Sunday, January 10, 2010

हर तरफ बस तू ही तू

बहुत पहले कुछ गद्य के साथ इस पद्य को पोस्ट किया था.. आज फिर से इस पद्य को पोस्ट किये जा रहा हूं.. पूरी पोस्ट को पढ़ने के लिये उस पुराने पोस्ट पर जायें.. आपको कुछ निहायत लज़ीज कमेंटों को भी पढ़ने का लुत्फ आयेगा वहां..

मेरी प्रीत भी तू,
मेरी गीत भी तू,
मेरी रीत भी तू,
संगीत भी तू..

मेरी नींद भी तू,
मेरा ख्वाब भी तू,
मेरी धूप भी तू,
माहताब भी तू..

मेरी खामोशी भी तू,
मेरी गूंज भी तू,
मेरी बूंद भी तू,
समुंद भी तू..

मेरी सांस भी तू,
मेरी प्यास भी तू,
मेरी आस भी तू,
रास भी तू..

मेरा नक़्स भी तू,
मेरी हूक भी तू,
मेरा अक्स भी तू,
मेरी रूह भी तू..

मेरा मान भी तू,
मेरा ज्ञान भी तू,
मेरा ध्यान भी तू,
मेरी जान भी तू..

मेरा रंग भी तू,
ये उमंग भी तू,
मेरा अंग भी तू,
ये तरंग भी तू..

मेरे जिगर के सरखे-सरखे में
कुछ और नहीं
बस तू ही तू..

मेरे लहू के कतरे-कतरे में
कुछ और नहीं
बस तू ही तू..

10 comments:

  1. क्या बात है भाई , जब ऐसा समर्पण हो तो कौन भला अपना नहीं होना चाहेगा ।

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  2. अरे यार इतनी संजीदगी से याद करोगे किसी को तो लगता है किसी के चक्कर में हो या अब जल्द ही तुम्हारी शादी होने वाली है :)

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  3. मेरे जिगर के सरखे-सरखे में
    कुछ और नहीं
    बस तू ही तू..

    मेरे लहू के कतरे-कतरे में
    कुछ और नहीं
    बस तू ही तू..

    बहुत ही खूबसूरत रचना...

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  4. अजीब भुक्खड़ हो, टिपण्णी में भी स्वाद ढूंढते हो...क्या होगा तुम्हारा!

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  5. कोई चिंता कर रहा है क्या होगा तुम्हारा :)

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  6. इस अच्छी रचना के लिए
    आभार .................

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  7. कोई होता जिसको अपना.. हम अपना कह लेते यारो..

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  8. भाईजी,एक कविता लिखने में आप इतने त का प्रयोग करेंगे( मां के शब्दों में जियान करेंगे,रांगा करेंगे) तो बाकी हिन्दी के मास्टर लोगों को जब त,त की जरुरत होगी तो झाल बजाएंगे क्या?

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