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आजकल निज़ार कब्बानी जी की कविताओं में डूबा हुआ हूँ. अब उर्दू-अरबी तो आती नहीं है, सो उनकी अनुवादित कविताओं का ही लुत्फ़ उठा रहा हूँ जो यहाँ-वहाँ अंतरजाल पर बिखरी हुई है. उनकी अधिकांश कवितायें अंग्रेजी में अंतरजाल पर ढूंढ कर पढ़ी और कुछ कविताओं का हिंदी अनुवादित संस्करण सिद्धेश्वर जी के कर्मनाशा एवं कबाड़खाना पर पढ़ने को मिली. एक प्रयास मैंने भी किया अनुवाद करने का, यह संभव है की यह पहले से ही अनुवादित हो हिंदी में, मगर ढूँढने पर भी मेरी नजर में नहीं आया. फिलहाल आप सब से इसे साझा कर रहा हूँ. यहाँ शीर्षक भी मेरा ही दिया हुआ है. मूल कविता का शीर्षक I conquer the world था. अगर कहीं कुछ खोट हो तो आप विद्वजनों से सुधार की उम्मीद भी करता हूँ.
हार-जीत
मैंने जीता है दुनिया को
अपने शब्दों से
जीता है अपनी मातृभाषा को
संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण एवं वाक्यविन्यासो से.
मैंने मिटा दिया अस्तित्व
उन शुरुवाती क्षणों का
और धारण किया शरीर, एक नई भाषा का
जिसमें सम्मिलित हैं -
जल-संगीत एवं अग्नि का दस्तावेज
मैंने प्रकाशित किया है, अगली पीढ़ी को
और रोक दिया है समय को उन आँखों में
और मिटा दिए हैं उन सब लकीरों को,
जो हमें जुदा ना कर सकें
आज, इसी क्षण से...
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mul kavita kaa link dae chahey english kaa hi kyun naa ho us sae translation ko smajhna aasan hoga
ReplyDeletemul kavita kaa link dae chahey english kaa hi kyun naa ho us sae translation ko smajhna aasan hoga
ReplyDeleteबहुत सुन्दर | धन्यवाद|
ReplyDeletejnaab yeh hunar hme bhi sikhaa do .akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteकिसी को शब्द में समेटने की चाह, न जाने कितने पक्ष छोड़ आती है।
ReplyDeleteपढोगे लिखोगे तो होगे खराब ,
ReplyDeleteअब बियाह काहे नय करते हो नवाब ....
पढते रहो , पढाते रहो ...
खूबसूरत
बहुत खूब.
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteवाह रचना जी.. वाह..
ReplyDeleteमैं बस अभी दफ्तर से लौटा और आपका सुबह का कमेन्ट भी देखा और ये कमेन्ट भी.. :)
दफ्तर में आज Gmail में कुछ दिक्कत आ रही थी.. सो दिन में नहीं देख पाया.. :(
चर्चा-मंच पर हैं आप
ReplyDeleteपाठक-गण ही पञ्च हैं, शोभित चर्चा मंच |
आँख-मूँद के क्यूँ गए, कर भंगुर मन-कंच |
कर भंगुर मन-कंच, टिप्पणी करते जाओ |
प्रस्तोता का करम, नरम नुस्खा अपनाओ |
रविकर न्योता देत, द्वार पर सुनिए ठक-ठक |
चलिए रचनाकार, लेखकालोचक-पाठक ||
शुक्रवार
चर्चा - मंच : 653
http://charchamanch.blogspot.com/
सर्वप्रथम नवरात्रि पर्व पर माँ आदि शक्ति नव-दुर्गा से सबकी खुशहाली की प्रार्थना करते हुए इस पावन पर्व की बहुत बहुत बधाई व हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteजो हमें जुदा ना कर सकें
आज, इसी क्षण से...
मांगता हूँ तेरे से दुआ ऐ ख़ुदा।
मानव से मानवता कभी हो न ज़ुदा॥
बेहतरीन रचना का सुंदर अनुवाद्…।