Tuesday, January 18, 2011

कुछ और किस्से केशू के

हो सकता है कि आज के जमाने में किसी को यह अतिश्योक्ति लगे, मगर हमारे घर में अभी तक यह लगभग किसी नियम के तहत चलता आ रहा है कि रात में सोने से पहले माता-पिता का चरणस्पर्श करके ही हम सोने जाते हैं.. इसका सबसे बड़ा फायदा बचपन से ही मुझे यह दिखा है कि अगर किसी तरह कि अगर किसी तरह कि नाराजगी रही हो माता-पिता की तरफ से अथवा हम बच्चों कि तरफ से तो वह कभी भी अगले दिन तक नहीं खींचता था.. रात में जब आशीर्वाद लेने के लिए हम जाते थे तब वहीं उसका निपटारा हो जाया करता था.. अभी भी हम हर रात को आशीर्वाद लेने जाते हैं, मगर बच्चा 'फर्स्ट' होने के लिए सबसे पहले भागता था, सबसे पहले 'पाम'(प्रणाम) उसे ही जो करना होता था दादा-दादी को..

पापा-मम्मी के कमरे में आज भी मच्छरदानी का प्रयोग होता है.. बाकी हम लोग उसका प्रयोग करना बंद कर चुके हैं.. पापा का कहना है कि 'जो मच्छरदानी नहीं लगाता है वो हमको गंवार लगता है' और हमारा कहना है कि 'जो मच्छरदानी लगाता है वो हमें' :).. खैर जो भी हो, मगर चूंकि हमलोग उसका प्रयोग नहीं करते हैं सो बच्चे को भी उसके भीतर अजीब सा बंधन लगता है, और यह एक बहुत बड़ा कारण है कि वह रात में अपने दादा-दादी के पास कभी नहीं सोया है.. अभी एक दिन मैं मच्छरदानी में घुस कर, बच्चे को चिढा-चिढा कर पापा-मम्मी पर 'लार छिड़िया' रहा था, और बच्चा इतना अधिक स्वत्वबोधक(Possessive) कि मच्छरदानी में सब बंधा-बंधा होने के बावजूद अंदर घुस कर मुझसे कुस्ता-कुस्ती करने लगा और अंततः जब तक मैं बाहर नहीं निकल गया तब तक वह वहाँ से हटा नहीं..

बच्चे को हर दिन सुबह होने पर 'दारू' चाहिए होता था.. नहीं, यह पी कर तल्ली होने वाला दारू नहीं है, यह तो घर साफ़ करने वाला 'झाड़ू' है.. सुबह उठने पर जैसे ही उसका 'भक्क' टूटता था वैसे ही वह 'दारू-दारू' की रट लगा देता था, और जब तक 'दारू' उसके हाथ ना लगे तब तक उस बालकनी का दरवाजा पिटता रहता जिस बालकनी में 'दारू' रखा होता है.. दिन में और किसी भी समय वह 'दारू' की तलाश नहीं करता था, सिर्फ सुबह ही!! बच्चे को पता था कि सुबह के समय घर कि सफाई होती है.. हमारे यहाँ काम करने वाली को वह 'उवा' (बुवा) और उसकी बहन को 'उप्पा'(रूपा) बुलाता था.. नए जगह पर एक नयी काम वाली को देख कर बहुत देर तक परेशान रहा और फिर अपनी मम्मा से 'मम्मा उवा-उप्पा' का पता पूछता रहा..

कपड़े पहनने में उसके नखरे बड़े.. लेकिन जैसे ही किसी से सुन लिया 'तंदा-तंदा'(ठंढा), वैसे ही अपनी लाल वाली बन्दर टोपी लेकर पहुँच जाता.. अगर किसी ने 'तंदा-तंदा' नहीं बोला तो फिर कोई भी टोपी पहनाओ, तुरंत उतार फेंकता था.. उसे सबसे अधिक भय अपने छोटे पापा से ही था और अभी भी है, कि वो उसका पैंट (जो कि लगभग मेरे मोजा के बराबर आता है), उसका शर्ट, उसका 'छोक्छ'(शोक्स), उसका जैकेट, सब पहन लेंगे.. कम से कम इसी डर से चुपचाप बिना शोरगुल किये और बिना किसी को मेहनत कराये पहन लेता था.. पता नहीं भाभी अब भी उसे मेरा ही डर दिखा कर यह सब पहनाती होंगी या अब कुछ नयी बात हो चुकी होगी!!!!

कल रात भैया-भाभी और बच्चे के साथ मैंने Video Chatting की और सुबह पापा-मम्मी को चिढाया इस बाबत.. :) कम से कम इसी बहाने उनमें यह तकनीक सीखने की ललक तो पैदा हुई..

केशू अपने नए वाले घर में अपने बलखाती जुल्फों के साथ :)


काफी दिन हो गए पटना आये हुए, अब जाने का दिन भी नजदीक आ रहा है.. हर दिन पापा को चिढाता हूँ "अब बस चौदह दिन बचे हैं", "अब बस बारह दिन बचे हैं".. पापा कल तक बोलते थे कि "काहे याद दिलाता है, तुमको जब जाना है जाओ ना?" मगर जब आज वही बात मैंने उन्हें याद दिलाई तो बोले कि "अच्छा हुआ जो पहले से याद दिला रहा था, चोट कम लगेगी तुम्हारे जाने की.." :(

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