अभी थोड़ी देर हुये जब बीबीसी के हिंदी ब्लौग पर सलमा जैदी जी को पढ़ा, जिन्होंने नये साल में मिले ग्रीटिंग कार्ड को लेकर अपनी खुशी जाहिर की है.. और यह संयोग ही है कि आज ही मेरी प्यारी बहन और उतनी ही प्यारी मित्र स्नेहा का नये साल का ग्रीटिंग कार्ड के साथ हस्तलिखित खत भी मिला है..
उस पर भी तुर्रा यह कि खत पूरी तरह से अंग्रेजी में नहीं है, बल्कि हिंदी और अंग्रेजी का मिश्रण है.. जिसकी उम्मीद मुझे तो बिलकुल नहीं थी.. नहीं तो हस्तलिखित देवनागरी देखे ही जमाना बीत गया है(पिछली बार जब फुरसतिया जी चेन्नई यात्रा पर थे तब उन्होंने दो किताबें उपहार में मुझे दी थी, जिसपर उन्होंने देवनागरी में लिखा था..)
खैर फिलहाल तो मैं वह खत फिर से पढ़ रहा हूं.. ये कुल जमा चौथी बार है उसे पढ़ते हुये.. इससे पिछली दफ़ा मुझे हाथों से लिखा खत मेरी मित्र अर्चना ने भेजा था जब वह मेरे लिये यूएस से आई-पॉड लायी थी और फिर उसे मुंबई से चेन्नई कूरियर की थी..
इस ई-मेल के जमाने में आपको आखिरी हस्तलिखित खत कब मिला था? :)
नम्मा चेन्नई!!!!मुझे कई लोग मिले हैं जो मुझे चेन्नई शहर से प्रेम करते देख मुझे ऐसे देखते हैं जैसे कोई अहमक हूँ मैं.. बहस करने वाले भी कई मिले हैं जो यह गिनाने को आतुर…Read More
किस्सों में बंधा एक पात्रहर बार घर से वापस आने का समय अजीब उहापोह लिए होता रहा है, इस बार भी कुछ अलग नहीं.. अंतर सिर्फ इतना की हर बार एक-दो दिन पहले ही सारे सामान तैयार रखता थ…Read More
समय बड़ा बलवान हो भैया!!जैसे-जैसे समय भागता जा रहा है, ठीक वैसे-वैसे ही मायूसी भी बढ़ती जा रही है.. लगता है जैसे दोनों समानुपाती हैं.. डर लगता है, कहीं मायूसी डुदासी का और उदा…Read More
ड्राफ्ट्स१:"आखिर मैं कहाँ चला जाता हूँ? अक्सर कम्प्युटर के स्क्रीन पर नजर टिकी होती है.. स्क्रीन पर आते-जाते, गिरते-पड़ते अक्षरों को देखते हुए भी उन्हें नहीं द…Read More
तबे एकला चलो रे।यह लड़ाई किससे है? कैसा है यह अंतर्द्वंद? लग रहा है जैसे हारी हुई बाजी को सजा रहा हूँ फिर से हारने के लिए । अंतर्द्वंद में कोई भी मैच टाई नहीं होता है,…Read More
अरे प्रशांत पहले क्यों नहीं बताया भाई, चलो अपना पता दो और तैयार रहो, अमा चार छ तो मैं ही भेज दूंगा, पर पोस्ट कार्ड , यार उसी पर लिखने की आदत हो गई है , अभी भी पता नहीं कितने लिख मारता हूं,और ग्रीटिंग कार्ड तो मत पूछो यार पिछले दो साल से नहीं भेजता, जानते हो क्यों सर्दी की छुट्टियों में अपने हाथ से बनाता था , बहुत ही सुंदर और मजेदार, मगर हमारे दोस्त उसके पहुंचने की खबर भी जून में कभी फ़ोन करते थे तो देते थे ....अब बताओ क्या करता ,वैसे बात तो सच है तुम्हारी
याद करने की कोशिश करता हूं पर याद नहीं आता .कुछ दिन पहले फार्मा इंडस्ट्री वाले कई सारे ग्रीटिंग लेकर आये थे बोले "सर "नए साल में किसी को भेजने हो ...मैंने कहा नहीं भाई .एस एम् एस की बेगारी बहुत है....अब तो लगता गई इश्क का इज़हार भी लिखे से नहीं होता होगा....
हमें तो इतना याद है कि शादी के पहले और थोड़े दिनों बाद तक अपनी पत्नी को ही प्रेमपत्र भेजते थे जो कि हस्तलिखित होते थे नहीं तो उसके बाद तो सब ईमेल में बदल गया है।
सही कह रहे हो, यह अब दुर्लभ वस्तु होता जा रहा है. हमारा एक मित्र भातर में है जो अब भी हमें हस्त लिखित खत भेजता है और हम उसे....
ReplyDelete--
’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
अरे प्रशांत पहले क्यों नहीं बताया भाई, चलो अपना पता दो और तैयार रहो, अमा चार छ तो मैं ही भेज दूंगा, पर पोस्ट कार्ड , यार उसी पर लिखने की आदत हो गई है , अभी भी पता नहीं कितने लिख मारता हूं,और ग्रीटिंग कार्ड तो मत पूछो यार पिछले दो साल से नहीं भेजता, जानते हो क्यों सर्दी की छुट्टियों में अपने हाथ से बनाता था , बहुत ही सुंदर और मजेदार, मगर हमारे दोस्त उसके पहुंचने की खबर भी जून में कभी फ़ोन करते थे तो देते थे ....अब बताओ क्या करता ,वैसे बात तो सच है तुम्हारी
ReplyDeleteवाकई, हाथ से लिखना बहुत कम हो पाता है। चिट्ठियाँ तो नदारद सी हो गई हैं।
ReplyDeleteब्लॉग जगत में आने के बहाने हिन्दी लिखने लगे वरना लगभग छूट ही गया था.
ReplyDeleteयाद करने की कोशिश करता हूं पर याद नहीं आता .कुछ दिन पहले फार्मा इंडस्ट्री वाले कई सारे ग्रीटिंग लेकर आये थे बोले "सर "नए साल में किसी को भेजने हो ...मैंने कहा नहीं भाई .एस एम् एस की बेगारी बहुत है....अब तो लगता गई इश्क का इज़हार भी लिखे से नहीं होता होगा....
ReplyDeleteसच है अब हस्तलिखित खत नही के बराबर ही रह गए हैं.....अब तो हमारी गली मे डाकिया भी बहुत कम ही नजर आता है....
ReplyDeleteपहले कबूतर गये अब चिठीय़ भी आउट आफ फैशन हो रही हैं । मगर चिठी जैसा आनन्द मेल मे नहीं है। धन्यवाद्
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार एवं नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं
पिछली बार... हम्म... शायद २००४ में ! तब से तो नहीं आया कोई.
ReplyDeleteहमें तो इतना याद है कि शादी के पहले और थोड़े दिनों बाद तक अपनी पत्नी को ही प्रेमपत्र भेजते थे जो कि हस्तलिखित होते थे नहीं तो उसके बाद तो सब ईमेल में बदल गया है।
ReplyDeleteचेक पर साईन करने के अलावा पेन से लिखना बहुत कम हो गया है.. कहाँ ले गए यार...
ReplyDeleteपता भेजो हम लिखेंगे कभी चिट्ठी।
ReplyDelete