Sunday, June 15, 2008

जब अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान(भाग 4)

मेरे कालेज के मित्र, जो मेरे चिट्ठे को बराबर पढ़ते रहते हैं उन्होने मुझे कहा की आज-कल तम्हारा पोस्ट पुराने दिनों की याद जेहन में ताजा कर दे रहा है.. अच्छा लगा पढ़कर-सुनकर.. अब आगे बढ़ते हैं..

(क्रमशः से आगे...)
मेरे बगल में मेरे कुछ मित्र बैठे हुए थे.. अगर मिनट के हिसाब से गिनती करें तो जितने मिनट की परीक्षा थी उससे ज्यादा सवाल थे(जैसा की हर कंपटीटीव परीक्षा में होता है).. सवाल कुल 125 थे और समय डेढ़ घंटे, यानी 90 मिनट.. मगर मेरी रफ़्तार उससे ज्यादा थी और समय पूरा होने से लगभग ५-७ मिनट पहले ही मैंने उसे पूरा बना डाला.. अब मैंने अपने बगल में बैठे हुए मित्र के तरह मुडा.. मैंने पाया की उसके अधिकांश उत्तर मेरे उत्तर से पूरी तरह भिन्न थे मगर मुझे भरोसा था की मेरे उत्तर सही थे.. मैंने उसे कहा की मेरे सारे उत्तर कापी कर लो और जहाँ तक संभव हो सका उसने कर लिया और फिर उसने अपने बगल में बैठे हुए हमारे एक और मित्र को भी यही करने को कहा.. बाहर निकल कर अब पूरी तरह से मेरी जिम्मेदारी बन गयी थी, की अगर उनका नहीं निकला तो मुझे ही कहा जाएगा की तूने सारा गलत दिखाया था.. मगर ऐसा नहीं हुआ.. कट-आफ बहुत ऊपर गया था मगर फिर भी हम तीनो का रिटेन में सेलेक्सन हो गया था..

वहाँ इंटरव्यू से पहले एक ग्रुप डिस्कसन था.. मैं जिस ग्रुप में था उसका टापिक था "कैपिटल पनिशमेंट".. जब जी.डी. शुरू हुआ तब मुझे ऐसा लगा की अधिकतर लड़के समझ भी नहीं पा रहे थे इस टापिक का सही मतलब.. मैंने ही शुरूवात की.. और जिंदगी की पहली जी.डी. में असफल भी रहा.. हुआ कुछ ऐसा, की जैसे ही मैंने बोलना शुरू किया वैसे ही सभी लोग मेरी तरफ देखने लग गए.. थोडी देर बाद मैं कुछ असहज महसूस करने लगा और फिर घबराहट इतनी अधिक बढ़ गई की मैं कुछ बोल ही नहीं सका.. खैर, इसमे मैं शत-प्रतिशत अपनी ही गलती मानता हूँ.. पी.सी.एस. में फिर से मेरे कुछ और करीबी मित्रों का सेलेक्सन हो गया जैसे अर्चना, संजीव, अनुज, श्रुति.. अफ़सोस तब हुआ जब अच्छे से जी.डी. देने के बाद भी मैंने अपने जिन दो दोस्तों को अपना पेपर दिखाया था, वे भी जी.डी. क्लियर नहीं कर पाए..

अगली कम्पनी मेरे लिए Hexaware थी.. उसमे भी खूब चोरी चली, मगर मैं इस बार न तो किसी प्रकार का कोई व्यूह बनाया और ना ही चोरी की.. खैर इस बार मैं रिटेन में भी सेलेक्ट नहीं हो पाया मगर पी.सी.एस. का रिटेन निकालने के बाद मेरे आत्मविश्वास में बहुत इजाफा हुआ था.. जब पता चला की Hexaware आने वाली है तो एक रात पहले मैंने संजीव को कहा की कल से मैं भी बैडमिन्टन खेलने आ रहा हूँ, घबराओ मत.. और जब इसमे नहीं हुआ तो अगली कम्पनी में भी मैंने यही बात कही जो सही हो गया.. :) दरअसल होता यह था कि मेरे जिन दोस्तों का सेलेक्शन हो चुका था वे सभी दिन के 6-7 घंटे बैडमिंटन खेलने में बिताने लगे थे, और मेरे जैसा बैडमिंटन का प्रेमी कुछ तैयारी के चक्कर में और कुछ अवसाद में पड़कर खेलने नहीं जाता था..

(अगला अन्तिम भाग...)


मेरे होस्टल के बगल वाला हिस्सा.. इसे आप पार्क नहीं कह सकते हैं मगर था पार्क जैसा ही कुछ.. पूरे वेल्लोर में अगर कुछ हरियाली देखनी हो तो बस VIT आ जाइए :)..


मेरा होस्टल, वाणी के कैमरा से लिया हुआ.. उस समय मेरे पास कैमरा नहीं था सो वाणी से कुछ दिनों के लिए उधार लिया था.. उसके कैमरे से बहुत अच्छी तस्वीर आती है.. :)

7 comments:

  1. hame aagle bhag ka intajar rhega. janna chahate hai ki age kya hua.

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  2. गुड्ड्म-गुड तस्वीरे हैं।

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  3. चलिये तस्वीरेँ तो देख लीँ आपके Campus कीँ ..
    जारी रखिये, प्रशाँत जी ..
    - लावण्या

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  4. बहुत ही बढ़िया लगा campus।

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  5. फोटो अच्छी है...

    अब तो हमें घबराहट होने लगी है आपकी नौकरी कब लग पाई? :)

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  6. अभी बहुत व्यस्त हूं.. हो सका तो कल लिखूंगा.. :)

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