५ गाडियाँ
१० लोग
रास्ता बंगलोर-मैसूर हाइवे
दूरी ३७५KM(चंदन की गाड़ी से मापी हुयी)
(सबसे पहले: ये पोस्ट कुछ ज्यादा ही लम्बी हो गयी है जिसके लिये मैं क्षमा चाहूंगा। पर मैं इसमें कुछ कांट-छांट नहीं सकता था।)
इस बार मेरे कुछ दोस्तों ने मैसूर में साप्ताहांत मनाने का सोचा था और उन्होंने बैंगलोर जाने के लिये रेल आरक्षण पहले ही करवा रखा था। मेरा पहले जाने का मन नहीं था पर अचानक से मैंने भी जाने का फ़ैसला कर लिया। अब टिकट कि व्यवस्था करना वो भी सप्ताहांत में और वो भी ऐसे समय में जबकि मैसूर का दशहरा जग-प्रसिद्ध हो, ये लगभग आसमान से तारे तोड़ कर लाने जैसा है। खैर ये आसमानी तारा मैंने नहीं मेरे ट्रेवेल एजेंट ने तोड़ा और अंततः मेरे हाथ में बस का टिकट दे दिया। बैगलोर मे पहले हम सभी को चंदन के घर पर एकत्रित होना था और वहां से मैसूर के लिये निकलना था। विकास और उसके साथ मेरे दो अन्य मित्र भी अहले सुबह चंदन के घर पहुंच गये और मैं वहां ठीक 7 बजे सुबह में पहुंचा। थोड़ी देर बाद शिरीष भी आ गया, फिर हमलोगों ने सुबह का नाश्ता बनाया और खा पी कर निकले। अभी तक हमलोग 6 थे और हमारे पास दो मोटरसाईकिल थी और एक स्कूटर था। आगे जाकर हमारे कालेज के समय के चार और मित्र जुड़ने वाले थे और उनके पास दो मोटरसाईकिल थी। यहां से हमारा सफर शुरू हुआ था मैसूर का।
मैं सबसे दाहिने तरफ विकास के साथ अपनी नई मूछों में
हमने लगभग 11:30 के समय में अपनी यात्रा शुरू की थी और हमारा सोचना था की ज्यादा से ज्यादा 4 घंटे लगेंगे हमें वहां तक पहुंचने में, पर हमलोग इतने आराम से जा रहे थे कि मैसूर पहुंचते-पहुंचते हमें शाम के 5:30 हो गये। रास्ते में कुछ दिलचस्प घटनाऐं घटी जिसके बारे में मैं यहां लिखना चाहूंगा।
शुरूवात में मैं चंदन की नई मोटरसाईकिल 'पल्सर' को चला रहा था और जहां से बैंगलोर मैसूर हाइवे शुरू होता है वहां मैं शिरीष के पीछे बैठ गया। कुछ दूर आगे जाकर हमने आर.वी.इंजीनियरिंग कालेज के सामने बहुत पूरानी कारों का जखीरा लगा हुआ था जो बहुत ही अच्छा लग रहा था, शायद किसी उत्सव के लिए सभी आए होंगे। हम उसकी तस्वीर नहीं ले पाये, हमें इसका डर था की कहीं हम पीछे ना हो जायें। 15-20 मिनट के बाद हल्की बारिश शुरू हो गयी और हमने एक जगह देख कर गाड़ियां रोक दी, अपना जैकेट और विंड चीटर निकाल कर पहने और फ़िर से गाड़ियां बदल कर आगे को बढ चले।
कुछ दूर आगे जाने पर हमें चिंता हुई की बाकि लोग हमसे आगे हैं या पीछे और फिर शुरू हुआ फोन करने का शिलशिला। कुछ लोग कह रहे थे की हम HP वाले पेट्रोल पंप के पास हैं, तो कुछ लोग CCD(Cafe Cofy Day) के पास, पर सबसे बड़ी मुसीबत यह थी की शिरीष को छोड़कर और किसी को मैसूर हाईवे के रास्तों का पता नहीं था। कुछ लोग आगे थे और कुछ लोग पीछे और हमें ये समझ में नहीं आ रहा था की हम आगे हैं या पीछे। खैर जो भी था, था बहुत ही मजेदार। :) इस तरह लोगों को ढूंढते-ढूंढते हमलोग अपना समय बरबाद करते चले गये।
अब तक खाना खाने का समय हो चुका था और हमलोग CCD से बहुत आगे आ चुके थे और आस-पास जो भी खाने का होटल जैसा दिख रहा था और वहां जो भी मिल रहा था उसका नाम भी हमने नहीं सुना था और जिसका नाम हमने सुना था (Curd Rice) वो हमे खाना नहीं था। इस तरह हम होटल को खोजते हुये आगे बढते चले गये। हमलोग चल रहे थे और मेरे पीछे बैठी मेरी मित्र अपनी फोटोग्राफी का शौक पूरा कर रही थी। तभी हल्की बारिश शुरू हो गयी और हमें ठंड भी लग रही थी। पास में एक छोटा सा कस्बा जैसा कुछ दिखा और हमलोगों ने वहां चाय ली और बारिश के रूकने पर फिर गाड़ियां और सवारियां बदल कर आगे को बढ चले।
रास्ते में
इस बार मैं श्तोदी की गाड़ी चला रहा था। थोडी दूर जाकर अचानक से बहुत तेज बारिश शुरू हो गयी, जिससे हम बच नहीं पाये। उस समय मेरे साथ मेरी एक मित्र पीछे बैठी हुयी थी और उसे बहुत तेज ठंड लग रही थी। मैंने देखा कुछ दूरी पर विकास रूक कर इंतजार कर रहा था और वहां बरिश से बचने के लिये एक जगह भी बना हुआ था। अब-तक हम लोग मैसूर से लगभग 25-30KM दूर थे। फिर भी हमें रूकना पड़ गया। हम आठ लोग वहां रूके हुये थे और हमारे दो मित्र आगे बढ चुके थे, और उनका कहना था की आगे बारिश बिलकुल भी नहीं हो रही थी। बारिश के कुछ कम होने पर हमलोग आगे बढ चले। फिर भी हमलोग लगभग पूरी तरह भींग चुके थे और मैसूर के हल्के ठंडे मौसम में हमें ठंड भी लग रही थी। उस समय एक पल के लिये हम ये भी सोचने लगे कि इससे अच्छा तो किराये की कोई गाड़ी लेकर आना चाहिये था। मगर एक बार मैसूर पहूंच कर इस तरह के सारे विचार हवा हो गये।
मुझे अभी भी याद है की कैसे मेरे पीछे बैठी मेरी मित्र मैसूर पहूंचने के उत्साह से लगभग चीख उठी थी। "Yes, we reached Mysoor. हमलोग आगये। वो देखो मैसूर लिखा हुआ है।" :)
रात के समय मैसूर का महल
वहां से हमलोग इंफोसिस कैंपस चले गये जहां हमारे कुछ मित्र हैं। वहीं खाना खाये। शिरीष भी पहले वहीं मैसूर के इंफोसिस कैंपस में था सो उसे मैसूर के रास्तों का पूरा ज्ञान था। फ़िर मैं और विकास ने उस रात वहीं विकास के ममेरे भाई के यहां रूकने का निर्णय किया और बाकी लोग मैसूर का महल देख कर वापस चले गये। अगले दिन शिरीष का जन्मदिन था, वे लोग वहां पहूंच कर उसके जन्मदिन का केक काटे, और पूरी तरह से थकावट से चूर होकर सो गये। मैं और विकास कैसे वापस लौटे इसकी कहानी कुछ और ही है जिसे मैं अगले पोस्ट में लिखूंगा।
बढ़िया रहा भाई आपके साथ घूमना. मैसूर महल की तस्वीर धांसू आई है.
ReplyDeleteट्रेवलॉग लिखना और पढ़ना - दोनो बहुत मजा देता है।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद मित्र।
पढ कर अच्छा लगा. लगा काश मेरी भी यह सब करने की उमर होती!
ReplyDeleteआजकल मै़ अपने दफ्तर से बाहर हूँ व जाल की सुविधा न के बराबर है. अत: टिप्पणिया़ कम हो पा रही हैं. लेख पहले से लिख लिये थे अत: सारथी पर नियमित छप रहे है -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
आपकी इस छोटी सी दुनिया में आकर अच्छा लगा
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