वो रिक्त स्थान,
जो तुम्हारे जाने से पैदा हुआ था,
वो आज भी,
शतरंज के ३२ खानों की तरह खाली है..
कई लोग चले आते हैं,
उसे भरने के लिये,
मगर उन खानों को पार कर,
निकल जाते हैं,
उसी तरह जैसे शतरंज की गोटीयां..
जीवन की बिसात पर,
जैसे-जैसे बाजीयां आगे बढती है,
रिक्त स्थान बढता जाता है,
उसी तरह जैसे शतरंज का खेल..
और वो रिक्त स्थान बढता जाता है,
तुम्हारे द्वारा छोड़ा हुआ,
रिक्त स्थान..
बहुत उम्दा और गहरे विचार, बधाई.
ReplyDeleteवो रिक्त स्थान,
ReplyDeleteजो तुम्हारे जाने से पैदा हुआ था,
वो आज भी,
शतरंज के ३२ खानों की तरह खाली है..
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भैया, हम तो इस कॉंसेप्ट पर ही मुग्ध हो गये! जीवन संतृप्त हो तो प्ले का मौका कैसे हो। आधा खाली तो होना ही चाहिये!
विचार के लिये धन्यवाद।
बहुत ही सुन्दर, भावपूर्ण व गहरी कविता ! इतनी सी उम्र में यह गहराई ! पढ़कर बहुत अच्छा लग रहा है । संयोग से मैं भी इस ही रिक्त स्थान .. वॉइड की बात दो एक दिन पहले एक मित्र से कर रही थी ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
ये आप सबों की दुवाओं का ही असर है जो आप यहां अपनी टिप्पणीयों के द्वारा दे रहें हैं..
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