Monday, January 18, 2010

ख्यालातों के अजीब से कतरन

रात बहुत हो चुकी है, अब सो जाना चाहिये.. कहकर हम दोनों ने ही चादर को सर तक ढ़क लिया.. वैसे भी चेन्नई से बैंगलोर जाने वाले को ही समझ में आता है कि सर्दी क्या होती है, और अगर किसी तमिलियन को सर्दी के मौसम में दिल्ली भेज दो तो जिंदा या मुर्दा, मगर अकड़ा हुआ शरीर ही वापस आयेगा..

यूं तो कुछ दिन पहले भी बैंगलोर गया था.. उसी मित्र के यहां ठहरा था.. अमूमन इससे पहले मैं अपने कालेज वाले मित्र के घर ठहरता था, मगर पिछले दो-तीन बार से कालेज से बहुत पहले के जमाने के मित्र के घर ठहर रहा हूं..

चादर से थोड़ी देर बाद सर निकाल कर फिर एक नई बात निकल आती है, और हम दोनों ही उचक कर बैठ जाते हैं.. कौन मित्र कहां है? अभी कौन क्या कर रहा है.. जिंदगी में अभी तक क्या-क्या झेला है.. कुछ ऐसे मित्र जो अच्छे या बुरे थे.. एक तरह का गौसिप ही समझ लें.. बात निकल आती है..

मेरे कालेज के मित्र अक्सर मुझसे कहते हैं कि तुम अक्सरहां बहुत रिजर्व रहते हो, और अपना इमेज कुछ ऐसा बना लेते हो कि कोई कुछ कहने-पूछने में भी तुमसे डरने लगता है.. मगर वे यह नहीं जानते हैं कि जो मेरी जिंदगी में खुद अपनी जगह बनाते चले जाते हैं, उन्हें मैं कभी रोकता नहीं हूं.. मेरे बहुत कम और गिने-चुने ऐसे ही दोस्तों, जो पूरे अधिकार से मुझे कुछ भी कह-सुन लेते हैं, इन में से एक यह भी है.. रविन्द्र.. इसके अलावा कुछ और नाम सोचता हूं तो, एक विद्योतमा(रूबी) थी(अब कहीं इस दुनिया में खो गई है, पता नहीं कहां और कैसी होगी).. स्वाति थी(उसका भी कुछ पता नहीं).. एक मनोज है.. शिल्पी.. विकास को इसमें नहीं रखता हूं, उसे मैंने खुद बिना स्पेस मांगे मैंने दे दिया है.. सो इस लिस्ट में वह नहीं है.. शायद बस इतना ही..

सोचने की बिमारी बहुत पुरानी है.. किसी से कुछ कह दिया, तो उसके बारे में सोचता हूं.. किसी ने कुछ कह दिया, तो खूब सोचता हूं.. किसी ने कुछ नहीं कहा, तब भी सोचता हूं.. रिश्तों की बात आती है, चाहे वह खून का रिश्ता हो या फिर दोस्ती का, तब सोच-सोच कर पगला ही जाता हूं.. पुराने दिनों को भी खूब याद करता हूं.. अच्छे पल भी याद आते हैं, बुरे पल भी.. मगर कमबख्त याद बेहिसाब आते हैं.. वो शहर भी याद आता है.. वह लड़की भी याद आती है.. उसके घर को जाने वाली गली याद आती है, राजेन्द्र नगर रोड नंबर दो.. वह गीत भी याद आता है, जिसे सुनकर वह रो दी थी.. लगता है जैसे कुछ बदलना है पीछे जाकर.. अपनी कुछ गलतियां सुधारनी है.. मगर आगे आने वाली गलतियों का क्या? क्या उसे कोई माफ़ करेगा? क्या मैं उनकी गलतियों को माफ करूंगा? कहना आसान होता है, मगर करना मुश्किल..

अब नौस्टैल्जिक होना बेवकूफी कहलाती है.. और जरूरत से अधिक ईमानदार होना दूसरे के मन में शक पैदा करता है.. किसी का जरूरत से अधिक ख्याल कर जाता हूं तो अगले ही पल यह डर बैठ जाता है कि इससे कहीं वह इरीटेट तो नहीं हो गया होगा/होगी? तकलीफ में हूं, मगर जैसे ही कोई चैट बाक्स ऊछलकर सामने आ जाता है वैसे ही एक स्माईली बना देता हूं और सामने वाला समझता है कि बंदा बहुत खुश है.. उसकी स्माईली देखकर मुझे भी उसकी खुशी से ईर्ष्या होती है..

आज ही विकास का भेजा एक मेल पढ़ा जिसमें ग्राफ बना कर समझाया हुआ था कि इंटरनेट पर लोग अधिक ईमानदारी दिखाते हैं.. मन में आया कि जैसे जैसे संवाद एकतरफ़ा होता जाता है वैसे-वैसे ही ईमानदारी का लेवल भी बढ़ता जाता है.. पहले फोन फिर एस.एम.एस. और अब इंटरनेट ईमानदारी का पैमाना बन गया है.. सच भी है, नहीं तो इतनी रात गये कौन मेरी इस ईमानदारी से लिखी बातों को सुनेगा..

"याद है, पहले दिन बी.सी.ए. में तुम्हारे साथ तुम्हारे कालेज गया था.. उसे देखकर मैंने कहा था कि अगर यहां पर कोई तुम्हारे लायक है तो वह वही है.. और कोई उसके लायक है तो वह तुम ही हो.." रविन्द्र मुझसे कहता है.. मैं आगे जोड़ देता हूं, "और मैंने कहा था कि, तुझे जहां कोई खूबसूरत लड़की दिखी नहीं कि बस वहीं चालू हो जाते हो.." आज से नौ साल पहले हुये इस बात को याद करके दोनों ठहाके लगाते हैं.. फिर एक चुप्पी छा जाती है.. लगभग दस मिनट बाद मैं अपने मोबाईल पर गाना बजाने लगता हूं.. "तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे.." लाता की आवाज कानों में मिश्री घोलने लगती है.. आधे मिनट बाद रविन्द्र कह उठता है.. काश जिंदगी को रिवाईंड कर पाते.. बीच में रविन्द्र बोलता है, "अबे तुम खुद तो सेंटी हो ही रहे हो, मुझे भी सेंटी कर रहे हो.." मैं अनसुना कर जाता हूं और आंखे बंद कर अपनी जिंदगी रिवाईंड करने लग जाता हूं..

होस्टल में रात भर जागकर गौसिप कर रहा हूं दोस्तों के साथ.. बैंगलोर में मुझसे मिलने के लिये वह आयी थी और उसका चेहरा खिला हुआ था.. विकास के साथ पहली बार बैंगलोर गया था.. उसके गोद में सर रख कर लेटा हुआ हूं और वह तिनकों से मेरे कान में गुदगुदी कर रही है.. रविन्द्र के साथ पटना की सड़कों पर गाड़ी दौड़ा रहा हूं.. मनोज को लेकर घर में बिना बताये "गांधी सेतू" पर पर स्कूटर दौड़ा रहा हूं.. शिल्पी मुझे पहली बार राखी बांधते कितनी इमोशनल हो गई थी.. रविन्द्र उसे लेकर कालेज के पहले दिन कितना चिढ़ा रहा है और मैं रविन्द्र को गरिया रहा हूं.. चक्रधरपुर के स्कूल में खो-खो खेल रहा हूं.. दीदी-भैया से लड़ाई कर रहा हूं.. मम्मी के डांटने पर मम्मी के ही पल्लू में छिपने की कोशिश कर रहा हूं.. पापा के गोद में सिमट कर सो रहा हूं और पापा जी मुझे कोई कविता या कहानी सुना रहे हैं..

बस यहां तक आने पर मन को सुकून मिल जाता है और नींद आने लगती है.. कड़वे पलों को याद करने का मन नहीं था उस वक्त.. किसी ने सच ही कहा है कि, "जिन्हें नींद नहीं आती वह अपराधी होते हैं.." आज फिर जाने कैसे अपराधबोध मन में लिये अभी तक जाग रहा हूं..

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18 comments:

  1. मेरा एंटीना जितना भी पकड़ पा रहा है , अपने ईमानदारी से अपने विचार को अभिव्यक्ति दी है और यह एक अच्छा गद्य है।, साहित्य के नजरिए से।

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  2. बड़े खुशकिस्मत हैं आप....भई..... इस सर्दी में चादर ओढ़ रहे हैं..... यहाँ लखनऊ में तो दो रज़ाई ओढनी पड़ती है...... संस्मरणात्मक रूप से यह पोस्ट बहुत सुंदर व अच्छी लगी.....

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  3. कल ही सोच रहा था यह नोस्टाल्जिया शब्द आजकल सुनाई क्यों नहीं देता

    दिल तो बच्चा है जी
    मन का सच्चा है जी

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  4. बढ़िया कतरन..... PD

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  5. नींद आने के पहले चलने वाली यादों की ये फिल्म, कमोबेश एक सी ही होती जाती है हर रात. खुशकिस्मत हो दोस्त...इतनी सारी अच्छी यादें निकल लेते हो जिंदगी के खजाने से.

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  6. कौन कम्बखत कहता है के नींद जिसको नहीं आती वे अपराधी होते है...हॉस्टल तो रात भर जागते मिलते है ..खैर इन दिनों यहाँ एक रजाई के ऊपर कम्बल लपेटना पड़ता है ओर फिर रिमोट को ढूंढना .....

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  7. अब नौस्टैल्जिक होना बेवकूफी कहलाती है.. और जरूरत से अधिक ईमानदार होना दूसरे के मन में शक पैदा करता है.. किसी का जरूरत से अधिक ख्याल कर जाता हूं तो अगले ही पल यह डर बैठ जाता है कि इससे कहीं वह इरीटेट तो नहीं हो गया होगा/होगी? ..पोस्ट की सबसे टची लाइन। मुझ पर इसका असर रहेगा लेकिन मेरी मां अगर पोस्ट को पढ़ेगी तो यही कहेगी- येही सब अलाय-बलाय कोढ़ा-कपार सोचो। इ नहीं घर-दुआर से दूर हैं तब मन-मारकर काम पर ध्यान दें।.

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  8. बहुत ईमानदार हो मियाँ

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  9. एक लाइन और जोड़ देते 'आपको सेंटी कर रहा हूँ' :)

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  10. और नींद ना आने वाली बात से तो हम बहुत बड़े अपराधी हुए !

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  11. सुन तेरा नाम मैं नॉस्टेलजिया रखने वाली हूँ...!


    अभी आज ही सवा चार बजे सोई हूँ...

    अगर किसी तमिलियन को सर्दी के मौसम में दिल्ली भेज दो तो जिंदा या मुर्दा, मगर अकड़ा हुआ शरीर ही वापस आयेगा..

    वहाँ जब अक्टूबर में सर्दी के लिये लकड़ी इकट्ठा करते किसी को देखा तो हँस के पूँछा था "अलाव जलाने का शौक है क्या ??" :)

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  12. ईमानदारी से लिखी पोस्ट और उस पे ईमानदारी से की गयी टिप्पणियाँ...अच्छा लगा,आपकी यादों की गलियों में आपके साथ घूमना....कमो बेश सबकी यादें इक सी ही होती हैं.और शायद सब पढने-लिखने वाले नींद के अपराधी बन ही जाते हैं...इस इन्टरनेट ने तो जबरन ही बना डाला है.....पर सबसे मजा आया...ये रजाई,कम्बल की दास्तान सुन...हम तो मुंबई में पंखा चला रहें हैं..:)

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  13. आपके इस संस्मरण ने अपनी जिन्दगी भी कुछ हद्द तक रिवाइंड कर दी ....हॉस्टल की मस्ती और दोस्तों के साथ लम्बी बातें काश वो दिन लौट आते

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  14. बहुत दिनों बाद तुम्हें पढ़ रहा हूँ। बहुत अच्छा लिखा है बहुत ईमानदारी से लिखा है। सुंदर भी और सत्यम भी ...

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  15. प्रशांत भाई, मैंने बहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट पढ़ी..
    पढ़ के बड़ा ही आनंद आया, बहुत ही अच्छा लिखा है..
    सायद मुझमे और आपमें कुछ सामानतायें भी हैं,
    ऐसा मुझे लगा..

    और हाँ, अगली बार जब भी बंगलोर आओ मुझसे मिले बिना जाना नहीं..

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  16. वाह भई बहुत बढ़िया

    वाकई अगर चैन्नई वाला बंदा दिल्ली चला जाये तो अकड़ा हुआ ही वापस आयेगा। :)

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  17. कुछ बातें दिल को छूं गई और मैं भी इन बातों से इत्तेफाक रखता हूँ जैसे
    "जरूरत से अधिक ईमानदार होना दूसरे के मन में शक पैदा करता है"
    "जिन्हें नींद नहीं आती वह अपराधी होते हैं.."
    क्या सच मैं दोस्ती और दोस्ती के ये तरीके सर्वमान्य है ?? मैं अपने दोस्त बसली के साथ अगर रहूँ तो भी शायद यही सीन होता .. चादर ओडे हुए ,कालेज के दिनों कि यादें ,वो तेरी वाली या मेरी वाली ,अँधेरे कमरे में भावनाओं का समंदर में उफान लाती जगजीत सिंह की ग़ज़ल " तमन्ना फिर मचल जाए अगर तुम मिलने आ जाओ" सच में जिन्दगी काफी देती हैं हमको बस महसूस करने की बात भर है ..खून के रिश्तों के अलावा जिन्दगी ने कुछ ऐसे रिश्ते दिए जिसने ईश के दर्शन करवा दिए ,चाहे वो प्रक्टिकल लैब में साथ में बैठी लडकी हो ,उस पहाडी शहर में घुमावदार सड़क के किनारे पडी बैंच पर अपने हाथों की उष्मा मेरे हाथों में देती वो खूबसूरत इंसान हो ,चाहे खामोशी के मीठेपन का अहसास कराते कुछ परम मित्र हो , या चाहे रोज अपने ,अपनेपन के अहसास की भीनी सुगंध देने वाला वो अनजान चेहरा जो कई मीलों की दूरी को चंद लम्हों में सरपट पार कर देती हो !
    सच में जिन्दगी बहुत देती है !!

    Nice Writeup ..
    Nostalgic ...grrr :)

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  18. लिखते हो या दिल चीड के रख देते हो ?

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