Monday, October 12, 2009

ईश्वर बाबू

आज यूं ही अपने ई-मेल के इनबाक्स के पुराने मेल पढ़ते हुये कुछ कवितायें हाथ लगी, जिसे मैं यहां पोस्ट कर रहा हूं.. मुझे नहीं पता यह किसकी लिखी हुई है, मगर जिनकी भी है अगर उन्हें इस कविता के यहां पोस्ट करने से आपत्ति है तो कृप्या एक कमेंट अथवा ई-मेल के द्वारा सूचित करें.. तत्पश्चात इसे यहां से हटा लिया जायेगा..

ईश्वर बाबू

ईश्वर है
कि बस पहाड़ पर लुढ़कने से बच गये
बच्चे लौट आये स्कूल से सकुशल
पिता चिन्तामुक्त मां हंस रही है
प्रसव में जच्चा-बच्चा स्वस्थ हैं
दोस्त कहता है कि याद आती है
षड्यंत्रों के बीच बचा हुआ है जीवन
रसातल को नहीं गयी पृथ्वी अभी तक!

तुम डर से
भोले विश्वासों में तब्दील हो गये हो
ईश्वर बाबू!!!


ईश्‍वर जो गया फिर आया नहीं

ईश्वर
प्रायः आकर
मुझ पर प्रश्न दागता

मैं उसके प्रश्नों के सामने
सिर झुका लेता

...और मैं महसूस करता कि
ईश्वर कैसे गर्व से फूल जाता

और इस तरह उसका ईश्वरत्व कायम रह जाता!

एक दिन
ईश्वर के जाने के बाद
मुझे लगा कि मेरी गर्दन
सिर झुकाते-झुकाते दुखने लगी है

मुझे लगने लगा कि
एक जिंदा आदमी होने के नाते
मेरी सहनशक्ति जवाब देने लगी है

सो, इस बार जब ईश्वर आया
तब उसने प्रश्न किया
और मैंने उत्तर दिया

प्रत्युत्तर में
उसके पास प्रश्न नहीं था

वह चला गया
तब से नहीं आया

शायद मैंने उसका ईश्वरत्व भंग कर दिया था!!!


ईश्‍वर!

ईश्‍वर!
सड़क बुहारते भीकू से बचते हुए
बिल्‍कुल पवित्र पहुंचती हूं तुम्‍हारे मंदिर में

ईश्‍वर!
जूठन साफ करती रामी के बेटे की
नज़र न लगे इसलिए
आंचल से ढंक कर लाती हूं
तुम्‍हारे लिए मोहनभोग की थाली

ईश्‍वर!

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13 comments:

  1. उफ़्फ़ हाय एक तुम्हारा ई मेल अकाउंट है प्रशांत..जो इश्वर तक मालामाल करते हैं..एक अपना है ...रोजाना करोडों की लौटरी के मेल आते हैं...कम्बखतों ने धेला भी नहीं दिया..
    जिसकी भी कवितायें हैं..लिखी खूब हैं

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  2. क्या बात है प्रशान्त, आजकल बहुत दिनों तक गायब रहते हो? बहुत बिजी हो क्या?

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  3. गायब रहने का जुर्माना क्या? कविताएँ बहुत अच्छी हैं।

    ReplyDelete
  4. *भाई इन कविताओं से आज की हिन्दी कविता का एक ऐसा चेहरा बनता है जो आश्वस्त करता है कि कविता है और तमाम पर्तिकूलताओं के बावजूद रहेगी.

    * * जहाँ तक मेरी जानकारी है -
    पहली कविता निरंजन श्रोत्रिय की,
    दूसरी अरविन्द शेष की
    और तीसरी आकांक्षा पारे की है.
    तीसरी कविता यहाँ आपने पूरी नहीं दी है .

    *** इस ब्लाग के पाठकों की सुविधा ( आप अन्यथा न लेंगे ) के लिए पूरी पेश है-


    ईश्‍वर!
    सड़क बुहारते भीकू से बचते हुए
    बिल्‍कुल पवित्र पहुंचती हूं तुम्‍हारे मंदिर में

    ईश्‍वर!
    जूठन साफ करती रामी के बेटे की
    नज़र न लगे इसलिए
    आंचल से ढंक कर लाती हूं तुम्‍हारे लिए मोहनभोग की थाली

    ईश्‍वर!
    दो चोटियां गुंथे रानी आ कर मचले
    उससे पहले
    तुम्‍हारे शृंगार के लिए तोड़ लेती हूं
    बगिया में खिले सारे फूल

    ईश्‍वर!
    अभी परसों मैंने रखा था व्रत
    तुम्‍हें खुश करने के लिए
    बस दूध, फल, मेवे और मिठाई से मिटायी थी भूख
    कितना मुश्किल है अन्‍न के बिना जीवन
    तुम नहीं जानते

    ईश्‍वर!
    दरवाज़े पर दो रोटी की आस लिये आये व्‍यक्ति से पहले
    तुम्‍हारे प्रतिनिधि समझे जाने वाले पंडितों को
    खिलाया जी भर कर
    चरण छू कर लिया आशीर्वाद

    ईश्‍वर!
    नन्‍हें नाती की ज़‍िद सुने बिना मैंने
    तुम्‍हें अर्पण किये रितुफल

    ईश्‍वर!
    इतने बरसों से
    तुम्‍हारी भक्ति, सेवा और श्रद्धा में लीन हूं
    और
    तुम हो कि कभी आते नहीं दर्शन देने!!!

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  5. बढिया रचना प्रेषित की हैं।

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  6. मैं जानता हूँ ये कविताये महान कवी हलकट विद्रोही जी की लिखी हुई है.. पहले तो इन्हें यहाँ देखकर वे क्रोधित हुए पर बाद में मेरे समझाने पर उनका क्रोध शांत हुआ अब वो माँ तो गए है पर उनका कहना है कि उन्हें रोयल्टी दी जाए.. बस अकाउंट नंबर मैं तुम्हे एस एम् एस कर रहा हूँ.. ज़रा जल्दी कराना.. दिवाली का टाईम है..

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  7. @ अजय भैया - नहीं भैया, हमारा अकाऊंट भी ऐसे मेल से मालामाल रहता है.. मगर चंद इन कविताओं से भी हराभरा है..

    @ अवधिया जी - व्यस्तता से अधिक कुछ तबियत नासाज चल रही थी.. मगर अब ठीक हूं..

    @ दिनेश जी - जो हुकुम दें, मान्य होगा.. :)

    @ विवेक जी - धन्यवाद..

    @ शिद्धेश्वर जी - हम इन सब बातों को अन्यथा कभी ले ही नहीं सकते हैं जिसमें हमारा ज्ञान बढ़ रहा हो.. वैसे अंतिम कविता पढ़ते समय मुझे भी ऐसा लग रहा था कि कहीं कुछ छूट रहा है.. बहुत बहुत धन्यवाद उसे पूरा करने के लिये..

    @ परमजीत जी, अरविंद जी और पुसदकर जी - बहुत बहुत धन्यवाद..

    @ कुश - कहां भाई? अभी तक अकाऊंट नंबर नहीं भेजे.. हम तो इंतजार ही करते रह गये रात भर..

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  8. सच कभी खजाना हाथ लग जाता है कुछ ऐसा ही है। बहुत सुन्दर रचनाएं।

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  9. हाय!! ये ईमेल हमें क्यूँ नहीं आते. :)

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  10. आपको प्रस्तुत करने के लिये और सिद्धेश्वर जी को कवियो के नाम व पूरी कविता की स्क्रिप्ट के लिये धन्यवाद । मै सोच रहा था कि ईश्वर की कहानियों के रचयिता विष्णु नागर जी से पूछूँ ।

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