आज यूं ही कुछ कविताओं की बातें रही थी तो मेरी एक मित्र ने मुझे एक कविता इ-पत्र के द्वारा भेजा, जो मुझे कुछ अच्छी लगी उसे यहां डाल रहा हूं। मगर पोस्ट करने से पहले मैं अपने मित्र का परिचय देना चाहता हूं। उसका नाम है नेहा। ये मेरे साथ MCA में थी और अभी Bangalore में कार्यरत है।
वैसे ये कविता उसकी भी लिखी हुई नहीं है, ये उसने कहीं पढी थी और उसे पसंद आयी थी सो उसने मुझे पढने के लिये भेजा था।
धुआं था धुन्ध थी दिखता नही था
तभी तो आपको देखा नही था....
मिला ना वह जिसे चाहा था मैंने
मिला है वह जिसे चाहा नही था....
मैं क्यों ना छोड़ देता शहर उनका
किसी के अश्क ने रोका नही था...
दर्द था तड़प थी प्यास थी जलन थी
सफर मे मैं कभी तनहा नही था...
वह दूर हैं मुझसे तो कुछ नही है पास
वह पास थे मेरे तो क्या कुछ नही था...(अज्ञात)
मैं इधर बहुत दिनों से ज्यादा कुछ अपने चिट्ठे पर नहीं लिख रहा था पर अभी मेरे पास बहुत सारा सामान परा है जिसे मैं बहुत जल्द ही आपके सामने रख दूंगा। 2-3 पोस्ट तो मेरे ड्राफ्ट में सुरक्षित है जिसे जल्द ही पोस्ट कर दूंगा।
यह भी बढ़िया रहा आपकी मित्र का कलेक्शन.
ReplyDeleteअब आपका इन्तजार है. आईये.
नेहा की समझ अच्छी है। उन्हे लिखने को भी कहें।
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