हद है यार.. यहां ब्लौग को चिट्ठा किसने कहा? नामवर जी को क्यों बुलाया? जैसे व्यर्थ प्रश्न में ही अपना दिमाग खराब किये हुये हैं.. हम तो यहां आलोक जी से लेकर नामवर जी तक, सभी का नाम इंटरनेट पर पढ़कर ही जाने हैं.. हिंदी की मेरी इस समझ पर कई खुद को बुद्धीजिवी समझने वाले अपने बुद्धिमता झाड़ने को आ सकते हैं.. उनका स्वागत है..
कोई स्वधन्य ब्लौगर अपने ब्लौग को डिलीट करने की धमकी अपने कमेंट में कर जा रहा है.. कर दो भाई, हमारा क्या जाता है? बस यही कि पहले आपको पढ़ते थे, डिलीट होने के बाद नहीं पढ़ेंगे.. इससे ना तो मेरा कुछ बिगड़ने वाला है और ना ही किसी और का.. आपको पढ़ने या ना पढ़ने से इस संसार में किसी का भी कुछ नहीं जाता है.. कुछ ऐसा ही मेरे ब्लौग के होने या ना होने पर भी लागू होता है..
अब चिट्ठे को चिट्ठा किसने सबसे पहले बुलाया, और जिसने भी बुलाया वही हिंदी का सबसे महान ब्लौगर हो गया यह हम कैसे मान लें? हो सकता है कि उन्होंने ही सबसे पहला हिंदी चिट्ठा बनाया.. मगर मुझे तो इसमें भी कोई महानता नजर नहीं आ रही है.. इंटरनेट की बात करें तो अगर कोई महान है तो वो है जिसने यूनी कोड का पहला साफ्टवेयर बनाया.. मुझे उनका नाम क्यों नहीं याद आ रहा है? ओह मैं तो भूल ही गया, शायद मैंने उनका नाम कहीं पढ़ा ही नहीं.. और अगर पढ़ा भी होगा तो वह इतने हल्के में लिखा गया होगा कि उनका नाम इतने लंबे समय तक मन पर छाप छोड़ ही नहीं पाया..
मैं हिंदी ब्लौग किसी दूसरे के ब्लौग को देखकर नहीं बनाया.. और ना ही इसे बनाने के पीछे ना ही किसी मुद्दे को उठाना था.. और ना ही हिंदी को आगे बढ़ाना.. मेरा हिंदी से अपने व्यवसाय का भी रिश्ता नहीं है.. और ना ही मैं हिंदी में अपने खुद के असीम ज्ञान होने का भ्रम पाले बैठा हूं.. फिर क्यों बनाया हिंदी ब्लौग? अरे देखो ना! मैं भी कितना भुलक्कड़ होता जा रहा हूं.. थोड़ी देर पहले याद नहीं आ रहा था की यूनी कोड साफ्टवेयर किसने बनाया और अब ये भी याद नहीं आ रहा है कि मैंने हिंदी ब्लौग क्यों बनाया? हां याद आया!! मुझे हिंदी में लिखने का कोई औजार नेट पर मिल गया था और बस यूं ही बना लिया हिंदी ब्लौग.. 2006 में बनाया और अब लगभग तीन साल भी होने को आ रहे हैं.. मुझे तो नहीं लगता है कि मैंने कोई तीर मार लिया हो..
जिनके नाम को लेकर यहां बवाल मचा हुआ है कि उन्होंने ब्लौग को सर्वप्रथम चिट्ठा कहा(आलोक जी).. वो खुद तो कुछ कह नहीं रहे हैं और बाकी सभी लोग नये जमाने, पुराने जमाने को लेकर अपनी ढफली अपना राग गा रहे हैं, दुहाई देते फिर रहे हैं.. जिन्हें यह गुमान है कि 35 लोग मिलजुलकर साथ रहते थे वैसा अब क्यों नहीं हो रहा है? तो भाई लोग आप कोई ग्रुप बना लो और वहीं ब्लौग-ब्लौग खेलते रहो.. आप भी खुश रहेंगे कि अब कोई हमसे लड़ता नहीं है, कोई बहस नहीं करता है..
अभी जो समय है उसमें चाहे कोई कुछ भी कर ले, मगर हिंदी ब्लौग के विस्तार को कोई भी नहीं रोक सकता है.. अगर आज गूगल पैसा मांगने लग जाये तो कल ही सभी दूसरे डोमेन पर शिफ्ट हो जायेंगे.. कोई मठाधिषी करने लगे तो उसे बस उसके अनुयायी ही सुनेंगे और दूसरा कोई नहीं.. ब्लौग पर नियंत्रण रखने का भ्रम पाले लोग भी कुछ ना कर सकेंगे.. अभी तो मैं उस दिन के इंतजार में हूं जब हिंदी ब्लौग से कमाई शुरू हो और एक दूसरे तरह का घमासान देखने को मिले ट्रैफिक पाने के लिये..
पहले अफसोस हो रहा था कि मैं इलाहाबाद में होने वाले सम्मेलन में भाग नहीं ले सका.. अब लगता है कि अच्छा हुआ कि मैं इलाहाबाद से मीलों दूर बैठा हुआ हूं और इस वजह से वहां जाने का सपना भी नहीं देख सकता..
हे हे हे...
ReplyDeleteग्रेट :)
देखो प्रशांत ..
ReplyDeleteहम लोगन जो छोटे मोटे (अरे वैसे दुबले भाई ) बिलागर हैं न उनका ई फ़र्ज़ था कि इ संगम सम्मेलन में नहीं पहुंचने के बावजूद ..एक ठो पोस्ट इस विषय पर जरूर ठेलें..हम भोरे आ कि शायद काल्हे ठेल दिये थे..आज तुमने भी धर्म निभा दिया...ई ठीक रहा ...और हमरे बिलाग को कौनो चिट्ठा कहे कि चिट्ठी...चोखा कहे कि लिट्टी ..का फ़र्क पडेगा ....
अरे भैये, हो आते इलाहाबाद- लगा लेते संगम में डुबकी:)
ReplyDeleteवाह भैये !!
ReplyDeleteकुछ लोगो के चक्कर में सीधे साधे लोग बेवजह परेशान हो जाते है.. इग्नोर करो प्रशांत भाई
ReplyDeleteबस ब्लाग ब्लॉग खेलते रहो. ..... क्यों पड़े चक्कलस में ....
ReplyDeleteवाह भई, वाह! सब को क्या निपटाया है कायदे से, और एक ही बार में।
ReplyDeleteबहुत ही गम्भीर बातें बहुत ही खिलंदड़ अंदाज में कहने के लिए मेरी शुभकामनाएं मित्र। अच्छा लगा तुम्हारा रूठा रूठा सा अंदाज और आत्मविश्वास भी।
ReplyDeleteलो जी अविनाश वाचस्पति ने
ReplyDeleteयू एन आई कोड बनाया
और आपने यूनीकोड भुलाया
कोई बात नहीं बाकियों को
तो याद होगा।
जाने भी दो यारों ........................
ReplyDeleteकिस किस को याद कीजिये किस किस को रोइये,
ReplyDeleteआराम बडी चीज है मुंह ढक के सोईये, ;-)
पीडी, तुम चिन्ता न करो हमारी तरह मस्त रहो।
और जरा कोई मस्त दमदमाती हुयी पोस्ट लिखो तो कुछ जायका वापिस आये ब्लाग जगत का।
अरे भैया हमको भी किसी ने नहीं सिखाया था ।
ReplyDeleteबडी खुशी जानकर कि आपको भी किसी ने नहीं सिखाया ।
अरे भैया हमको भी किसी ने नहीं सिखाया था ।
ReplyDeleteबडी खुशी जानकर कि आपको भी किसी ने नहीं सिखाया ।
गुस्सा छोड़ो पीडी रायपुर आना ब्लाग ब्लाग खेलेंगे।
ReplyDeleteजियो रजा!
ReplyDeleteअनिल पुसदकर जी की बात पर ध्यान दिया जाए।
ReplyDeleteअभी खेलने के दिन है भई
बी एस पाबला
वाह वाह!
ReplyDeleteदे मारा!!!!
ReplyDeleteहमहु कुछ नयी खोजन में लगे हैं
ReplyDeleteकिताब का नाम किताब किसने रखा?
पेन कौन बुढऊ बनाये रहे सबसे पहले?
कविता नाम कौन ने रखा सबसे पहले?
और क किसने लिखना सबसे पहले?
सुकुल जी की किताब को फिर से लिखना है भाई…इ कबीर-तुलसी उलसी को झुट्ठो भाव मिल रहा है। अच्छा लिखने से का होता है? होता है पहिले लिखने से और नाम धरने से।
बढ़िया ! शुभकामनायें ..
ReplyDeleteare oye be poonchh ke bandar.
ReplyDeleteyaar too bhi is jhagde me shaamil ho gaya. maine to soch rakha tha ki prashant bacha hua hai, ab mujhe bhi is jhagde me koodna padega. tere sath.
Sachchi aur khari baat...
ReplyDeleteNeeraj
विचारों का सम्मान करता हूं...
ReplyDeleteब्लॉग को ब्लॉग ही रहने दो.. और हमको ब्लॉगर
ReplyDeleteसमझ से परे,
ReplyDeleteआपकी भी-ऊनकी भी।
बातें मेरी