मैं यह सब बातें इसलिये लिख रहा हूं क्योंकि यहां जिन लोगों में ठनी हुई सी लगती है, उसमें से अधिकांश लोग मेरे बेहद प्रिय हैं.. अगर उनकी बातों में मैं घुसने लगा तो ना इधर का रहूंगा और ना ही उधर का.. दोनों ही तरफ के लोग मुझे दुसरे पक्ष का समझेंगे.. और इससे मेरे अपने निजी रिश्ते भी खराब होंगे..
उदाहरण के रूप में, पाबला जी मेरे बहुत प्रिय हैं और मैं उन्हें अंकल कह कर बुलाता हूं.. उनके तरफ से भी मुझे उतना ही प्यार मिलता है.. दूसरी तरफ अनूप जी से भी वैसे ही संबंध हैं.. और उनसे भी उतना ही प्यार मिलता है.. कुश से एक अलग ही यारों जैसा संबंध है, साथ ही समीर जी और ताऊ जी से भी.. रचना जी से अक्सर मतभेद रहते हुये भी मुझे वह पसंद हैं कारण उनकी बेबाकी, दूसरी तरफ अरविंद जी को पढ़ना भी उतना ही सुहाता है.. कुछ पुराने किस्सों को भी उधेरा जाये तो दिनेश जी और पंगेबाज अरूण जी से भी अच्छे संबंध हैं.. यह तो बस कुछ नाम ही गिनाया हूं, और भी कई नाम हैं यहां..
मुझे अभी तक यह समझ में नहीं आया है कि अगर विचारों में मतभेद हो जाये तो लोग पूर्वाग्रह क्यों पाल लेते हैं? विचारों में असहमतियां तो हमेशा ही बनी रहेगी, क्या दुनिया में कोई है जिससे हमारे विचार शत-प्रतिशत मेल खाते हों? कोई नहीं मिलेगा, चाहे ढ़िबरी लेकर ढ़ूंढ़ें या ट्यूबलाईट जला कर..
मुझे अभी तक यह समझ में नहीं आया है कि अगर विचारों में मतभेद हो जाये तो लोग पूर्वाग्रह क्यों पाल लेते हैं?
ReplyDelete-sahi sawaal..meri bhi samjh se pare hai..
maga koi jawab nahin milega.
विचारों में असहमतियां तो हमेशा ही बनी रहेगी, क्या दुनिया में कोई है जिससे हमारे विचार शत-प्रतिशत मेल खाते हों? कोई नहीं मिलेगा, चाहे ढ़िबरी लेकर ढ़ूंढ़ें या ट्यूबलाईट जला कर..
-100% sahi kahaa hai.
...तो उसमें अपनी टांग ना घुसाने में ही मुझे भलाई दिखती है.
ReplyDeleteयह समझ तब आई तुमको जब दो बार टांग तुड़ा चुके। चलो देर से सही टांग बचाना तो आया।
वैसे मुझे नहीं लगता कि तुम कभी तटस्थ रह सकते हो। समय-असमय मुद्दों पर अपनी राय देते रहे। और मुझे नहीं लगता कि आगे भी ये आदत तुम्हारी छूट जायेगी।
अपनी बात को बेबाकी से कहते रहे तुम और मुझे भरोसा है कि आगे भी कहते रहोगे।
अपने मन की बात कहने से अगर कोई संबंध रोके तो मेरी समझ में उसमें कोई खोंट है!
मस्त रहो, बिन्दास। घुमन्तू रपट कब आयेगी?
तथस्ट, कई शब्द सुनने में जितने अच्छे लगते हैं क्या वाकई में उतने होते हैं .
ReplyDeleteवैसा ही एक शब्द है धर्म निरपेक्ष . भारत एक धर्म निरपेक्ष तथस्ट देश है ?
टाँग नहीं घुसाना या दूसरों के फटे में अपनी टाँग नहीं डालना एक अच्छी बात हो सकती है लेकिन क्योंकि यहाँ सभी अपने हैं तो फिर क्या किया जाए ?
कई कहावतें हैं और ज्यादातर कहावतें यथार्थ से प्रेरित होती हैं . समय पर लगाया गया एक टांका नों टाँको से बचा सकता है.
अहंकार और घमंड का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं था .
सही तथस्ट वही हो सकता है जो निर्विकार हो और जो इस अवस्था को प्राप्त करले उसके पास सबके लिए प्रेम के अलावा कुछ नहीं बचता .
मैं भी तटस्थ ही रहूँगा तुम्हारी तरह से. मेरे भी तो ऐसे ही संबंध हैं, क्यूँ बेवजह बिगाड़ना. :)
ReplyDeleteभई PD जी, पिछले एक साल का हमारा अनुभव भी यही है कि यहाँ तो तटस्थ रहने में ही भलाई है....वर्ना गेहूँ पिसे न पिसे लेकिन घुन के पिसने की पूरी गारंटी है :)
ReplyDeleteकिसी भी जगह छोटी छोटी बातों को न बढाया जाना ही श्रेयस्कर होता है .. वैसे यत्र तत्र बात का बतंगड किया जाना भी मानव स्वभाव है !!
ReplyDeleteभाई,मैं तो टांग फंसाउगा। क्योंकि मैं विचार को और संबंधों को दो अलग-अलग चीजें मानता हूं। कुछ लोगों के विचार और उऩका लिखा हुआ एक भी रत्ती पसंद नहीं आता। मैं ब्लॉग में उऩसे भिड जाता हूं लेकिन उनका व्यक्तित्व अच्छा है इसलिए बातचीत मिलना-जुलना जारी रहता है। जो लोग वैचारिक असहमति को संबंधों से जोड़कर देखते हैं तो भाई ऐसे लोगों से दूर ही रहना अच्छा रहता है। क्योंकि असहमति का स्वर इनके बीच नहीं रखेंगे तो किसके सामने रखेंगे? मेरे ऐसे कई परिचित लोग हैं जिन्हें पता है कि मैं किस मुद्दे पर उन्हें सपोर्ट नहीं करुंगा लेकिन संबंधों में कोई टकराव नहीं आया। अक्सर बहसें होती है लेकिन संबंध बरकरार है।
ReplyDeleteमैं फिर कहता हूं विमर्श की दुनिया में मजबूरी है कि हम अपना दिल बड़ा करें। अगर ऐसा नहीं करते हैं तो फिर क्षुद्रताओं में फंसकर रह जाएंगे। ऐसे में बेहतर है कि हम मोहल्ले तक ही सीमित रहें।..
पी डी मोशाय ,आखिर ये माजरा क्या है ?कई दिनों से दूर रहा हूँ नेट से -प्लीज बताएगें क्या संक्षेप में !
ReplyDeletedrarvind3@gmail.com
पूर्वाग्रह एक रोग है। उससे मुक्त रहना ही असल परीक्षा है।
ReplyDeleteतटस्थ रहने से पूर्वाग्रह, अगर हों, तो दूर नहीं होते। :)
प्रशांत भाई, आपकी तरह मैं भी दूसरों के विवादों में पड़ने से यथाशक्य बचने की कोशिश करता हूँ.. लेकिन तकलीफ होती है जब मात्र पूर्वाग्रहों के आधार पर तिल का ताड़ बनाया जाता है..
ReplyDeleteब्लॉगिंग केवल अभिव्यक्ति का एक माध्यम है, इससे कोई क्रांति नहीं लाई जा सकती, हाँ थोड़ी हलचल जरूर पैदा की जा सकती है.. इतना ही समझते हुए इस आभासी माध्यम में अपने 180 डिग्री उलट विचारों, और उनके विचारकों को सम्मान देना, और सह पाना अगर हर कोई सीख ले..तो गर फ़िरदौस बर रूये जमींअस्तो..
समस्या यह है कि विवादों के दोनो पक्ष ऐसे हैं, जो अनुभवी हैं, योग्य हैं, बहुत अच्छा लिखते हैं, और इस विधा की तरक्की के लिये काम करते हैं.. ऐसे लोगों के बीच में अपने अल्प-अनुभव के आधार पर क्या कहा जाय..?
तटस्थता केवल सम्बन्धों में मिठास कायम रखने के लिये हो तो ही अच्छा है.. लेकिन इससे अन्याय का समर्थन नहीं होना चाहिये..मेरी मान्यता है!
विचारों के मतभेद को लोग अहम् का विषय बना लेते हैं। हम मनुष्य हैं सभी के अपने विचार है। यदि सब एक जैसे ही हो जाएंगे तब कौन किस विषय पर लिखेगा? अच्छी पोस्ट के लिए बधाई।
ReplyDeleteविनीत कुमार के कमेंट को मेरा भी मत माना जाये…
ReplyDeleteहम भी विनीत कुमार जी और सुरेश जी से सहमत हैं। अगर नहीं पसंद आया तो क्यों नहीं लिख दें कि पसंद नहीं आया, और लेखक को इसमें बुरा भी नहीं मानना चाहिये।
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट है .
ReplyDeleteहमारा नाम तो तुम लिए नहीं :) कहीं मेरे गुट में तो नहीं आते ?
ReplyDeleteमुझे तो जबसे मेरे गुरु समीर लाल जी ने कहा है कि लोग जो कर रहे है उन्हें करने दो.. तुम बस अपना काम करते जाओ.. तभी से वही कर रहा हूँ..
ReplyDeleteयार पी डी.. इतना समय है ही कहा जो इन सब बातो के बारे में सोचे.. अभी तो सफ़र लम्बा है.. ये तो महज शुरुआत है..
ब्लोगिग विचारों पर ना होकर व्यक्तियों पर हो जाए तो ये ही होता है.. लफड़े देख मन तो बहुत विचलित है पर.. एक बात याद आती है जो शायद पान की दूकान पर पढ़ी थी.. "ज्ञान बाटने की जरुरत नहीं.. यहाँ सभी ज्ञानी है..."
ReplyDeleteजो ठीक लगेगा वही कहेगे जी .....पढ़े लिखे लोगो में असहमतिया ऐसे ही निबटाई जाती है ....
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