसा सोच कर फोन रख देती थी. फिर एक दिन घंटी बजी, फोन उठाया. “हेल्लो…” दिल की धडकन जैसे रुक गयी…..ये तो उसी का फोन है! एक औपचारिक बातचीत के साथ ये सिलसिला शुरू हुआ…और कब प्यार में बदल गया पता नहीं चला! खैर….प्यार तो शायद पहली मुलाकात में ही हो गया था….उसको फार्मल बनने में टाइम लग गया. बहुत चाहने लगी थी उसको! फोन की घंटी सबसे प्रिय धुन हो गयी थी और उसके बोल भगवान के शब्द. मंदिर में जब भी सर झुकाया, सिर्फ उसके लिए मन्नत मांगी, वैष्णो देवी से लेकर साईं बाबा, सब के आगे माथा टेक लिया. भगवान का प्रसाद भी दो बार लेती थी, एक उसके नाम का भी तो लेना होता था न. मन ही मन भगवान मान लिया था मैंने उसको, मेरी पूजा, मेरी आराधना सब कुछ उसको समर्पित.
समय बीतता गया, और ये सिलसिला अभी भी फोन पर ही चल रहा था(हाँ, हम दोनों अलग अलग शहर में थे). फिर उच्च शिक्षा के लिए मैं बाहर निकली. नया शहर, नए लोग…सब कुछ नया-नया. कुछ लड़कों ने प्रेम-पींग बढ़ाने की कोशिश की लेकिन मैं अपने देवता की मूर्ती को खंडित नहीं कर सकती थी, कभी नहीं. उस से मिलने की चाह में मैं उसके शहर जा पहुंची, एक तकनिकी ट्रेनिंग के बहाने. होस्टल में थी. छुप छुप के कभी कभी मिलते थे हम दोनों. होली का त्यौहार नज़दीक था और पता नहीं क्यूँ हर साल होली के आस पास मेरी तबियत ज़रूर खराब होती है सो इस बार भी हुई. मम्मी कहती हैं मौसम बदलने के चलते. सभी घर बुला रहे थे होली के अवसर पर लेकिन मैं तो उसके साथ रहना चाहती थी, एक फागुन साथ बिताना चाहती थी. सुबह हुई, दोपहर फिर शाम और रात के १०. वो आया होस्टल के बाहर, मैं तपते हुए बुखार में उस से मिलने गयी. कमजोरी भी हो गयी थी क्यूंकि सुबह से कुछ खाया नहीं था (छुट्टी के चलते मेस भी बंद था). मैंने देखा की उसके चेहरे पे शिकन तक नहीं आई मेरी दशा देख के. मैं तो मर ही जाती उसे इस हाल में देख के. लेकिन….शाम आई शाम गयी. अब तो उसके इस उपेक्षित व्यवहार की आदि हो चुकी थी मैं. और मज़े की बात ये है की मैं खुद ही कोई ‘एक्सक्यूज' बनाती उसके व्यवहार का, और खुद ही माफ कर देती उसको. बहुत चाहती थी उसको मैं!
अब उसके घर में लोगों को पता लग चुका था हमारे प्यार के बारे में, उन्हें ये कतई मंज़ूर नहीं था. वो बहुत बड़े परिवार से था और मैं एक साधारण लेकिन पढ़े-लिखे परिवार से. वैसे उन्हें पढाई लिखाई से कोई लेना देना नहीं था. एक दिन उसकी माँ और बड़े भैया मेरे होस्टल आये, कमरे में आते ही माँ ने मुझे एक थप्पड़ रसीद दिया और कहा की मैं उनके बेटे से दूर हो जाऊं. फिर बड़े भैया ने मेरा हाथ पीछे की ओर मरोड़ा और हाथ में अपना कड़ा निकला और उस कड़े से मेरे चेहरे पे वार करने लगे और ये कहने लगे की ऐसा चेहरा कर दूंगा की कोई देख भी नहीं पायेगा. वो दोनों मारते चले गए और मैं चुपचाप सहती चली गयी. कर भी क्या सकती थी. माँ की चूडियाँ टूट के बिखर चुकी थीं और कुछ मेरे शारीर पर चुकी थी…. मगर असल चुभन तो कहीं अंदर थी. जब वो दोनों थक गए तो मुझे ऐसी ही हालत में छोड़ कर चले गए. और जब मुझे होश आया, उठने की कोशिश की तो पाया की एक हाथ नहीं उठ रहा है, टूट चूका था और चेहरे और हाथ से खून निकल रहा है एक आँख भी काली होके सूज चुकी थी. कुल मिलाकर भईया का सपना पूरा हो चूका था. मैं सच-मुच देखने लायक नहीं रह गयी थी. उसे भी ये सारी बातें पता लग चुकी थीं. मेरे घर पे भी सबको पता लग चुका था, लेकिन मैंने उन्हें अपनी हालत के बारे में नहीं बताया. घर गयी, तीन दिन बीत चुके थे लेकिन उसका कोई फोन नहीं आया. सुनने में आया की वो डर के कहीं छुप गया था, घर में एक आवाज़ तक नहीं उठाई उसने. लेकिन ये घटना भी मेरे प्यार तो नहीं तोड़ पायी. पता है की बेवकूफी थी! वो भी एक बुजदिल इंसान के लिए.
धीरे धीरे बरस बीतने लगे और एक दिन जब घर पे फोन किया तो भनक लगी की मेरी शादी की बात चलने लगी है. दिल बैठ गया मेरा. कैसे कर सकती हूँ किसी और से शादी? किसी और की कैसे हो सकती हूँ मैं? मैंने उसे फोन लगाया और सारी बात बता के रो पड़ी. उसने कहा - “अच्छा..!!'” ये क्या कह रहा है वो? उसने ठीक से सुना नहीं क्या की मैंने क्या कहा? मैंने फिर से दोहराया, उसने फिर वही कहा.
अब सब कुछ समझ में आ गया था.
उसकी शादी होने वाली है. सुना है की आजकल अपनी शेरवानी और सूट डिजाईन करवाने के लिए डीजाइनर के चक्कर लगा रहा है.
वैसे मैं बताता चलूँ कि आज वो खुश है अपने जीवन में, आत्मविश्वास के साथ अपने पैरों पर खरी है.. शायद मैं वह बातें ना पूछता तो वह बताती भी नहीं.. शायद मैंने कुछ जख्म फिर से हरे कर दिए..
पहली कहानी आज अनुराग शर्मा जी की पढी ....दूसरी आपकी ....!
ReplyDeleteपहली कहानी के अंत का आभास नहीं था मगर इस कहानी का कुछ कुछ आभास हो चला था ..
भोगे हुए यथार्थ का वर्णन आप अच्छा कर लेते हैं पी डी.....यह कह कर मत टरकायिये की यह किसी दूसरे की आप बीती है ..
लेखक तो अपने ही अनुभवों को जीता और बाटता है -किस्क्ली जिन्दगी बर्बाद की हुजूर ..हा हा ...
लिखा कसाव भरा है !
अक्सर ही प्यार एक तरफा होता है। हम किसी को प्यार कर बैठते हैं, और वह केवल उस का आनंद लेता रहता है। इस कहानी में भी वैसा ही कुछ है। जीवन का ठोस धरातल कुछ और ही होता है। कहानी अच्छी है। इसे आपने एक स्वतंत्र कहानी के रूप में ही लिखा होता तो ठीक होता।
ReplyDeleteमें अरविंद जी से सहमत नहीं कि यह आप की ही कहानी है। यह तो बहुत से नौजवानों की कहानी है।
कितने ही जीवन इस कहानी को जी चुके हैं और आगे जीते रहेंगे...
ReplyDeleteदुख से कहीं बहुत ज्यादा अफ़सोस हुआ इस कहानी को पढकर. अफ़सोस भी इसलिये कि तुमने लिखा है कि ये कहानी काल्पनिक नहीं है।
ReplyDeleteप्यार करना अलग बात है लेकिन प्यार अच्छा वही होता है जिसमें व्यक्ति स्वयं की कद्र करे. दूसरे शब्दों में सबसे पहले खुद से प्यार करो. जो तुम्हे प्यार के बदले दुत्कार रहा है उसके व्यवहार को जस्टीफ़ाई करने से बेहतर है कहना कि गो टू हेल...
फ़िर लडकी ने कई बडी गलतियाँ की, जब पता है कि लडके के परिवार का व्यवहार कैसा है तो फ़िर होस्टल के उस कमरे में अकेले मिलना ही गलत था। क्या पूरे होस्टल में एक सहेली नहीं मिली जो साथ रह सकती थी, या फ़िर किसी खुली जगह भी तो बातचीत हो सकती थी, जहाँ सुरक्षा की उम्मीद ज्यादा हो।
और उसके बाद अगर वो पढी लिखी सबला (लडकी उच्च शिक्षा ग्रहण कर रही थी, राईट?) थी तो तुरन्त थाने में जाकर उन दोनों को उनके किये का सबक क्यों नहीं दिलवाया? खुद को कमजोर मानना कमजोर होने से बडा गुनाह है। गर्ल्स होस्टल में ऐसे ही किसी को किसी के कमरे तक नहीं जाने देते, कम से कम गार्ड तो गवाह होता फ़िर कानूनी कार्यवाही करनी चाहिये थी।
There should be zero tolerance for physical abuse regardless of outside family or within family.
फ़िर इस प्रकार के फ़िजिकल वायलेंस के बाद लडकी के घरवालों ने भी कुछ नहीं किया? क्यों ?
माफ़ करना कुछ तीखा लिख गया हूँ तो...
@अरविन्द सर - यह कहानी किसी लड़की कि है, लड़के कि नहीं, तो मेरा होने का सवाल ही पैदा नहीं होता.. और पितृसत्ता समाज में रहकर लड़का होने का ये फायदा तो जरूर है कि अगर यह मेरी कहानी हो तो मैं सबके सामने स्वीकार कर सकूँ कि हाँ ये मेरी कहानी है..
ReplyDeleteइस कहानी मे एक दर्द है..एक टूटा, बिखरा विश्वास है.. एक कायर लडका है..और लडकी पर हाथ उठाने वाले हमारे ही समाज के लोग..
ReplyDeleteनीरज जी की बातो से सहमति है.. लेकिन इक उम्र का प्यार अज़ीब होता है.. पागलपने के जैसा.. सबको सो काल्ड सच्चा प्यार ही करना होता है जैसा किसी ने न किया हो..
मुझे ये लडका बिल्कुल पसन्द नही आया... और लडकी से यही कहूगा कि ’भगवान, जो करता है अच्छा ही करता है!’ आज वो अपने पैरो पर खडी है, उस परिवार की बहु बनने से तो लाख अच्छा है जो होस्टल मे उसपर गुन्डागर्दी दिखाने आता है.. इसलिये अपने नये जीवन की ओर पहल करे और इसे बुरा समय मानकर भूल जाये...
@नीरज - उस लड़के का परिवार एक प्रकार का बाहुबली टाइप खानदान जैसा ही कुछ है, और वे लोग बता कर मिलने नहीं आये थे.. और जब वे लोग आये थे तब किसी को इतनी हिम्मत नहीं थी कोई उन्हें गर्ल्स हॉस्टल के अंदर आने से रोके..
ReplyDeleteऔर बिहार-झारखंड में ऐसे परिवार के खिलाफ पुलिस में जाना!! लिखने सुनने में तो बहुत ही अच्छा लगता है, मगर प्रैक्टिकल नहीं है..
अब ऐसे में घरवाले तो इसी बात से खुश रहे होंगे कि बेटी ज़िंदा आ गई, यह मेरा अनुमान है..
जाने लोग कैसे सोंच लेते हैं की आप किसी की जिंदगी बर्बाद कर सकते हैं ....
ReplyDeleteभैया ...प्रेम में लोग ऐसे क्यों हो जाते हैं की आत्मसम्मान तक की कुर्बानी दे आयें ?
मुझे कभी समझ नही आया.
जीवन कहानी ही तो है ,,सच में अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteकभी किसी को मुकम्मल जहान नहीं मिलता//
ReplyDeleteकहीं जमीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता//
काश जिन्दगी कि गडित के भी कुछ बधे badhaye फार्मूले होते....जिनको अप्प्लय करके हम सारे सवाल हल कर लेते....मगर क्या करें जिन्दगी को समझने का और हल करने का कोई बधा बधाया फार्मूला ही नहीं होता ..सो ...जिंदगी से बढ़कर कोई कहानी भी नहीं होती"....हो सकता है इस कहानी में वों रंग ना हो जो हमें खुश कर सके ...वों बारीकियां ना हों जो किसी कहानी को महान बनती है...तो क्या हूवा यही तो जिन्दगी है...बिलकुल खुरदरी .......ये तो बिलकुल नीरस ही होती है....हो सकता है यहाँ कहानी के सोंदर्य शास्त्र का एक रेशा भी ना हो मगर यही तो एक सची कहानी है....इसके लिए बधाई भी नहीं दूंगा ...सिर्फ कोसुंगा आपको...क्यों की ये गडित के मेरे टीचरों की तरह ही सवाल देके अलग हो गएँ हो ..और हम जवाब को हल करने के लिए मरे जा रहे हैं..जिस सवाल का कोई जवाब ही नहीं है...
सही कहा "क्योंकि जिंदगी से बढ़कर कोई कहानी नहीं होती
ReplyDeleteLove doesn't exist !
ReplyDeleteना जाने ऐसी कितनी कहानियां देखी-सुनी-पढ़ी हैं....उस कच्ची उम्र में एक जिद सी होती है, मन जीत लेने का विश्वास होता है..और आँखों पर बंधी इस विश्वास की पट्टी लड़के की असलियत देखने नहीं देती...और बिहार-झारखंड क्या,प्रशांत ...दिल्ली,मुंबई...में भी लडकियां या महिलायें फिजिकल वायलेंस के विरोध में पुलिस में जाने की हिम्मत नहीं करतीं...
ReplyDeleteThere should be zero tolerance for physical abuse.. कहना आसान है...पर व्यावहारिकता में उतारना बहुत मुश्किल...बस आत्मनिर्भरता ही यह आत्मविश्वास लौटा सकती है..जैसा उस लड़की का लौटा...
आपका बयान (क्यूँकि वो कहानी नहीं है) और ऊपर की सारी टिप्पणियाँ पढ़ी, जैसी कि मेरी आदत है।
ReplyDeleteऊपर किसी ने लिखा था कि "प्यार का अस्तित्व नहीं है"।
मैं असहमत।
"प्यार होता ज़रूर है, ऐसा नहीं कि प्यार होता न हो, पर ये प्यार बड़ा ज़ालिम, बड़ा कमीना होता है, हर शक्ल में। बड़ी 'कुत्ती' चीज़ है ये।"
(कृपया यहाँ "कुत्ती" को मुहावरे के ही अर्थ में लें, प्राणिजगत की स्पेसी-विशेष के रूप में नहीं)
सिर्फ़ एक बात कहना चाहता हूं कि लेखन शैली में गज़ब का प्रवाह दिखा हमेशा की तरह । कायर थे वो जिन्होंने उस लडकी को मारा और उससे बडा कायर था वो लडका जिसने ये सब जानकर भी प्रतिवाद नहीं किया , और सबसे बडी मूरख वो लडकी थी जो उस लडके को पहचान नहीं पाई । यदि इतना ही कह कर चुप हो जाऊं तो हजम नहीं होगा खुद मुझे भी । सच तो ये है कि लडकी उस लडके से बेइंतहा मुहब्बत करती थी , और शायद अब भी करती है ।
ReplyDeleteआपकी छोटी सी दुनिया काफी अच्छी लगी। कहानी भी सच्ची लगी।
ReplyDeleteगुस्से में हूँ पर भाषा पर संयम रखते हुए बस यही कहूँगा कि अजय भैया से सहमत हूँ.
ReplyDeleteऐसी कहानिया/सच्ची घटनाएँ पढ़ कर लगता है कि क्या सचमुच प्यार कुछ होता है ....!!
ReplyDeleteआप बहुत अच्छा लिखते हैं.
ReplyDeleteइस कहानी ने थोडा दुखी कर दिया !
कहानी किसी की भी रही हो..या किसी के भी ऊपर गढ़ा गया हो.. ये जयादा मायेने नहीं करता..
ReplyDeleteअसल बात तो ये है की..उसे दर्शाया किस प्रकार है..!
बहुत ही उम्दा किस्म की एक कहानी जो की आज कल कई के जुडी है..!
मैं दिनेशराय दिवेदी जी के बात से सहमत हूँ की इस कहानी को स्वत्रंत रूप से लिखनी चाहिए थी..!!
आपकी छोटी सी दुनिया काफी अच्छी लगी। कहानी भी सच्ची लगी।
ReplyDeleteमुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
ReplyDeleteपढ़ा! क्या कहा जाये। :)
ReplyDeleteअरेssssss ! तुम्हारे ब्लोग पर पहुँच गई! हा हा हा
ReplyDeleteबाबा! पहले उस 'सच'को पढा बाद में 'ब्लोगर' का नाम पढा तो मेरे खुशी कि सीमा नही रही.कभी अपने ब्लोग के बारे में आपने बताया ही नही.
अच्छा लिखते हो,यदि आपने अनुवाद ही किया है तो कहूंगी 'नायिका' अच्छी लेखिका भी है.
प्यार दुनिया की सबसे खूबसूरत शै है,ईश्वर का दूसरा नाम .
ईश्वर हर जगह है हम सब जानते फिर भी 'गंदगी' में या गंदी नाली में उसकी प्रतिमा को रखने की सोच भी सकते है क्या? नही ना ?
प्यार जैसे पावन भाव को कुपात्र को देना.....?जिसे नायिका 'प्यार' समझ कर उसकी नागवार हरकतों को नजरअंदाज कर रही थी उसी प्रतिफल इतने भयावह रूप में उसके सामने आया.
नई उम्र के बच्चों को चाहिए कि सावधान रहे.प्यार और आकर्षण के बीच बहुत बारिक सी रेखा होती है.यदि अपनी मर्यादाओं का उल्लंघन ना किया जाये तो प्यार बहुत प्यारी चीज है.औरत की दृढ़ता उसे सुरक्षित तो रखती ही है.बुरे से बुरा आदमी भी चारित्रिक दृढ़ता के आगे नतमस्तक हो उस महिला को सम्मान देने लगता है. आदमीजात में ये जबर्दस्त गुण दिया है ईश्वर ने, वो परख लेता है कि उसे कहाँ कितना आगे बढ़ना है.सम्मान देने में भी 'फिर' कंजूसी नही करता.
अब हम महिलाये भावुकता में बह कर विवेकशून्य हो जाये,अपने स्वयम के सम्मान का ख्याल ना रखे तो .........बुरा ना माने,क्षमा करे.फिर तो हम घर,परिवार,खानदान में भी सुरक्षित नही.
शीर्षक बहुत प्यारा है - क्यूंकि ज़िन्दगी से बढ़कर कोई कहानी नहीं... कभी कभी कुछ चीज़ें हमारे बस में नहीं होती ... और जो चीज़ें बुरी होती हैं जब हमारे साथ घटती हैं हो सकता है वो किसी अच्छे के लिए हो रही हो... कहानी कुछ कुछ ऐसी ही फीलिंग्स देती है ... बुरा लगता है एक लड़की की मासूम फीलिंग्स के साथ कोई ऐसे खेले और लोग बदसुलूकी करे पर कहते हैं न - अंत भला तो सब भला... ये सब होने के पीछे आखिर कुछ अच्छा ही होना लिखा था...
ReplyDeleteउत्सुकता को प्यार समझ लेना और उत्सुकता कम हो जाने को धोखा, इस तरह के अनुभव बिखरे पड़े हैं । व्यक्ति व्यक्ति पर निर्भर होता है कि वह क्या वचन देता है और उसको किस सीमा तक निभाता है । आकर्षण और उत्सुकता के परे है प्यार । जो करेगा, वो समझेगा ।
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