Wednesday, April 20, 2011

नम्मा चेन्नई!!!!

मुझे कई लोग मिले हैं जो मुझे चेन्नई शहर से प्रेम करते देख मुझे ऐसे देखते हैं जैसे कोई अहमक हूँ मैं.. बहस करने वाले भी कई मिले हैं जो यह गिनाने को आतुर रहते हैं कि चेन्नई में क्या-क्या खराबियां हैं.. मेरे पास उनसे अधिक वजहें होती हैं इससे इश्क में डूबने के बजाये इसके की मैं इससे नफरत करूँ.. वैसे भी मुझे यह समझ में नहीं आता है कि कोई किसी शहर से नफरत कैसे कर सकता है? आप किसी शहर के उन लोगों से नफरत कर सकते हैं जो आपके लिए बुरें रहे हों.. आप शहर की गन्दगी से नफरत कर सकते हैं.. किसी शहर की गर्मी से नफरत कर सकते हैं.. मगर पूरे शहर से ही नफरत!! आश्चर्यजनक!! मेरे लिए भी कुछ शहर ऐसे हैं जहाँ की यादें हमेशा मुझे उदास ही करती हैं और अवसाद में धकेलने की कोशिश करती है, मगर फिर भी उन शहरों से नफरत तो कभी ना कर सका मैं.. हाँ कुछ उदासीन जरूर हो चुका हूँ उन शहरों से!!

चेन्नई एक ऐसा शहर है जिसने मुझे जिंदगी की पहली कमाई की पहली रोटी का बंदोबस्त किया, अब इतने बड़े अहसान को मैं भूल जाऊं, इतना अहसानफरामोश नहीं हो सकता हूँ मैं.. पटना मेरे रगों में रचा-बसा है, धीरे-धीरे यह शहर भी रगों में दौड़ने का अहसास जगाने लगा है.. पटना शहर की तरह इस शहर में उस लड़की का कोई निशान नहीं, यह भी एक अलग सुकून देता है, इस शहर में जिन्दा रहने को..

कई तरह के संघर्षों का साक्षी यह शहर, इसका नशा इतनी जल्दी नहीं उतरने वाला है.. अंतर्द्वंदों से लेकर ज़माने की लड़ाई तक.. यूँ तो जमाने से लड़ने का जज्बा पटना शहर से ही सीख कर चला था मगर खुद से लड़ने का तरीका इसी शहर के एकाकीपन ने सिखाया.. अकेले घर में बैठे-ठाले अचानक से बाईक उठाकर रात के तीन बजे माउंट रोड पर बिना मतलब का 30-40 km का चक्कर लगाना, सुनसान सड़क पर 90+ की रफ़्तार से भागना और अचानक से 20-25 की गति पकड़ कर चलना.. बिना किसी डर भय के की कुछ बुरा घट सकता है मेरे साथ.. सुरक्षा की यह भावना किसी और शहर में कभी नहीं मिली.. सिटी बसों को उन पतली गलियों से निकलते हुए भी आज तक कभी किसी बड़े दुर्घटना का गवाह बनते नहीं देखा.. हमारे घर वाली लगभग अनजान सी गली(गूगल मैप में जो एक पतली सी रेखा में अंकित है) में भी सुबह-सुबह नगरपालिका के कर्मचारियों को सफाई करते देखने का मौका उनकी कर्मठता को ही दर्शाता है..


मेरे रहने की जगह लाल लकीर में

कुछ बुरे अनुभव भी हुए हैं यहाँ मगर वह उन सारे अच्छे अनुभवों के सामने बहुत कम अनुपात में है.. वैसे भी बुरे अनुभव तो हर शहर के हैं, जहाँ कहीं मैं गया हूँ.. आजकल चेन्नई अपनी प्रसिद्द गर्मी के उफान पर है, ज्यों-ज्यों उमस वाली गर्मी बढती जा रही है, इसका नशा भी सर चढ़कर बोलने लगता है..



नोट : आज अचानक से इस वीडियो पर पहुँच गया, इसे देखते हुए जो ख्याल मन में आये उसे यहाँ लिख भी दिया..

11 comments:

  1. एक लम्बा अरसा एक शहर में गुजार लेने के बाद वो यूँ ही रगों में रच बस जाता है....

    विडियों भी अच्छा लगा/

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  2. समीरजी से सहमत हूँ. अपना भी यही मानना है. कहीं भी कुछ दिन रह जाओ तो जगह अच्छी लगने लग जाती है. मैं तो कहता ही हूँ कि जब कानपुर अच्छा लगने लगे. और और कुछ दिनों बाद वहां के टेम्पो में बैठना, उसमे बजने वाले गाने भी इंसान मिस करने लगे तो समझ लो कुछ भी मिस किया जा सकता है :)

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  3. पसंद करने वाला मन तो वही होता है, शहर बदलते रहते हैं.

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  4. जिन्दगी के छोटे से वक़्त में मैं कई शहरों में रहा. इनमें सबसे लम्बे समय तक मैं देल्ही में रहा....और यही वो शहर है जिसने जिन्दगी जीने का तरीका मुझे बताया...मगर इस शहर से मुझे वो लगाव कभी महसूस नहीं हुवा...जो अन्य शहरों से हैं....लेकिन नफरत नहीं है इस स्जजर से मुझे...बहुत सी बुरी यादों के साथ साथ अच्छी खुस्नुमन यादें भी हैं इस शहर से जुडी मेरे पास...
    हालाँकि पहली कमाई मेरी जिन्दगी की मुंबई शहर ने दी..पता नहीं पूरे शहर से मुझे नफरत करने का ख्याल वाहियात लगता है...हाँ काम या ज्यादे लगाव होना एक बात होती है...

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  5. चेन्नई शहर मे बुराई, मुझे भी पता नही चली ! पूरे पांच साल रहा था वहां !

    बेसेंट नगर बीच मे शाम या इस्ट कोस्ट रोड पर बाईक से आवारागर्दी की बात ही कुछ और है.....

    मायाजाल और उसके थोड़ा आगे वाला बोट क्ल्ब.....

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  6. यूँ तो जमाने से लड़ने का जज्बा पटना शहर से ही सीख कर चला था मगर खुद से लड़ने का तरीका इसी शहर के एकाकीपन ने सिखाया..

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  7. भाषाई पूर्वाग्रह और चिपचिपाती गर्मी के अलावा चेन्नई में सब कुछ सह्य है ।
    मेरी वेबकूफ़ियों के मिसाल के तौर पर एक लाइन और चेन्नई आख़िर चेन्नाई क्यों है :)
    मुझे लगता है, कि वहाँ के अधोवस्त्र आधी मोड़ी लुंगी में ज़िप-चेन न होने के सुखातिरेक में नाम पड़ गया होगा, " अईयो चेन नेंईं... चेन्नई !"

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  8. शहर प्यारे हों, शहरवाले भी प्यारे हों।

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  9. किसी शहर, किसी बस्ती से कैसे नफरत की जा सकती है।
    फिर जहाँ रोजगार हो उस से तो कदापि नहीं।

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  10. न कोई दोस्त है न रकीब है / तेरा शहर ये अजीब है.

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  11. न कोई दोस्त है न रकीब है / तेरा शहर ये अजीब है.

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