चेन्नई एक ऐसा शहर है जिसने मुझे जिंदगी की पहली कमाई की पहली रोटी का बंदोबस्त किया, अब इतने बड़े अहसान को मैं भूल जाऊं, इतना अहसानफरामोश नहीं हो सकता हूँ मैं.. पटना मेरे रगों में रचा-बसा है, धीरे-धीरे यह शहर भी रगों में दौड़ने का अहसास जगाने लगा है.. पटना शहर की तरह इस शहर में उस लड़की का कोई निशान नहीं, यह भी एक अलग सुकून देता है, इस शहर में जिन्दा रहने को..
कई तरह के संघर्षों का साक्षी यह शहर, इसका नशा इतनी जल्दी नहीं उतरने वाला है.. अंतर्द्वंदों से लेकर ज़माने की लड़ाई तक.. यूँ तो जमाने से लड़ने का जज्बा पटना शहर से ही सीख कर चला था मगर खुद से लड़ने का तरीका इसी शहर के एकाकीपन ने सिखाया.. अकेले घर में बैठे-ठाले अचानक से बाईक उठाकर रात के तीन बजे माउंट रोड पर बिना मतलब का 30-40 km का चक्कर लगाना, सुनसान सड़क पर 90+ की रफ़्तार से भागना और अचानक से 20-25 की गति पकड़ कर चलना.. बिना किसी डर भय के की कुछ बुरा घट सकता है मेरे साथ.. सुरक्षा की यह भावना किसी और शहर में कभी नहीं मिली.. सिटी बसों को उन पतली गलियों से निकलते हुए भी आज तक कभी किसी बड़े दुर्घटना का गवाह बनते नहीं देखा.. हमारे घर वाली लगभग अनजान सी गली(गूगल मैप में जो एक पतली सी रेखा में अंकित है) में भी सुबह-सुबह नगरपालिका के कर्मचारियों को सफाई करते देखने का मौका उनकी कर्मठता को ही दर्शाता है..
मेरे रहने की जगह लाल लकीर में
कुछ बुरे अनुभव भी हुए हैं यहाँ मगर वह उन सारे अच्छे अनुभवों के सामने बहुत कम अनुपात में है.. वैसे भी बुरे अनुभव तो हर शहर के हैं, जहाँ कहीं मैं गया हूँ.. आजकल चेन्नई अपनी प्रसिद्द गर्मी के उफान पर है, ज्यों-ज्यों उमस वाली गर्मी बढती जा रही है, इसका नशा भी सर चढ़कर बोलने लगता है..
नोट : आज अचानक से इस वीडियो पर पहुँच गया, इसे देखते हुए जो ख्याल मन में आये उसे यहाँ लिख भी दिया..
एक लम्बा अरसा एक शहर में गुजार लेने के बाद वो यूँ ही रगों में रच बस जाता है....
ReplyDeleteविडियों भी अच्छा लगा/
समीरजी से सहमत हूँ. अपना भी यही मानना है. कहीं भी कुछ दिन रह जाओ तो जगह अच्छी लगने लग जाती है. मैं तो कहता ही हूँ कि जब कानपुर अच्छा लगने लगे. और और कुछ दिनों बाद वहां के टेम्पो में बैठना, उसमे बजने वाले गाने भी इंसान मिस करने लगे तो समझ लो कुछ भी मिस किया जा सकता है :)
ReplyDeleteपसंद करने वाला मन तो वही होता है, शहर बदलते रहते हैं.
ReplyDeleteजिन्दगी के छोटे से वक़्त में मैं कई शहरों में रहा. इनमें सबसे लम्बे समय तक मैं देल्ही में रहा....और यही वो शहर है जिसने जिन्दगी जीने का तरीका मुझे बताया...मगर इस शहर से मुझे वो लगाव कभी महसूस नहीं हुवा...जो अन्य शहरों से हैं....लेकिन नफरत नहीं है इस स्जजर से मुझे...बहुत सी बुरी यादों के साथ साथ अच्छी खुस्नुमन यादें भी हैं इस शहर से जुडी मेरे पास...
ReplyDeleteहालाँकि पहली कमाई मेरी जिन्दगी की मुंबई शहर ने दी..पता नहीं पूरे शहर से मुझे नफरत करने का ख्याल वाहियात लगता है...हाँ काम या ज्यादे लगाव होना एक बात होती है...
चेन्नई शहर मे बुराई, मुझे भी पता नही चली ! पूरे पांच साल रहा था वहां !
ReplyDeleteबेसेंट नगर बीच मे शाम या इस्ट कोस्ट रोड पर बाईक से आवारागर्दी की बात ही कुछ और है.....
मायाजाल और उसके थोड़ा आगे वाला बोट क्ल्ब.....
यूँ तो जमाने से लड़ने का जज्बा पटना शहर से ही सीख कर चला था मगर खुद से लड़ने का तरीका इसी शहर के एकाकीपन ने सिखाया..
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ReplyDeleteभाषाई पूर्वाग्रह और चिपचिपाती गर्मी के अलावा चेन्नई में सब कुछ सह्य है ।
मेरी वेबकूफ़ियों के मिसाल के तौर पर एक लाइन और चेन्नई आख़िर चेन्नाई क्यों है :)
मुझे लगता है, कि वहाँ के अधोवस्त्र आधी मोड़ी लुंगी में ज़िप-चेन न होने के सुखातिरेक में नाम पड़ गया होगा, " अईयो चेन नेंईं... चेन्नई !"
शहर प्यारे हों, शहरवाले भी प्यारे हों।
ReplyDeleteकिसी शहर, किसी बस्ती से कैसे नफरत की जा सकती है।
ReplyDeleteफिर जहाँ रोजगार हो उस से तो कदापि नहीं।
न कोई दोस्त है न रकीब है / तेरा शहर ये अजीब है.
ReplyDeleteन कोई दोस्त है न रकीब है / तेरा शहर ये अजीब है.
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