उसके भोले मन और विश्वास का एक और उदाहरण कल देखने को मिला, जब वो shoe rack पर अपने जूते ढूँढ रहा था तो उसके एक पैर का जूता उसे मिल गया और दूसरे का नहीं मिला तो उसने कहा
"दादू बन्तल दादू बन्तल केतू का दूता आ दा"
मगर जूता वहाँ होता तब तो आता तो उसने कहा
"अले नहीं आया",
फिर उसने वही दोहराया
"दादू बन्तल दादू बन्तल केतू का दूता आ दा",
फिर जब नहीं आया तो उसने फिर से कहा
"अले नहीं आया"
३ बार बोलने के बाद भी जब जूता उसका नहीं आया तो वो मेरे पास आकर बोला,
"डाईडी केतू का दादू नहीं हो लहा है"
मुझे उसकी मासूमियत पर बहुत प्यार आया और मैंने कहा,
"केशू ने जरूर आँख बंद नहीं किया होगा"
अबकी बार केशू ने पूरे विश्वास से आँख बंद करके कहा
"दादू बन्तल दादू बन्तल केतू का दूता आ दा"
और आँख खुलते ही सामने जूता दिखा, तो वो बहुत खुश हुआ और बोला
"डाईडी केतू का दूता आ गया"
(मैंने चुपके से उसका जूता वहाँ ला कर रख दिया था, आखिर उसके मासूमियत से भरे भरोसे को कैसे टूटने देता).................................
भैया की कलम से
कभी कभी स्वार्थ में मन करता है कि मनाएं कि ये कभी बड़ा न हो.. :( ऐसे ही तोतला कर बोलता रहे.
ReplyDeleteविश्वास बनाये रखना है नौनिहालों का।
ReplyDeleteआभार ||
ReplyDeleteबच्चों का विश्वास कायम रहना तो आवश्यक है ......
ReplyDeleteबाल मन पर बहुत सुन्दर पोस्ट...
ReplyDeleteनीरज
भावपूर्ण अभिव्यक्ति .......
ReplyDeleteबच्चों का विश्वास कायम रखना तो आवश्यक है| धन्यवाद|
ReplyDeleteकेशू का 'दादू' ऐसे ही बना रहे...मेरा उससे मिलने का बड़ा मन होता है.
ReplyDeleteकिन्तु कभी न कभी तो यह विश्वास टूटेगा ही. ऐसा तो हो नहीं सकता की हर बार आप उसके विशवास की रक्षा करें. बच्चे को निराश होना व निराशा से निपटना भी कुछेक साल में सीखना ही होगा.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
dher sara pyaar keshu ko :)
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