Friday, October 26, 2007

बैंगलोर-मैसूर यात्रा वर्णन (भाग दो)

मैं और विकास वहीं मैसूर में ठहर गये। वहां पहूंचते ही मैंने अपना हाथ-पैर धोया और बिस्तर पर लेट गया और थकावट ऐसी की लेटते ही नींद ने मुझे घेर लिया। अगले दिन हमलोग सुबह का नाश्ता खाकर बैंगलोर के लिये चल पड़े। इस बार हमदोनों ही रास्ते को जल्दी निपटाने के चक्कर में थे, सो बिना रूके लगातार लगभग 75KM मैंने बाईक चलाया। और जब हम आराम करने के लिए CCD में रूके तो मेरा पैर भी सीधा नहीं हो रहा था। हमने वहां कुछ खाया और वहां से विकास ने गाड़ी चलाने की कमान संभाली और सीधा बैंगलोर पहूंच कर ही दम लिया। चुकीं बैंगलोर के रास्ते हम दोनों के ही ज्यादा जाने पहचाने नहीं थे सो हम जिस रास्ते से मैसूर गये थे उस रास्ते में ना घुस कर दूसरे रास्ते से होते हुये शहर में हो लिये। अब हमारे पास रास्ता पूछ-पूछ कर घर पहुंचने के अलावा और कोई चारा नहीं था।



रास्ते में


मुझे बैंगलोर के रास्तों का विकास से ज्ञान था सो मैंने ये सोचा की अगर यहां से सीधा चंदन के घर का रास्ता पूछूंगा तो कोई भी सही-सही नहीं बता पायेगा। सो पहले लाल-बाग पहूंचा जाये, वहां से फोरम, वहां से बेलांदूर और वहां से मुझे चंदन के घर का रास्ता लगभग पता था। हमलोग पूछ-पूछ कर लाल-बाग पहूंचे और वहां से निमहंस के रास्ते से होते हुये फोरम पहूंच गये। लालबाग से फोरम का रास्ता मेरे लिये एक ऐसा रास्ता है जो जाना-पहचाना होते हुये भी अंजान सा है और वहीं कहीं मुझे कुछ ऐसे जाने-पहचाने मगर अनजान से चेहरे दिखे जिन्होंने यादों के कुछ ऐसे तारों को छेड़ दिया जिनसे अब बेसुरा सा राग निकलता है।



CCD के बाहर का नजारा


फोरम के पास पहूंच कर हमने सोचा की यहां आकर अपने उन दोस्तों से गालीयां नहीं खानी है जो वहीं आस-पास में रहते हैं, सो हमने उन्हें फोन करके बुला लिया और थोड़ी देर वहीं घुमे और उन्हें भी लेकर चंदन के घर पहूंच गये। इस बार रास्ते में तो बारिश नहीं हुई मगर बैंगलोर में आकर अगर बारिश में नहीं भींगे तो समझिये की बैंगलोर आना बेकार रहा। सो हमने फोरम से घर तक का रास्ता बारिश में भींग कर पूरा किया। और रात में वापस चेन्नई के लिये निकल लिये। मेरे पास बैंगलोर आने का तो टिकट था पर वापस जाने का टिकट नहीं मिल पाया था। मैंने सोचा की जेनेरल टिकट लेकर ट्रेन में बैठ जाउंगा और टिकट जांचकर्ता के आने पर उनसे टिकट बनवा लूंगा। यहां भी एक अच्छा अनुभव मिला जो ज्ञानदत्त जी के लिये भी रोचक होगा। मैं अपने इस अनुभव को अगले किसी पोस्ट में आपसे बाटूंगा। तब-तक के लिये अनुमति चाहूंगा।

2 comments:

  1. यह भी बढ़िया रहा. अब रेलयात्रा का विवरण के इन्तजार में हैं.

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  2. बहुत अच्छा। ट्रेवलॉग से आप ब्लॉग जगत के लेखन को समृद्ध कर अच्छा काम कर रहे हैं। साधुवाद।

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